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स्लीपर कोच में रेल यात्रा करनी है तो बेहोशी की दवा भी साथ लेकर चलें...यहां पढ़ें रेलवे की रोचक खबरें

dainik jagran gorakhpur weekly column musafir hoon yaron दैन‍िक जागरण गोरखपुर के साप्‍ताह‍िक कालम मुसाफ‍िर हूं यारों में यहां पढ़ें सरकारी दफ्तरों के भीतरखाने की खबर। हर वह खबर जो अभी तक पर्दे के पीछेे है। जानें गोरखपुर शहर में क्‍या कुछ चल रहा है एक अलग अंदाज में।

By Jagran NewsEdited By: Pradeep SrivastavaPublished: Mon, 28 Nov 2022 08:05 AM (IST)Updated: Mon, 28 Nov 2022 08:05 AM (IST)
रोशनी से जगमग गोरखपुर रेलवे स्टेशन। - फाइल फोटो

गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। अगर आपको जनरल व स्लीपर कोच में रेल यात्रा करनी है तो साथ में बेहोशी की दवा भी लेकर चलनी होगी। अगर टायलेट के पास वाली सीट पर बैठ गए तो बदबू के चलते कभी भी बेहोश हो सकते हैं। रेल लाइनों को साफ रखने के लिए कोचों में जनरल की जगह बायोटायलेट तो लग गए, लेकिन यात्रियों को राहत की जगह सांसत मिलने लगी। पटरियों पर फैलने वाली गंदगी की बदबू अब कोचों में पसरने लगी है। गोरखपुर के रास्ते बिहार से पंजाब और दिल्ली रूट पर चलने वाली ट्रेनों में तो गेट पर ही मन खिन्न हो जाता है। लोकल ट्रेन और सवारी गाड़ियों की यात्रा के बाद तो कुछ खाने-पीने की इच्छा ही नहीं होती। अगर भूलवश टायलेट में चले गए तो घर पहुंचकर ठंड में भी स्नान करना पड़ सकता है। रेलवे के साफ-सफाई का दावा हवा-हवाई साबित हो रहा है।

भटिंडा नहीं बठिंडा है भाई

पूर्वोत्तर रेलवे की महत्वपूर्ण ट्रेन गोरखधाम हनुमान जी की पूछ जैसे बढ़ती ही जा रही है। गोरखपुर से नई दिल्ली, फिर हिसार और अब बठिंडा। गोरखपुर से प्रतिदिन चलने वाली इस ट्रेन पर पूर्वांचल का प्रेम शुरू से ही बरस रहा है। तभी तो जनरल कोचों में पैर रखने की जगह नहीं मिलती। छठ पर्व पर घर आए प्रवासी जब दिल्ली वापस होने लगे तो उनके लिए जगह ही नहीं बची। कोचों में पंजाब जाने वाले लोगों का कब्जा जो था। ट्रेन में चढ़ नहीं पाए तो रेलवे को कोसने लगे, दिल्ली के यात्री कम थे क्या कि गोरखधाम को पंजाब भेज दिया। एक सज्जन कहने लगे, यह ट्रेन पंजाब के बठिंडा नहीं, भटिंडा जा रही है। जो कहीं है ही नहीं। पास ही खड़े रेलकर्मी को रहा नहीं गया। हर महीने एसी कमरों में राजभाषा की बैठक होती है। इसके बाद भी गोरखधाम ट्रेन के बोर्ड पर बठिंडा की जगहभटिंडा लिखा गया है। इनपर पंजाब के लोग भी हंस रहे हैं।

सिर्फ भ्रम है माडल स्टेशन

रेलवे अपने प्रमुख स्टेशनों को माडल के रूप में विकसित करता रहता है। प्रत्येक वर्ष बजट में माडल स्टेशनों की घोषणा के साथ अलग से बजट भी आवंटित होता रहता है। लेकिन माडल भी माडल नहीं बन पाते। 16 नवंबर को गोरखपुर में आयोजित क्षेत्रीय रेल उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति की बैठक में सदस्यों ने माडल स्टेशन की पोल खोलकर रख दी। वाराणसी से पधारे सदस्यों ने कहा कि काशी विश्वनाथ की धरती पर स्थित बनारस को भी आज तक माडल नहीं बना पाए। प्रधानमंत्री और रेलमंत्री जब वाराणसी आते हैं तो रेलवे प्रशासन बनारस स्टेशन को दिखाकर अपनी पीठ थपथपा लेता है। लेकिन सब भ्रम है। रेलवे दिखाने के लिए एक और आठ नंबर प्लेटफार्म को तो सजाकर रखता है, लेकिन अन्य प्लेटफार्मों पर समुचित प्रसाधन केंद्र तक की व्यवस्था नहीं है। देवरिया रेलवे स्टेशन कई सालों से माडल बन रहा है। स्टेशन माडल तो नहीं बन पा रहे, लेकिन संबंधित विभाग और अधिकारी जरूर माडल बन गए हैं।

चाय की चाह में बन रहे मरीज

देशभर में चाय की चलन बढ़ गई है। शहर से होते हुए कस्बा और गांवाें तक कुल्हड़, मसालेदार और तंदूरी चाय की खुशबू पहुंच गई है। चाय के प्रति लोगाें की चाह बढ़ती जा रही है, लेकिन रेलवे की चाय आज तक नहीं बदली। अगर आपने स्टेशन या ट्रेन में चाय पी लिया तो प्रसन्न मन भी खिन्न हो जाएगा। अवैध वेंडर ही नहीं आइआरसीटीसी के कर्मचारी भी चाय के नाम पर बीमारी बेच रहे। पेट का मरीज बनाने के बदले में दस रुपये वसूल रहे हैं। अगर किसी ने टोक दिया तो मारपीट पर उतारू हो जाते हैं। गोरखपुर स्टेशन पर चाय पीने के बाद अक्सर यात्रियों और वेंडरों में बहस शुरू हो जाती है। एक स्टाल पर बातचीत में यात्री के मन की टीस निकल ही गई, यह चाय वाले कम, वसूली अधिक लगते हैं। पास खड़े दूसरे यात्री कहने लगे, इनपर भी रेलवे की छाया लग गई है। रेलवे भी तो यात्रियों और उपभोक्ताओं से कमाई का कोई जरिया नहीं छोड़ रहा।


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