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पूर्व आईजी ने लिखी डॉन श्रीप्रकाश शुक्‍ला के अंत की कहानी, 90 के दशक के आपराधिक कालखंड की सच्ची दास्तान है 'वर्चस्व'

नब्बे के ही दशक में जब दिन-दहाड़े सरेआम हत्या होने लगी। माफिया का काफिला जिधर से गुजर जाता सड़कें अपने खाली हो जाया करती थीं। उन्हीं दिनों की पैदावार गोरखपुर के श्रीप्रकाश शुक्ला के आतंक ने यूपी और बिहार में सबकी नींदें उड़ा दी थीं। गोरखपुर में केबल के धंधे में पैर जमाने के लिए एक हफ्ते में ही एक-एक कर दर्जन भर लोगों को मार डाला था।

By Satish pandey Edited By: Vivek ShuklaUpdated: Fri, 01 Mar 2024 11:32 AM (IST)
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1997 में बाहुबली राजनेता वीरेंद्र शाही को गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला ने दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया था।
सतीश पांडेय, गोरखपुर। 1993 में पहली हत्या कर अपराध की दुनिया में कदम रखने वाला 20 साल के नौजवान आने वाले कुछ वर्षों में यूपी से लेकर बिहार तक आतंक कायम कर दिया। अपहरण हो या जबरन वसूली, रेलवे के ठेकों के वर्चस्व की जंग हो या फिर कबाड़ नीलामी का ठेका... हर जगह गोरखपुर के श्रीप्रकाश शुक्ला का सिक्का चलता था।

उसकी आंखों में किसी का भय नहीं था। किसी के लिए दया नहीं थी। वह ऐसा बेदर्द इंसान था जिसने धंधा जमाने के लिए हत्या पर हत्या कर डाली। यूपी एसटीएफ के संस्थापक सदस्य के साथ ही श्रीप्रकाश को मुठभेड़ में ढेर करने वाली टीम का हिस्सा रहे पूर्व आइजी राजेश पाण्डेय ने अपनी पुस्तक ‘वर्चस्व’ में इस दुर्दांत अपराधी के उदय से अंत तक का पूरा किस्सा बताया है।

नब्बे के ही दशक में जब दिन-दहाड़े सरेआम हत्या होने लगी। माफिया का काफिला जिधर से गुजर जाता, सड़कें अपने खाली हो जाया करती थीं। उन्हीं दिनों की पैदावार गोरखपुर के श्रीप्रकाश शुक्ला के आतंक ने यूपी और बिहार में सबकी नींदें उड़ा दी थीं। गोरखपुर में केबल के धंधे में पैर जमाने के लिए एक हफ्ते में ही एक-एक कर दर्जन भर लोगों को मार डाला था।

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श्रीप्रकाश शुक्ला ने अत्याधुनिक हथियारों से वीरेंद्र शाही समेत चार बड़े हत्याकांड अंजाम देकर पुलिस-प्रशासन सहित सरकार को खुली चुनौती दे डाली थी। सामने चाहे कितना भी रसूखदार आदमी हो, उस पर गोली चलाने में श्रीप्रकाश के हाथ नहीं कांपते थे। उससे निपटने के लिए चार मई, 1998 को यूपी पुलिस के तीन अधिकारियों की देखरेख में एसटीएफ का गठन हुआ, जिसमें पूर्व आइजी राजेश पांडेय भी शामिल रहे।

एसटीएफ ने पुलिस महकमे में इलेक्ट्रानिक सर्विलांस की शुरुआत की। इसी के बल पर 22 सितंबर, 1998 को गाजियाबाद में श्रीप्रकाश शुक्ला और उसके दो साथियों को मुठभेड़ में मार गिराया। लंबे समय तक श्रीप्रकाश की निगरानी करने वाले राजेश पांडेय ने अपनी किताब में लिखा है कि वह टार्गेट को हिट करने से पहले रेकी कराता था, जिसे वह कुंडली कहता था। इसके लिए उसने करीब दर्जन भर पढ़ने वाले लड़कों को रखा हुआ था। 296 पेज की यह पुस्तक राधाकृष्ण पेपरबैक्स ने छापी है।

‘वर्चस्व’ में इन घटनाओं का है जिक्र

मोकामा के सूरजभान सिंह ने श्रीप्रकाश को एके 47 दिय था जिससे उसने 22 फरवरी, 1996 को फैजाबाद में सत्येंद्र सिंह उर्फ लंगड़ पर हमला किया था। श्रीप्रकाश के फोटो में सिर्फ गर्दन तक का हिस्सा उसका बाकी अभिनेता सुनील शेट्टी का था। वह आनंद की बहन से बात करता था जिसकी वजह से दोनों में दूरी बन गई। लखनऊ का विवेक लधानी अपहरण कांड श्रीप्रकाश ने नहीं, आनन्द पाण्डेय ने किया था। उसके डर से व्यापारी नेता मुंबई भाग गए। प्रदेश सरकार के पूर्व मंत्री को धमकाया जो अस्पताल में भर्ती हो गए। तत्कालीन मंत्री का नाम लेकर डीजीपी को धमकाया। स्वजन को हिरासत में लेने पर गोरखपुर के इंस्पेक्टर कैंट और एसएसपी को फोन पर धमकी दी। गोरखपुर के बाहुबली पूर्व मंत्री को धमकी दी।

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