North Eastern Railway: इतिहास में पहली बार लगातार 39 दिन नहीं चली एक भी ट्रेन, बंद रहे स्टेशन
रेलवे के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि 39 दिनों तक एक भी यात्री ट्रेनें नहीं चलीं। स्टेशनों पर ताला लटका रहा। अप्रैल और मई महज दो माह में ही पूर्वोत्तर रेलवे को करीब 350 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा।
गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना की मार से यातायात क्षेत्र भी प्रभावित रहा। पूरे वर्ष लोग आवागमन को लेकर परेशान रहे। रेलवे और रोडवेज अपनी सेवाओं को शुरू करने के लिए जूझती रहे। वर्ष बीत रहा, लेकिन अभी भी यातायात व्यवस्था पूरी तरह पटरी पर नहीं आ सकी है। 24 मार्च को पूरे देश में लाकडाउन शुरू होने से एक दिन पहले ही देशभर की रेल सेवाएं बंद हो गईं। ट्रेनों के साथ आम जनजीवन भी ठप हो गया। जो जहां था वहीं ठहर गया।
रेलवे के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि 39 दिनों तक एक भी यात्री ट्रेनें नहीं चलीं। स्टेशनों पर ताला लटका रहा। अप्रैल और मई महज दो माह में ही पूर्वोत्तर रेलवे को करीब 350 करोड़ रुपये का घाटा उठाना पड़ा। इस दौरान पूर्व अनुमानित 340 लाख की जगह रेलवे को एक भी यात्री नहीं मिले। जो लोग फंसे थे उन्हें घर की याद सताने लगी। कंपनियों के हाथ खड़े करने के बाद लोग सड़क पर उतर आए। मुश्किल की इस घड़ी में रेलवे ने राह दिखाई। एक मई से रेलवे की श्रमिक ट्रेनें लोगों के लिए देवदूत बनकर प्रकट हुईं। पूर्वोत्तर रेलवे में 911 श्रमिक ट्रेनों से कुल 9.38 लाख लोग रोडवेज की बसों से अपने घर सकुशल घर पहुंचे। 313 श्रमिक ट्रेनों ने सिर्फ गोरखपुर में ही 3.1 लाख लोगों को उताकर उनके चेहरे और परिवार में खुशियां लौटाईं। खास बात रही कि प्रवासियों को ट्रेनों और बसों में किराया नहीं देना पड़ा। रेलवे ने रास्ते में खानपान की व्यवस्था भी उपलब्ध कराई थी। हालांकि, टाइम टेबल के अनुसार नहीं चलने पर श्रमिक ट्रेनों का भटकना भी चर्चा में रहा। खैर, एक जून से स्पेशल के रूप में एक्सप्रेस ट्रेनें चलने लगीं। बस सेवाएं तो पूरी तरह पटरी पर आ गई हैं। यूपी-बिहार बस सेवा भी शुरू हो गई है। लेकिन ट्रेनें आज भी गिनती की ही चल रही हैं। लोग इंटरसिटी और पैसेंजर ट्रेनों (सवारी गाडिय़ों) को चलने का इंतजार कर रहे हैं।
चलती रहीं मालगाडिय़ां, नहीं थमा विकास का पहिया
लाकडाउन में भले ही यात्री ट्रेनें नहीं चलीं, लेकिन मालगाडिय़ां देश के एक से दूसरे छोर तक आवश्यक सामग्री पहुंचाती रहीं। रेलवे के इंजीनियरों और कर्मचारियों ने भी अपने आत्मबल का परिचय दिया। जब बाजार में मास्क नहीं मिल रहा था, उस समय यांत्रिक कारखाना में बड़ी मात्रा में मास्क, सैनिटाइजर, फेस सील्ड, पर्सनल प्रोटेक्शन इक्यूपमेंट (पीपीई किट) तैयार होने लगे। ट्रैक मेंटेनर रेल लाइनों को दुरुस्त करने में जुट गए। ट्रेनों के पहिए थमे रहे, लेकिन विकास का पहिया आगे बढ़ता रहा। कोरोना काल में भी पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने नई कीर्तिमान गढ़े। चाहें वह यात्री सुविधाएं हों, निर्माण कार्य हों या रेल संचालन का सु²ढ़ीकरण। कर्मचारियों का उत्साह बढ़ाते हुए रेलवे ने समय से वेतन उपलब्ध कराया। सेवानिवृत्ति की प्रक्रिया भी पूरी की।
