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ट्रेन के AC कोच में कवर भी नहीं ढंक पा रहे तकिये की इज्जत, यात्रियों व कोच अटेंडेंट के बीच बढ़ गई है तकरार

भारतीय रेलवे में ट्रेन के एसी कोच में गंदे तकिए को लेकर अटेंडेंट व यात्रियों में विवाद बढ़ रहा जा रहा है। अटेंडेंट जैसे ही यात्रियों को तकिया व चादर देते हैं गंदगी देख यात्री भड़क जा रहे। ऐसे में कुछ लोगों की शिकायत तो रेलवे तक पहुंच रही जबकि ज्यादातर लोग रेलवे को कोसते हुए मुंह ढंककर सो जाते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandPublished: Thu, 19 Oct 2023 11:39 AM (IST)Updated: Thu, 19 Oct 2023 11:39 AM (IST)
वाराणसी सिटी-गोरखपुर एक्सप्रेस के यात्रियों को मिले तकिये पर लगा दाग-धब्बा। -जागरण

प्रेम नारायण द्विवेदी, गोरखपुर। 14 सितंबर को कानपुर के अनवरगंज जा रही चौरी चौरा एक्सप्रेस के बी-6 कोच में बर्थ नंबर-33 से 40 पर अटेंडेंट ने जैसे ही बेडरोल (कंबल, चादर, तौलिया, तकिया व कवर आदि) का पैकेट रखा, यात्री भड़क उठे। सभी कोच अटेंडेंट को तकिया में लगे दाग-धब्बे दिखाने लगे। उनका कहना था, क्या यह सिर के नीचे रखने लायक है। दूसरा साफ लाओ।

अटेंडेंट का कहना था, एक भी साफ नहीं है। हमें जो मिला है, वही उपलब्ध करा रहे हैं। यात्रियों ने कहा, अधिकारियों से शिकायत करेंगे। अटेंडेंट कोच की दीवार पर चस्पा नंबर दिखाते हुए यह कहते हुए चला गया, कर लीजिए शिकायत।

तकिये पर लगे दाग-धब्बे ने यात्रियों व कोच अटेंडेंट के बीच तकरार बढ़ा दी है। रेलवे वातानुकूलित कोचों में गंदा तकिया उपलब्ध करा रहा और यात्री उसे किनारे रख दे रहे हैं। कुछ अपनी बात रेलवे तक पहुंचाते हैं तो अधिकतर व्यवस्था का रोना रोते हुए मुंह ढंककर सो जाते हैं। शिकायतों का भी समुचित निदान नहीं हो पाता। हालांकि, तकिये पर चढ़ाने के लिए कवर मिलता है, लेकिन वह भी उसकी इज्जत नहीं ढंक पा रहा।

15 सितंबर को वाराणसी सिटी-गोरखपुर एक्सप्रेस के बी-1 कोच के बर्थ नंबर 30 से 33 तक के यात्रियों ने तकिया लेने से ही इन्कार कर दिया। कुछ यात्रियों ने तकिया लेकर कवर चढ़ाया। कवर लगाने के बाद भी दाग-धब्बे बाहर झांक रहे थे। यात्रियों ने कोच अटेंडेंट से शिकायत की, लेकिन नतीजा ढाक के वही तीन पात। कुछ तकिया को बगल में तो कुछ सिर की बजाय पैर के नीचे रखकर सो गए।

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जानकारों का कहना है कि चादर, तौलिया और कवर की धुलाई तो समय पर हो जाती, लेकिन तकिया गंदा ही पड़ा रह जाता है। इसकी धुलाई की कोई समय-सीमा भी निर्धारित नहीं है। इसी का फायदा उठाते हुए मैकेनाइज्ड लाउंड्री के कर्मचारी धुलाई नहीं करते। बेडरोल वितरण करने वाली एजेंसी भी तकिये को बोरे में भरकर एक से दूसरी ट्रेन और कोच में पहुंचाती रहती है।

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नियमानुसार तकिया को एक साल में कंडम घोषित कर देते हैं। कई रूटों पर तो कंडम तकिया भी यात्रियों को उपलब्ध करा दी जाती है। यह तब है, जब रेलवे प्रशासन यात्रियों को साफ-सुथरा बेडरोल उपलब्ध कराने का दावा करता रहता है। मुख्य जनसंपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह, पूर्वोत्तर रेलवे ने बताया कि कवर ही नहीं तकिया भी साफ रहता है। अगर इस तरह की शिकायत है तो जांच कराई जाएगी।


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