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गरीब रथ व डबल डेकर ट्रेनों के भविष्य पर संकट

भविष्य में गरीब रथ जैसी ट्रेनें इतिहास बन जाएंगी या अति आधुनिक लिंक हाफमैन बुश (एलएचबी) कोचों से चलाई जाएंगी जो अधिक खर्चीली होगी।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Thu, 27 Sep 2018 05:03 PM (IST)
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गरीब रथ व डबल डेकर ट्रेनों के भविष्य पर संकट

गोरखपुर, (प्रेम नारायण द्विवेदी)। गरीब रथ और डबल डेकर ट्रेनों के संचलन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। भविष्य में यह ट्रेनें इतिहास बन जाएंगी या अति आधुनिक लिंक हाफमैन बुश (एलएचबी) कोचों से चलाई जाएंगी लेकिन अधिक खर्चीला होने के कारण इन कोचों वाली ट्रेनों का सफर गरीबों के लिए भारी पड़ सकता है। उन्हें गरीब रथ वाली रियायत और सुविधा नहीं मिल पाएगी। डबल डेकर में भी सफर महंगा पडऩे लगेगा।
दरअसल, भारतीय रेलवे में सिर्फ अति आधुनिक लिंक हाफमैन बुश (एलएचबी) कोचों का ही निर्माण हो रहा है। ट्रेनों में अब परंपरागत की जगह सिर्फ एलएचबी कोच ही लगाए जाएंगे। ऐसे में जब गरीब रथ और डबल डेकर ट्रेनों के कोचों की आयु (25 वर्ष) समाप्त हो जाएगी तो उनकी जगह दूसरे कोच नहीं मिल पाएंगे।

भिन्न होते हैं कोच
गरीब रथ और डबल डेकर ट्रेनों के कोच परंपरागत होते हैं। डबल डेकर में बोगी जहां दो मंजिला होती है वहीं गरीब रथ में सिर्फ एसी थर्ड श्रेणी की बोगियां लगाई जाती हैं। जिसमें एक कूपे में 9 बर्थ होती हैं। यात्री की इच्छा पर ही बेडरोल आदि की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है। गरीब रथ की रेक में चेयरकार लगाए जाते हैं। तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने गरीब रथ चलाया था। हालांकि इसके विकल्प की संभावना से रेलवे अभी इन्कार नहीं कर रहा है।

एनईआर रूट पर दो गरीब रथ
पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय गोरखपुर के रास्ते एक गरीब रथ सहरसा- अमृतसर-सहरसा और दूसरी मुजफ्फरपुर-आनंदविहार-मुजफ्फरपुर के बीच चल रही है। इसके अलावा लखनऊ जंक्शन से आनंदविहार के बीच एक डबल डेकर ट्रेन भी चल रही है।

एलएचबी कोच के फायदे

- परंपरागत की अपेक्षा ज्यादा सुरक्षित 

- दुर्घटना के समय कोच एक के ऊपर एक नहीं चढ़ते

- परंपरागत की अपेक्षा 1.7 मीटर ज्यादा लंबे 

- कोचों में सीट और बर्थों की चौड़ाई अधिक

- स्लीपर 72 की जगह 80 व एसी थर्ड में 64 की जगह 32 बर्थ

- हल्का होने के चलते पटरियों पर दबाव कम

- ऊर्जा की बचत होती है। मरम्मत की जरूरत कम

सिर्फ एलएचबी कोच ही बन रहे हैं
पूर्वोत्‍तर रेलवे के सीपीआरओ संजय यादव ने बताया कि वर्तमान में सिर्फ एलएचबी कोच ही बन रहे हैं। परंपरागत कोच का उपयोग बंद हो गया है। भविष्य में बोर्ड के निर्देश पर ही ट्रेनों में कोचों का निर्धारण किया जाएगा।

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