200 साल से वैष्णव परंपरा को संजोए है यह कुटी, जानिए कौन थे पवहारी महराज
पवहारी महराज की यह कुटी दो सौ साल से अधिक समय से वैष्णव परंपरा की वाहक है। यहां संस्कृत भाषा की समृद्धि हो रही है।
By Edited By: Updated: Fri, 25 Jan 2019 10:11 AM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। दो सौ साल से अधिक समय से देवरिया जनपद की पैकौली कुटी संस्कृत की समृद्धि के साथ वैष्णव संप्रदाय का प्रचार-प्रसार कर रही है। कुटी में आज भी गुरु-शिष्य परंपरा जीवित है। वसुधैव कुटुंबकम के मंत्र के साथ कुटी का विस्तार उत्तर प्रदेश व बिहार में 365 शाखाओं तक है। देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में शिष्य जुड़े हैं।
इसमें उत्तर प्रदेश में पैकौली कुटी के अलावा बैकुंठपुर, बड़हलगंज, अयोध्या व बिहार में पश्चिमी चंपारण, आरा, विजयीपुर आदि कुटी प्रमुख हैं। 70 बीघा में फैली मुख्य कुटी पैकौली में श्रीराम, जानकी, लक्ष्मण व हनुमान जी की अष्टधातु की बेशकीमती प्रतिमाएं दिव्य मंदिर में आज भी विराजमान हैं। मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। पवहारी (पयहारी) महराज जमात के साथ गांव में रात्रि विश्राम करते हैं। गुरुमंत्र देने के बाद तुलसी दल प्रसाद के रूप में देने की परंपरा है। नजीर है बैंकुंठपुर महाविद्यालय 1958 में श्री बैकुंठनाथ पवहारी संस्कृत महाविद्यालय बैकुंठपुर देवरिया की स्थापना पंचम पवहारी महराज उपेंद्र दास ने किया।
यहां वटुकों को निश्शुल्क शिक्षा दी जाती है। काशी की परंपरा का अनुकरण कर इस महाविद्यालय की नींव रखी गई। संस्था आज भी संस्कृत को आलोकित करने के साथ ही समृद्ध कर रही है। यहां वेद वटुक निश्शुल्क संस्कृत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहां से अच्छे-अच्छे वेदपाठी ब्राह्मण पैदा हुए हैं, जो देश में संस्कृत और संस्कूति का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
सातवें पवहारी महराज के रूप में विराजमान हैं राघवेंद्र दास प्रथम पवहारी महराज लक्ष्मीनारायण दास जी, दूसरे सियाराम दास, तीसरे अवध किशोर दास, चौथे मणिराम दास जी, पांचवें उपेंद्र दास जी महराज, छठवें ऋषिराम दास जी महराज व सातवें पवहारी महराज के रूप में गद्दी पर राघवेंद्र दास जी विराजमान हैं।
इसमें उत्तर प्रदेश में पैकौली कुटी के अलावा बैकुंठपुर, बड़हलगंज, अयोध्या व बिहार में पश्चिमी चंपारण, आरा, विजयीपुर आदि कुटी प्रमुख हैं। 70 बीघा में फैली मुख्य कुटी पैकौली में श्रीराम, जानकी, लक्ष्मण व हनुमान जी की अष्टधातु की बेशकीमती प्रतिमाएं दिव्य मंदिर में आज भी विराजमान हैं। मंदिर श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। पवहारी (पयहारी) महराज जमात के साथ गांव में रात्रि विश्राम करते हैं। गुरुमंत्र देने के बाद तुलसी दल प्रसाद के रूप में देने की परंपरा है। नजीर है बैंकुंठपुर महाविद्यालय 1958 में श्री बैकुंठनाथ पवहारी संस्कृत महाविद्यालय बैकुंठपुर देवरिया की स्थापना पंचम पवहारी महराज उपेंद्र दास ने किया।
यहां वटुकों को निश्शुल्क शिक्षा दी जाती है। काशी की परंपरा का अनुकरण कर इस महाविद्यालय की नींव रखी गई। संस्था आज भी संस्कृत को आलोकित करने के साथ ही समृद्ध कर रही है। यहां वेद वटुक निश्शुल्क संस्कृत की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। यहां से अच्छे-अच्छे वेदपाठी ब्राह्मण पैदा हुए हैं, जो देश में संस्कृत और संस्कूति का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं।
सातवें पवहारी महराज के रूप में विराजमान हैं राघवेंद्र दास प्रथम पवहारी महराज लक्ष्मीनारायण दास जी, दूसरे सियाराम दास, तीसरे अवध किशोर दास, चौथे मणिराम दास जी, पांचवें उपेंद्र दास जी महराज, छठवें ऋषिराम दास जी महराज व सातवें पवहारी महराज के रूप में गद्दी पर राघवेंद्र दास जी विराजमान हैं।
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