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Chauri Chaura Incident: जलियांवाला बाग कांड का प्रत्युत्तर था चौरी चौरा जनाक्रोश

Chauri Chaura Incident भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के आचार्य प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी का कहना है कि चौरी चौरी कांड जलियांवाला बाग कांड एक तथाकथित सुसंस्कृत राज्य का हत्याकांड था और चौरी चौरा उस तथाकथित सुसंस्कृत राज्य को प्रत्युत्तर।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Sat, 04 Feb 2023 04:01 PM (IST)
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चौरी चौरा शहीद स्मारक स्थल। - जागरण
गोरखपुर। चौरी चौरा की घटना के विभिन्न पक्षों को देखा जाए तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि यह एक ऐसी स्थानीय घटना थी, जिसने राष्ट्रीय आंदोलन के इतिहास पर व्यापक प्रभाव डाला। कांग्रेस व तत्कालीन समाचार पत्रों की प्रतिक्रिया और आश्चर्यजनक रूप से अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा जलियांवाला बाग की घटना को चौरी चौरा से अधिक स्थान देना, इन सबने मिलकर चौरी चौरा की घटना को हत्याकांड की स्थानीय प्रस्तुति में स्थापित कर दिया।

गोवि सदस्य व भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के आचार्य प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने कहा कि प्रश्न यह उठता है कि जिस प्रकार से औपनिवेशिक तंत्र कार्य करता था और चौरी चौरा की घटना को लेकर बाबा राघवदास व महामना जैसे देशभक्त भी उसी प्रकार की प्रतिक्रिया करके मौन रहते तो उस जनाक्रोश में बलिदान होने वालों की सूची में 19 नहीं, 172 क्रांतिकारी शामिल रहते। इतिहास के इस सत्य और ‘शायद’ को चिह्नित कर पाना चौरी चौरा के संदर्भ में लगभग असंभव है। समझने की आवश्यकता है कि चौरी चौरा का कथानक किन स्तंभों पर खड़ा किया गया? उत्तर स्पष्ट है। इस प्रकार की अधिकतर घटनाएं आंदोलन की मर्यादा को क्षीण करने वालीं घटनाओं के रूप में दर्शाई गई हैं।

क्या यह जलियांवाला बाग का प्रतिरोध नहीं था? क्या राष्ट्रीय आंदोलन का खंड काल जलियांवाला बाग से प्रारंभ हो चौरी चौरा तक एक नया अध्याय नहीं लिख रहा था? आवश्यकता है इतिहास के इस क्रम को जोड़कर देखने की। जलियांवाला बाग कांड एक तथाकथित सुसंस्कृत राज्य का हत्याकांड था और चौरी चौरा उस तथाकथित सुसंस्कृत राज्य को प्रत्युत्तर। यदि उच्च न्यायालय में महामना द्वारा किए गए तर्कों पर ध्यान केंद्रित किया जाए तो वह इसी तथ्य पर आधारित है कि स्वयंसेवक थाना जलाने अथवा हत्या के इरादे से नहीं आए थे अर्थात घटना इरादतन नहीं थी और जो घटना घटी, उसमें तत्कालीन जिला प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका कारक तत्व थी। अतिरिक्त इसके, यदि हिंसा का मुद्दा इतना महत्वपूर्ण सिद्धांत था तो आजाद हिंद फौज के मुकदमे में भारतीयों के बचाव में वह लोग क्यों अत्यंत तत्पर हो गए, जो हिंसा के पुरजोर विरोधी थे और नेता जी की भूमिका व वैचारिकी से असहमत थे।

उत्तर है देश का ज्वार और नेता जी व आजाद हिंद फौज की लोकप्रियता, जोकि शीघ्र ही स्वतंत्र देश की राजनीतिक स्थितियों पर अपना प्रभाव छोड़ सकती थीं। इसलिए जरूरत चौरी चौरा को उसके खंड कालों में समझा जाना है, जिससे इसे मात्र एक स्थानीय घटना न मानकर राष्ट्रीय आंदोलन की दिशा को परिवर्तित करने वाली एक अति महत्वपूर्ण घटना की तरह समझा जा सके। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि इस घटना के पश्चात कांग्रेस असहयोग के मुद्दे को लेकर लगभग दूसरी बार बंटवारे के मुहाने पर आकर खड़ी हो गई थी।

चौरी चौरा जनाक्रोश के पुनरावलोकन के लिए उन गांवों तक पहुंचा गया, जहां बलिदानियों के स्वजन रहते हैं। उनसे वार्तालाप का क्रम स्थापित किया गया और आश्चर्यचकित कर देने वाली नई जानकारी प्राप्त हुई। इससे यह तथ्य सामने आया कि चौरी चौरा पर पूर्व में किए गए अध्ययन में कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों का या तो जिक्र नहीं किया गया या फिर कुछ मूल तथ्यों के साथ ही रहस्य स्थापित कर दिए गए। कुछ ने तो अपने इतिहास लेखन की पद्धति से पूर्ण आंदोलन को एक ऐसा स्वरूप देने की चेष्टा कर दी, जिससे इस घटना के राष्ट्रीय चरित्र पर ही शंका उत्पन्न हो जाए। संगोष्ठी में जिन बलिदानियों के स्वजन उपलब्ध हो सके, उन्हें पहली बार 1957 में स्थापित गोरखपुर विश्वविद्यालय के मंच पर आमंत्रित कर सम्मानित किया गया और संगोष्ठी के विशेष सत्र में वाचिक परंपरा से इतिहास के पुनरावलोकन हेतु विशेष सत्र आयोजित किया गया, जिससे घटना के नवीन तथ्य उजागर हो सकें।

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