डीडीयू में B.Com, B.Sc करने वाले विद्यार्थी भी कर सकेंगे MA, NEP अनुपालन में फिर लागू होगा पुराना नियम
गोरखपुर विश्वविद्यालय इस निर्णय को लागू करने के लिए एडमिशन क्राइटेरिया एंड कमेटी गठित करने जा रहा है। 1988 के पहले ऐसी कोई बाध्यता यहां नहीं थी कि बीकाम या बीएससी के छात्र मानविकी के विषय से परास्नातक नहीं कर सकते। जब विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इसपर रोक लगाई गई तो कई बार छात्रनेताओं ने आवाज भी उठाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Fri, 20 Oct 2023 04:06 PM (IST)
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। बीकाम और बीएससी करने वाले वह विद्यार्थी जो मानविकी के किसी विषय से परास्नातक डिग्री लेना चाहते हैं और दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में यह व्यवस्था न होने की वजह से अपनी इच्छा पूरी नहीं कर पा रहे, उनके लिए यह अच्छी खबर है। विश्वविद्यालय प्रशासन न केवल अपने परिसर में बल्कि संबद्ध महाविद्यालयों में उन्हें अपनी यह इच्छा पूरी करने का अवसर देने जा रहा है।
विश्वविद्यालय के इस निर्णय से अब बीकाम और बीएससी के विद्यार्थी मनमाफिक विषय में एमए की नियमित पढ़ाई कर सकेंगे। निर्णय को लागू करने को लेकर एडमिशन क्राइटेरिया एंड वेटेज नाम की एक कमेटी गठित की जा रही है। यह कमेटी इसे लेकर नियम का प्रारूप भी तैयार करेगी।विश्वविद्यालय के लिए यह कोई नया नियम नहीं होगा क्योंकि 1988 के पहले ऐसी कोई बाध्यता यहां नहीं थी कि बीकाम या बीएससी के छात्र मानविकी के विषय से परास्नातक नहीं कर सकते। जब विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इसपर रोक लगाई गई तो कई बार छात्रनेताओं ने आवाज भी उठाई लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई।
अब जब नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में मल्टी डिसिप्लिनरी कोर्स के संचालन पर जोर है तो विश्वविद्यालय ने इस पुरानी व्यवस्था को फिर से लागू करने का निर्णय लिया है। विश्वविद्यालय ऐसा इसलिए भी करने जा रहा है क्योंकि देश व प्रदेश के ज्यादातर विश्वविद्यालयों में यह व्यवस्था पहले से लागू है। ऐसे में जिन विद्यार्थियों को गोरखपुर विश्वविद्यालय में यह विकल्प नहीं मिलता, वह विकल्प वाले विश्वविद्यालयों की ओर रुख करने को मजबूर होते हैं। विश्वविद्यालय की मंशा मनमाफिक पाठ्यक्रम न मिलने के चलते विद्यार्थियों का पलायन रोकना भी है।
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छात्र को उसकी इच्छानुसार पढ़ाई का अवसर मिलना ही चाहिए। ऐसे में बीकाम और बीएससी के छात्रों को एमए करने से रोकना अनुचित है। इसे लेकर नियम में बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। बदलाव का प्रारूप तय करने के लिए कमेटी का गठन किया जा रहा है। अगले सत्र से इस बाध्यता को समाप्त करने की तैयारी है। प्रो. पूनम टंडन, डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय
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