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आम नहीं खास है गोरखपुर का यह आम, स्‍वाद व सुगंध ऐसी क‍ि हर कोई ख‍िंचा चला आए

Gaurjit Mango पूर्वांचल खासकर गोरखपुर और बस्‍ती ज‍िले का गौरजीत आम अपने स्‍वाद व सुगंध के ल‍िए मशहूर है। इसका स्‍वाद ऐसा है क‍ि इसकी कीमत अन्‍य आमों से दो गुना होने के बाद भी यह बाम बागीचे से ही ब‍िक जाता है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Thu, 16 Jun 2022 10:02 AM (IST)
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गोरखपुर के गौरजीत आम का स्‍वाद व सुगंध बेजोड़ है। - प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर
गोरखपुर, जागरण संवाददता। आकार में छोटा और स्वाद में बड़ा धमाका। सुगंध ऐसी कि लोग खिंचे चले आएं। कुछ ऐसी पहचान है गौरजीत की। इसकी तो बात ही कुछ और है। यह पूरी शान के साथ बाजार में उतर चुका है। दशहरी व कपूरी से दोगुनी कीमत पर बिकने के बावजूद लोग इसे हाथों हाथ ले रहे हैं।

आम के कुनबे पर राज करता है गौरजीत

अपने अनूठे स्वाद, महक व मिठास के साथ गौरजीत आम के कुनबे पर राज करता है। खाने के बाद हल्की डकार के साथ देर तक यह लोगों को आम खाने का आभास कराता है। बाजार में रोजाना गौरजीत की 15 टन से अधिक की मांग है। उप निदेशक उद्यान ओपी वर्मा का कहना है कि आम खाने का आभास कराने वाला गौरजीत दुनियां का इकलौता फल है। इसका एक अलग ही फ्लेवर है। दशहरी व चौसा काटकर खाए जाने वाले आम हैं, जबकि यह चूस कर खाया जाने वाला फल है।

पत्तों के साथ होती है गौरजीत की बिक्री

गौरजीत को पकाने के लिए किसी दवा अथवा रसायन की आवश्यकता नहीं होती है। पूरब का सबसे पहले तैयार होने वाला आम है। जून के प्रथम सप्ताह से यह डालियों पर ही पकने लगता है। बागवान इसी लिए पत्तियों के साथ इसकी बिक्री करता है। आकर्षक पीले व हल्के लाल रंग का गोल आकार के चलते यह दूर से ही लोगों को भाता है।

बगीचे में ही हो जाता है गौरजीत का सौदा

गोरखपुर, सिद्धार्थनगर, बस्ती, महराजगंज, संतकबीनगर, देवरिया, कुशीनगर जैसे जिलों में बड़े पैमाने पर तैयार होने वाला गौरजीत का सौंदा तो बाग से ही हो जाता है। बाग मालिकों को इसकी बिक्री के परेशान नहीं होना पड़ता है। बाग से ही थोक से लेकर फुटकर विक्रेता बोली लगाकर इसकी खरीददारी कर लेते हैं।

बस्ती में विकसित हुआ गौरजीत

संयुक्त निदेशक उद्यान बस्ती डा.अतुल सिंह का कहना है कि गौरजीत का स्वाद अल्फांसों या हापुस की तरह है। कुछ मामलों में यह उससे भी बेहतर है। इसकी उत्पत्ति गौरखपुर के किसी गांव से है। वर्ष 1958 में उत्तर प्रदेश में बस्ती व सहारनपुर दो आम शोध केंद्र थे। अब यह शोध केंद्र भारत सरकार के पास चले गए हैं। बस्ती में अब कोई आम शोध केंद्र नहीं है। वर्ष 1958 से ही गौरजीत को बस्ती शोध केंद्र पर संकलित किया गया और उससे पौधे विकसित किए गए। इससे यह अब बस्ती के नाम से जाना जाने लगा।

ऐसे पड़ा गौरतीज नाम

गौरजीत के विषय में तमाम कहानियां प्रचलित है। यह भी कहा जाता है कि पहले इसका कोई नाम नहीं था। अंग्रेजों के समय में एक प्रतियोगिता हुई। उसमें इसे भी रखा गया। प्रतियोगिता में शामिल करने के लिए अंग्रेजों ने इसे गंवार नाम दिया था। बाद में प्रतियोगिता में प्रतियोगिता में इसे पहला स्थान मिला और यह गौरजीत हो गया।

कम समय में गौरजीत में आने लगते हैं फल

गौरजीत बेहद कम समय में तैयार होने वाला पौधा है। इसका पौधा पहले ही साल से फल देने लगता है, लेकिन उस समय डालियां कमजोर होती हैं। इस लिए फल लेने के लिए कम से कम तीन वर्ष का समय रखा जाता है। तीन वर्ष बाद इसमें करीब 30 से 40 किलो फल आने लगते हैं। उस समय से लोग थोड़ा-थोड़ा फल इससे लेते हैं।

इसलिए भी है गौरजीत का दबदबा

गौरजीत के दबदबे की एक और वजह है। पूर्वांचल में बारिश बहुत होती है। लगातार बारिश से आम में वह स्वाद नहीं रह जाता है, जो शुरुआती दिनों में रहता है। गौरजीत को छोड़कर पूर्वांचल में जितने भी आम हैं, वह देर से तैयार होने वाले हैं। दशहरी, कपुरी, लंगड़ा, चौसा, आम्रपाली, मल्लिका सभी प्रजातियां देर से तैयार होने वाली हैं। जब तक यह प्रजातियां तैयार होती है, तब तक बाग से आधे से अधिक गौरजीत की बिक्री हो चुकी होती है। सबसे पहले बिक्री के चलते बाग मालिकों को इसकी अच्छी कीमत भी मिल जाती है। बाग में जब तक अन्य आम तैयार होते हैं, उस समय बारिश भी चरम पर होती है। इसके चलते आम में कीड़े लगने शुरू हो जाते हैं। उसकी मिठास कम हो जाती है। इसके चलते भी गौरजीत का दबदबा कायम रहता है।

प्रदेश के बाहर भी भेजे जा रहे हैं गौरजीत के पौधे

बस्ती से पंजाब, हिमाचल, बिहार, आंध्रप्रदेश, जम्मू, महाराष्ट्रा सहित कई प्रदेशों को गौरजीत बेचता है। इस लिए प्रदेश के बाहर भी अब गौरजीत के बाग तैयार हो रहे हैं। प्रतिवर्ष गोरखपुर-बस्ती मंडल से प्रतिवर्ष 10 से 15 हजार गौरजीत के पौधे लगाए जा रहे हैं। गोरखपुर-बस्ती मंडल में करीब 15 से 20 हजार हेक्टयेर आम के बाग हैं। इसमें करीब 10 प्रतिशत गौरजीत के पौधे होंगे।

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