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दूसरों के लिए प्रेरणा है गीताप्रेस का अपना 'अर्थशास्त्र', आय नहीं धर्मसेवा

धार्मिक पुस्तकें सस्ते दर पर पहुंचाने का 1923 में जब गीताप्रेस ने बीड़ा उठाया तो उसके पहले अपना तगड़ा 'अर्थशास्त्र' तैयार किया।

By Dharmendra PandeyEdited By: Updated: Fri, 08 Jun 2018 11:47 AM (IST)
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दूसरों के लिए प्रेरणा है गीताप्रेस का अपना 'अर्थशास्त्र', आय नहीं धर्मसेवा
गोरखपुर [गजाधर द्विवेदी]। देश के साथ ही विदेश में आम आदमी तक धार्मिक पुस्तकें सस्ते दर पर पहुंचाने का 1923 में जब गीताप्रेस ने बीड़ा उठाया तो उसके पहले अपना तगड़ा 'अर्थशास्त्र' तैयार किया। तभी तो बड़े घाटे के बावजूद प्रकाशन की सफलता निरंतर कायम है और घाटे से कभी प्रभावित नहीं हुआ।

आज उसी अर्थशास्त्र के बल पर धार्मिक पुस्तकें निर्बाध रूप से घर-घर पहुंच रही हैं। सस्ती, आकर्षक और टिकाऊ पुस्तकें ही गीता प्रेस की पहचान है। गीताप्रेस आम जन को लागत से 30 से 60 फीसद तक कम मूल्य पर पुस्तकें उपलब्ध कराता है। महत्वपूर्ण यह भी कि गीताप्रेस किसी व्यक्ति या संस्था से कोई दान नहीं लेता है। यहां प्रिटिंग की अत्याधुनिक टेक्नालाजी प्रयोग की जाती है। गीताप्रेस का यह 'अर्थशास्त्र' दूसरों के लिए एक प्रेरणा है।

गीताप्रेस, गोविंद भवन कार्यालय ट्रस्ट, कोलकाता की एक इकाई है। यह ट्रस्ट 'नो प्राफिट नो लॉस' पर कार्य करता है। गीताप्रेस घाटे से प्रभावित हुए बिना धर्मसेवार्थ प्रकाशन का कार्य करता रहे, इसके लिए गोविंद भवन कार्यालय ट्रस्ट ने आय के अन्य संसाधनों का विकास किया। इस आय से गीताप्रेस का घाटा पूरा किया जाता है। इसके लिए कपड़ों की तीन दुकानें गोरखपुर, कानपुर व ऋषिकेश में खोली गईं, जो आज भी नियमित आय का बड़ा स्रोत हैं। इसके अलावा गोरखपुर में करीब दस दुकानें गीताप्रेस भवन में हैं जो किराये पर दी गई हैं। ऋषिकेश में आयुर्वेद की एक फैक्ट्री भी लगाई गई है जो लाभ दे रही है।

इसके अलावा किसी वस्तु की कीमत बढऩे का मुख्य कारण मुनाफा होता है, लेकिन गीताप्रेस मुनाफे के लिए कार्य करता नहीं। यदि पुस्तक का एक संस्करण निकल गया, इसके बाद कागज के दाम में गिरावट आ गई तो भी गीताप्रेस दूसरे संस्करण की पुस्तक का दाम कम नहीं करता है, ताकि बाजार का संतुलन बना रहे, इससे होने वाली बचत से भी गीताप्रेस का कुछ घाटा पूरा हो जाता है।

आज भी 50 पैसे में संपूर्ण गीता

आज जब हर तरफ लोग महंगाई का रोना रोते हैं गीताप्रेस में सबसे सस्ती पुस्तक 50 पैसे में 'संपूर्ण गीता' व दो रुपये में 'हनुमान चालीसा' पाठकों को उपलब्ध कराता है। गीताप्रेस से प्रकाशित अभी तक की सबसे महंगी पुस्तक श्रीरामचरितमानस वृहदाकार है जिसकी कीमत 650 रुपये है। 14.5 इंच लंबी व 11 इंच चौड़ी यह पुस्तक 984 पेज की है। इसमें 16 रंगीन चित्र भी हैं। वित्तीय वर्ष 2017-18 में करीब कुल दो करोड़ 17 लाख पुस्तकों की बिक्री हुई। अर्थात प्रतिदिन लगभग 57 हजार पुस्तकों की बिक्री हुई। कल्याण पत्रिका की 24 लाख प्रतियां इसके अतिरिक्त बिकीं।

संस्थापक ने कर दी थी व्यवस्था

गीताप्रेस के ट्रस्टी देवीदयाल अग्रवाल ने बताया कि गीताप्रेस की स्थापना के समय ही संस्थापक सेठजी जयदयाल गोयंदका ने इसकी व्यवस्था कर दी थी कि भगवान की सेवा का कार्य कभी रुकने न पाए और समाज के अंतिम व्यक्ति तक भगवान की वाणी व धार्मिक पुस्तकें आसानी से पहुंच सकें, ताकि समाज में एक सकारात्मक वातावरण बने और सुंदर समाज का निर्माण हो सके। उद्देश्य पवित्र था, इसलिए कार्य आगे बढ़ता चला गया। उनके बाद जो लोग भी आए पवित्र व सेवा भाव से कार्य को आगे बढ़ाते रहे। 

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