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Durga Puja 2022: गोरखपुर के इस दुर्गा मंदिर की अनोखी परंपरा, जहां माता को खून चढ़ाकर प्रसन्न करते हैं भक्त

Durga Puja 2022 गोरखपुर जिले में एक मंदिर है जहां देवी को खुश करने के लिए श्रद्धालुओं द्वारा रक्त अर्पित किया जाता है। इस मंदिर की अनोखी परंपरा आज से ही नहीं बल्कि सैकड़ों साल पूर्व से है। आइए जानते हैं कैसी है यह परंपरा...

By Pragati ChandEdited By: Updated: Wed, 28 Sep 2022 05:18 PM (IST)
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Durga Puja 2022: बांसगांव कस्बे में स्थित दुर्गा मंदिर। फोटो: जागरण

प्रगति चंद, गोरखपुर। नवरात्रि की धूम पूरे देश में है। हर तरफ मां भवानी को प्रसन्न करने में भक्त जुटे हुए हैं। श्रद्धालु दूर-दूर तक देवी दर्शन के लिए पहुंच रहे हैं। इसी क्रम में आज हम आपको उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक अनोखे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं। जहां मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए उनके चरणों में भक्तों का खून चढ़ाया जाता है। यह परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है। आइए जानते हैं इस मंदिर के बारे में...

नवजात से लेकर बजुर्गों तक का चढ़ता है रक्त

हम बात कर रहे हैं जिले के बांसगांव स्थित दुर्गा मंदिर का। इस मंदिर में पिछले 300 से भी अधिक वर्षों से शरीर के किसी हिस्से से माता को रक्त चढ़ाने की परंपरा चली आ रही है। यह परंपरा क्षत्रियों के श्रीनेत वंश के लोगों द्वारा निभाई जाती है। श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में सच्चे मन से सिर झुकाने वाले हर व्यक्ति की मन्नत पूरी होती है। इस परंपरा के अंतर्गत 12 दिन के नवजात से लेकर 100 साल के बुजुर्ग तक का रक्त चढ़ाया जाता है। माना जाता है कि जिन नवजातों के ललाट से रक्त चढ़ाया जाता है, वे मां दुर्गा की कृपा से प्राप्त हुए होते हैं।

12 दिन के मासूमों का भी चढ़ाया जाता है रक्त

नवमी के दिन मां दुर्गा को रक्त अर्पित करने की परंपरा को निभाने के लिए देश- विदेश में रहने वाले लोग भी आते हैं। 12 दिन के बाद के नवजात बच्चों को भी लेकर श्रद्धालु मंदिर में पहुंचते हैं और उनके ललाट से रक्त लेकर मां को अर्पित करते हैं। इसके बाद आशीर्वाद के रूप में माता के चरणों से भभूत लेकर ललाट पर लगाते हैं।

कितने जगह से निकाला जाता है रक्त

उपनयन संस्कार के पहले तक एक जगह ललाट (लिलार) और जनेऊ धारण करने के बाद युवकों, अधेड़ों व बुजुर्गों के शरीर से नौ जगहों पर एक ही उस्तरे से चीरा लगाकर खून निकाला जाता है। रक्त को बेलपत्र में लेकर मां दुर्गा के चरणों में अर्पित कर भभूत लेकर रक्त निकले स्थानों पर लगाया जाता है। भक्तों की मानें तो ऐसा करते ही खून का बहाव खत्म हो जाता है।

अष्टमी के दिन लगता है भव्य मेला

इस मंदिर में अष्टमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन होता है। मंदिर के गर्भगृह में कई घंटे तक हवन पूजन के बाद शाम 8:00 बजे भक्तों के लिए कपाट खोल दिया जाता है। इस दिन क्षेत्र के सभी लोग यहां पूजन-अर्चन करने के बाद मेले का आनंद उठाते हैं।

क्या कहते हैं भक्त

क्षेत्र के धोबौली-गहरवार के रहने वाले केशव सिंह, गोमती सिंह, विनोद सिंह और राजेश सिंह का कहना है कि इस परंपरा को वे कई पुस्तों से बुजुर्गों को निभाते देखा, जिसका निर्वहन हर साल करते हैं। इनके परिवार के कई लोग रोजगार के सिलसिले में बाहर रहते हैं लेकिन नवरात्रि के नवमी के दिन सभी लोग अपनी भागीदारी दर्ज करने आते हैं।

क्या कहते हैं पुजारी

दुर्गा मंदिर के पुजारी पं. श्रवण कुमार पांडेय ने बताया कि रक्त चढ़ाने की परंपरा काफी पुरानी है। इस वर्ष नवरात्रि नौ दिनों का होने के चलते तीन अक्टूबर को अष्टमी तथा चार अक्टूबर को नवमी तिथि पड़ रही है। उन्होने बताया कि सोमवार को पड़ने वाली अष्टमी तिथि को मंदिर के गर्भगृह में अपराह्न 4 बजे से शुरू होने वाला हवन पूजन का कार्यक्रम रात 8 बजे सम्पन्न होने के साथ ही मंदिर का कपाट श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जायेगा। वहीं नवमी को नवजात शिशु, युवा और बुजुर्ग माता के चरणों में रक्त अर्पित करेंगे।

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