UP News: गोरखपुर रामगढ़ताल में इस वजह से मरी थीं मछलियां, कारण जानकर हो जाएंगे हैरान
गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने तकरीबन 20 करोड़ रुपये से अधिक पर 10 साल तक मछली मारने का ठेका दिया है। ठेका लेने वाली मत्स्यजीवी सहकारी समिति लिमिटेड तारामंडल रोड मनहट के पदाधिकारियों के मुताबिक बीते 28 जून की सुबह ही मछलियों के मरने की जानकारी हुई। दावा है कि बारिश के बाद तेज धूप निकलने से मछलियां मर गईं।
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। रामगढ़ताल में बीते दिनों हुई मछलियों की मौत ताल के पानी में आक्सीजन की कमी के कारण हुई है। उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से दी गई रिपोर्ट में घुलित आक्सीजन सामान्य से कम बताया गया है।
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अपनी रिपोर्ट गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) को सौंप दी है। बोर्ड की ओर से कुछ सुझाव भी दिए गए हैं। ताल में जलस्तर बनाए रखने एवं पानी की गुणवत्ता को मानक के अनुरूप रखने के लिए जीडीए की ओर से भी जरूरी कदम उठाए जाएंगे। ताल में 20 जून को अचानक बड़ी संख्या में मछलियां मरी पाई गई थीं।
मछलियों के मरने के कारणों को लेकर तरह-तरह के दावे किए जा रहे थे। मछलियों के मरने के कारण का पता लगाने के लिए जीडीए ने उत्तर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय को पत्र लिखा था। जिसके बाद कर्मचारी ने विभिन्न स्थानों से ताल के पानी का नमूना लिया था।
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क्षेत्रीय प्रयोगशाला में जांच के बाद गुरुवार को रिपोर्ट प्राधिकरण को सौंप दी गई। इस रिपोर्ट में घुलित आक्सीजन की मात्रा सामान्य से कम बताई गई और इसी को मछलियों के मरने का संभावित कारण माना गया। घुलित आक्सीजन की सामान्य मात्रा चार होती है। जबकि अलग-अलग स्थानों पर ताल में 2.8 से 3.8 तक है।
बीओडी अधिक, सीओडी मानक से कम ताल में बायोलाजिकल आक्सीजन डिमांड (बीओडी) एवं केमिकल आक्सीजन डिमांड (सीओडी) मानक से अधिक है। विशेषज्ञ इसको भी मछलियों की मौत का कारण मानते हैं।
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय पर्यावरण विज्ञान के अध्यक्ष रहे पर्यावरणविद प्रो. डीके सिंह बताते हैं कि तापमान बढ़ने के कारण भी पानी में आक्सीजन की मात्रा घटती है। सामान्य से कम आक्सीजन होना मछलियों के मरने का कारण हो सकता है।
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प्रदूषण नियंत्रण विभाग की रिपोर्ट में यह मानक से काफी कम नजर आ रही है। प्रभारी मुख्य अभियंता किशन सिंह ने बताया कि रिपोर्ट मिल गई है। जो सुझाव दिए गए हैं। सुधार के लिए सभी जरूरी उपाय किए जाएंगे।
यह हैं प्रमुख कारण
प्रो. डीके सिंह का कहना है कि ताल में आक्सीजन की मात्रा कम होने का प्रमुख कारण दूषित जल है। पानी को शोधन के बाद ही ताल में डाला जाना चाहिए। जो भी सीवरेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाए गए हैं, उन्हें मानक के अनुरूप संचालित होना चाहिए। इसके अतिरिक्त आसपास ठोस कूड़ा होने से भी समस्या होती है।
प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने दिए हैं ये सुझाव
- गोड़धोइया नाला के जरिए बिना शोधित किए पानी रामगढ़ताल में गिर रहा है। इसके शोधन की व्यवस्था होनी चाहिए।
- रामगढ़ताल में डीजल/पेट्रोल द्वारा संचालित मोटर बोट से तेल लीक होने की दशा में ताल का पानी दूषित हो सकता है।
- रामगढ़ताल के किनारे एवं आसपास के क्षेत्रों में ठोस अपशिष्ट का निस्तारण नहीं होना चाहिए। इसे प्रतिबंधित करने की जरूरत है।
- रामगढ़ताल के जलस्तर को नियंत्रित करने के लिए समुचित व्यवस्था करनी होगी।
- ताल में गैर बिन्दु स्रोत, जैसे खेतों से बहकर आए रासायनिक कीटनाशकों एवं रासायनिक उर्वरकों को प्रवाहित न होने दिया जाए।
2006 में भी बड़े पैमाने पर मरीं थीं मछलियां
रामगढ़ताल में 2006 में भी बड़े पैमाने पर मछलियां मरी थीं। उस समय भी ताल में घुलित आक्सीजन मानक से काफी कम पायी गई थीं। बीच में भी मछलियों के मरने की घटना हुई थह। हालांकि पहले की तुलना में ताल की सफाई में अब काफी अंतर आया है। ताल में जमी सिल्ट के कारण भी पानी दूषित है।
जीडीए उपाध्यक्ष आनन्द वर्द्धन ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से घुलित आक्सीजन की मात्रा कम बताई गई है। कुछ सुझाव भी आए हैं। सफाई के बिन्दु पर पहले से काम किया जा रहा है। गोड़धोइया नाला परियोजना में सीटीपी का निर्माण भी हो रहा है। आसपास कूड़ा फेंकना प्रतिबंधित रहेगा। नाव संचालकों को भी सभी जरूरी कदम उठाने को कहा गया है। जलस्तर बढ़ाने के लिए भी प्रभावी कदम उठाए गए हैं। आगे भी सभी जरूरी कदम उठाए जाएंगे।