पूरी अर्थव्यवस्था चरमराने के बाद आज भी रेलवे भारत के लोगों की जीवनरेखा बनी हुई है। रेलकर्मियों की दृढ इच्छाशक्ति का परिणाम ही है कि ट्रेनें कोहरे में भी 60 की जगह 70 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ रहीं हैं। पूर्वोत्तर रेलवे के सभी मुख्य मार्गों पर इलेक्ट्रिक इंजनों से ट्रेनें चलने लगी हैं। ट्रेनों का समय पालन तो सही हुआ ही है, दुर्घटनाओं पर भी पूरी तरह अंकुश लगा है। ट्रेनों को 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से चलाने के लिए पटरियों, स्लीपर और प्वाइंटों को बदला जा रहा है। डिस्टेंट सिग्नल लगाए जा रहे हैं। आटोमेटिक ब्लाक सेक्शन तैयार किए जा रहे हैं।
काउंटरों पर ताला, आरक्षित टिकटों पर जनरल की यात्रा
नौ माह से अधिक हो गए, लेकिन अभी तक जनरल टिकटों की बिक्री शुरू नहीं हुई। काउंटरों पर ताला लटका हुआ है। यात्री अभी भी आरक्षित टिकटों पर जनरल बोगियों में यात्रा कर रहे हैं। वेङ्क्षटग टिकटों पर यात्रा की अनुमति नहीं है। मास्क अनिवार्य है। स्टेशन ही नहीं ट्रेनों में भी शारीरिक दूरी का पालन कराया जा रहा है।
कोरोना काल में भी हासिल कर ली उपलब्धियां
संक्रमित लोगों के उपचार के लिए 217 कोविड कोच तैयार।
सुरक्षित यात्रा के लिए गोरखपुर में बनने लगे एंटी कोविड कोच।
गोरखपुर यांत्रिक कारखाना में मेमू ट्रेनों की मरम्मत शुरू।
कारखाने में बनने लगे पुराने कोचों से न्यू माडिफाइड वैगन।
गोरखपुर पुल कारखाना को मिला आइएसओ का प्रमाण पत्र।
भटनी- औंडि़हार रेलमार्ग का विद्युतीकरण कार्य भी पूरा।
गोरखपुर से वाराणसी तक चलने लगी इेलेक्ट्रिक ट्रेनें।
गोरखपुर में जनता के लिए खोला गया कौवाबाग अंडरपास।
सैटेलाइट के रूप में कैंट स्टेशन का नव निर्माण कार्य शुरू।
गोरखपुर-नौतनवां- बढऩी-गोंडा रेलमार्ग का विद्युतीकरण शुरू।
रेलवे स्टेडियम में क्रिकेट का पवेलियन व ओपेन जिम तैयार।
एलएनएम रेलवे अस्पताल में लगी डिजिटल एक्सरे मशीन।
स्टेशन पर पूर्वोत्तर रेलवे का सबसे बड़ा वेटिंग हाल खुला।
प्लेटफार्म नंबर नौ पर हैंगिंग वेटिंग हाल की भी शुरुआत।
गोरखपुर सहित एनईआर की 21 ट्रेनों में लगे एलएचबी कोच।
21 स्टेशनों पर वाईफाई और 9 पर लगाया गया डिस्प्ले बोर्ड।
गोरखपुर सहित प्रमुख स्टेशनों पर शुरू हुआ वीडियो सर्विलांस सिस्टम।
एचआरएमएस और ई आफिस पर आनलाइन होने लगे कार्य।
कर्मचारियों का बनने लगा ई पास, इंटरनेट पर बुक होने लगे टिकट।
डोमिनगढ-गोरखपुर-कुसम्ही तक तीसरी लाइन के ब्रिज तैयार।
गोरखपुर-नकहा दूसरी रेल लाइन के का निर्माण लगभग पूरा।