Chhath Puja 2023: छठ पूजा एक त्योहार ही नहीं, संस्कृति और संस्कार भी है; भक्तों को मानवता की सीख देता है ये पर्व
Chhath Puja 2023 छठ पर केवल एक त्योहार ही नहीं बल्कि लोगों को मानवता की सीख देने का जरिया भी है। छठ ही एक ऐसा त्योहार है जो हमें भेदभाव और ऊंच-नीच की खाई को पाटने का मौका देता है। जिस प्रकार सूर्य की किरणें इंसान तक पहुंचने में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करतीं उसी प्रकार छठ भी हमें भेदभाव को त्याग देने के लिए प्रेरित करता है।
By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Sat, 18 Nov 2023 03:33 PM (IST)
डा. राकेश राय, गोरखपुर। उगते सूर्य के सामने तो दुनिया नतमस्तक होती है लेकिन छठ ऐसा पर्व है, जिसमें डूबते सूर्य की आराधना का भी विधान है। यही नहीं, इस पर्व में उगते सूर्य की आराधना डूबते सूर्य के बाद होती है। यह संदेश है भेदभाव मिटाने का, ऊंच-नीच की खाई पाटने का। ऐसा इसलिए कि छठ मात्र एक पर्व नहीं, बल्कि संस्कृति और संस्कार भी है। इसी खूबी की चलते आज छठ की छठा उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक देखने को मिल रही। दरअसल, यह पर्व केवल आध्यात्मिक संतुष्टि का जरिया ही नहीं, बल्कि संस्कृति और संस्कार का पुनर्जागरण भी है, जिससे देश ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के सनातनी जुड़ रहे हैं। छठ की मान्यता की तेजी से बढ़ती स्वीकार्यता को सामाजिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण से जोड़ती रिपोर्ट...
चार दिन तक चलने वाली छठ पूजा न केवल हमें प्रकृति के करीब ले जाती है, बल्कि प्रकृति के जरिये संस्कृति और संस्कारों को संजोए रखने की सीख भी देती है। सूर्य, ऊषा, संध्या, रात्रि, वायु, जल सहित प्रकृति के लगभग सभी पक्षों की पूजा का विधान छठ में है। जिस प्रकार सूर्य की किरणें इंसान तक पहुंचने में किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करतीं, उसी प्रकार छठ भी हमें सभी प्रकार के भेदभाव को त्याग देने के लिए प्रेरित करता है।
छठ घाटों पर सूर्य को अर्घ्य देने के लिए साल-दर-साल बढ़ रही श्रद्धालुओं की संख्या इस बात का प्रमाण है कि यह पर्व हमें संस्कारों के जरिए पिरोने का कार्य रहा है और सांस्कृतिक पुनर्जागरण का सशक्त माध्यम बन रहा है। छठ पूजा ही है, जिसमें भक्त अपने सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत से जुड़ते हैं और मनुष्य के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की भी चिंता करते हैं।
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राष्ट्रवाद को भी मजबूत करता है छठ
छठ पूजा की वैचारिकी राष्ट्रवाद को भी मजबूत करती है। यह हमें हमारा संस्कार याद दिलाती है। पवित्रता और प्रतिबद्धता के प्रति जिम्मेदार बनाती है। ये सभी तथ्य राष्ट्रवाद के लिए महत्वपूर्ण पहलू हैं। अपनी संस्कृति और संस्कार की सुरक्षा के प्रति संवेदनशीलता ही तो असली राष्ट्रवाद है। ऐसे में हम निर्विवाद रूप से कह सकते हैं कि छठ हमारी आध्यात्मिकता को ही पुष्ट नहीं करता, बल्कि राष्ट्रवाद को भी मजबूत करता है।
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नहाय-खाय संस्कार से छठ पूजा की शुरुआत मानी जाती है। इस दिन किसान व्रतियों के बीच कद्दू का वितरण करते हैं। पर्व के इस संस्कार से आपसी सामंजस्य और सहयोग की भावना पैदा होती है। यह परंपरा जीवन में पवित्रता और शुद्धता बनाए रखने का भी संदेश देती है।खरना
नहाय-खाय के बाद खरना से छठ का अनुष्ठान आगे बढ़ता है। ‘खरना’ का शाब्दिक अर्थ है- शुद्धिकरण। यह शारीरिक के साथ साथ मानसिक शुद्धता के लिए प्रेरित करता है। खरना के दिन व्रती निर्जल उपवास रखते हैं। शाम को गुड़ से रसियाव ,खीर और पूड़ी बनाई जाती हैं, जिन्हें प्रसाद स्वरूप बांटा जाता है। इससे सामाजिक समरसता का भाव जागृत होता है। यह भी पढ़ें, Chhath Puja 2023: छठ पूजा को लेकर गोरखपुर के बाजार में बढ़ी रौनक, यहां जानें- फलों से लेकर सूप व दउरा की कीमतअस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
सूर्य षष्ठी के नाम से प्रसिद्ध छठ की संध्या में अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। इसमें घर से घाट तक सामाजिक सहभागिता और सांस्कृतिक मान्यताओं को सहेजे रखने की प्रतिबद्धता दिखती है। उगते सूर्य को अर्घ्य उषा अर्घ्य नाम के संस्कार के साथ छठ पर्व के अनुष्ठान को विराम दिया जाता है। जल में खड़े होकर पूरा किए जाने वाले इस संस्कार से सह-अस्तित्व, नारी सशक्तीकरण और पर्यावरण संरक्षण का संदेश एक-साथ मिलता है।छठ के दौरान इन गीतों की सुनाई देती है गूंज
- कांच हि बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाय।
- ससुरा में मांगी ले अन्न धन लक्ष्मी हे छठी मइया।
- केरवा जे फरेला घवद से ओह पे सुग्गा मेड़राय।
- छठी मइया दे द एगो ललना, बजवाइब बजना।