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साजिश: भारतीय युवाओं से ही साइबर अपराध करा रहा चीन, NIA ने खोज निकाला 'मास्‍टरमाइंड' का पता

चीनी गिरोह भारतीय युवाओं को गोल्डन ट्रायंगल में कंप्यूटर ऑपरेटर की नौकरी का झांसा देकर मानव तस्करी कर रहा है। वहां युवाओं से जबरन साइबर अपराध कराया जा रहा है। इस गिरोह का मास्टरमाइंड गोरखपुर का रहने वाला है। एनआईए ने गोरखपुर पुलिस को पत्र लिखकर युवक का विवरण मांगा है। मामला सामने आने के बाद खुफिया एजेंसी भी मामले की जांच कर रही है।

By Satish pandey Edited By: Vivek Shukla Updated: Wed, 04 Sep 2024 10:00 AM (IST)
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भारतीय युवाओं पर है चीन की नजर। जागरण

सतीश पांडेय,गोरखपुर। भारतीय युवाओं को गोल्डन ट्रायंगल (म्यांमार, थाईलैंड और लाओस के सीमावर्ती इलाका) में कंप्यूटर आपरेटर की नौकरी दिलाने के झांसा देकर मानव तस्करी करने वाला चीन का गिरोह बुला रहा है। वहां युवाओं से जबरिया साइबर अपराध कराया जा रहा है।

चंगुल से छूटकर किसी तरह देश लौटे तीन युवकों ने इसकी जानकारी सुरक्षा एजेंसियों को देने के साथ ही गोरखपुर के युवक का नाम बताया जो इस गिरोह का मास्टरमाइंड है। एनआइए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) की एसपी ने गोरखपुर पुलिस को पत्र लिख इसकी जानकारी देने के साथ ही युवक का विवरण मांगा है।

लाओस में कंप्यूटर आपरेटर की नौकरी करने गए भारतीय कुंदन सिंह, गुड्डू सोनी और राज बिश्वास पिछले दिनों भारत पहुंचे। सुरक्षा एजेंसियों को उन्होंने बताया कि गोरखपुर के रहने वाले बिजेंद्र सिंह ने लाओस में कंप्यूटर आपरेटर की नौकरी देने का झांसा देकर यहां से भेजा।

वहां पहुंचने पर उन्हें चीनी सिंडिकेट के हवाले कर दिया गया जो उन्हें मजबूर करके जबरन साइबर अपराध करवा रहा था। बड़ी मुश्किल से चंगुल से वह लोग निकलकर देश लौट पाए। उनके अलावा बहुत से ऐसे लोग हैं जो अभी भी चीनी सिडिंकेट के चंगुल में फंसकर अपराध कर रहे हैं।

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युवकों ने एनआइए के अधिकारियों को बिजेंद्र सिंह का पासपोर्ट व मोबाइल नंबर भी दिया है। एनआइए की लखनऊ शाखा की एसपी सुजाता सिंह ने गोरखपुर के एसएसपी को पत्र लिखकर मामले की जानकारी देते हुए यह मामला मानव तस्करी से जुड़े होने का अंदेशा जताते हुए आरोपित का विवरण मांगा है।

एनआइए से जानकारी मिलने के बाद गोरखपुर पुलिस बिजेंद्र सिंह की तलाश में जुटी है। साथ ही यह भी जानने का प्रयास कर रही है कि अभी तक उसने कितने लोगों को बाहर भेजा है। मामला सामने आने के बाद खुफिया एजेंसी भी मामले की जांच कर रही है।

गहरी हैं नौकरी के नाम पर मानव तस्करी करने वाले गिरोह की जड़ें

नौकरी के नाम पर युवाओं को विदेश भेजने और लाओस में चीनी सिंडिकेट के सक्रिय होने का मामला सामने आने के बाद खुफिया एजेंसी के होश उड़ गए हैं। मामले की छानबीन करने के साथ ही विदेश भेजने वाले एजेंटों की निगरानी शुरू हो गई है। इससे पहले वर्ष 2009 में 36 नेपाली नागरिकों का गोरखपुर के पते पर पासपोर्ट बनवाकर विदेश भेजने का मामला सामने आया था।

चार वर्ष चली जांच के बाद कैंट व शाहपुर थाने में मुकदमा दर्ज हुआ, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई। वर्ष 2005 से 2009 के बीच शहर के कूड़ाघाट, शाहपुर के पते पर नेपाली मूल के लोगों ने पासपोर्ट के लिए आवेदन किया था। इसमें पुलिस, एलआइयू के वेरीफिकेशन के बाद 36 लोगों को पासपोर्ट मिला था।

भारत-नेपाल मैत्री समाज के तत्कालीन अध्यक्ष रहे मोहन लाल गुप्ता (अब दिवंगत) ने 2009 में अधिकारियों को प्रार्थना पत्र देकर फर्जी पते पर नेपाली नागरिकों के पासपोर्ट बनने की शिकायत की थी। जांच में आरोप सही मिला। पासपोर्ट बनवाने वाले 36 लोग रिकार्ड में दर्ज पते पर नहीं मिले।

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पूछताछ करने पर आसपास के लोगों ने भी जानकारी होने से इन्कार कर दिया। जिम्मेदार अधिकारियों की गर्दन फंसने की वजह से कोई कार्रवाई नहीं हुई। शासन में शिकायत के बाद वर्ष 2014 में नए सिरे से जांच हुई। जिसके बाद 15 जुलाई 2015 को कैंट और इसके बाद शाहपुर थाने में मुकदमा दर्ज हुआ।

जांच में पता चला कि जिनका पासपोर्ट बना था उसमें अधिकांश लोग विदेश चले गए हैं। स्थानीय आरोपितों को पुलिस ने इस मामले में जेल भेजा लेकिन नेटवर्क से जुड़े रसूखदारों पर कार्रवाई नहीं हुई।

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