Gita Press: आध्यात्मिक-सांस्कृतिक संपदा की सुगंध बिखेर रहा है गीताद्वार, इसकी रंगाई के लिए जयपुर से बुलाए जाएंगे कलाकार
Gita Press गीता प्रेस के मुख्य द्वार के बारीक नक्काशी की रंगाई के लिए जयपुर से कलाकार बुलाए जाएंगे। द्वार में देश के विभिन्न मंदिरों की कलाओं के प्रतीकों का समावेश है। ऐसे में अनगढ़ हाथों से रंगाई कराने पर द्वार के किसी प्रतीक के छिप जाने का खतरा है।
By Pragati ChandEdited By: Updated: Sat, 09 Jul 2022 08:55 AM (IST)
गोरखपुर, गजाधर द्विवेदी। Gita Press Gorakhpur: गीताप्रेस का गीताद्वार (मुख्य द्वार) सनातन संस्कृति की अनेक महत्वपूर्ण कलाओं का समुच्चय है। इसके निर्माण में देश के विख्यात मंदिरों की कलाओं का समावेश किया गया है। इसमें हिंदू, जैन, सिख व बौद्ध मंदिर की कलाओं को इतने बारीक ढंग से उकेरा गया है कि उनकी रंगाई के लिए जयपुर से कलाकारों को बुलाने पर विचार किया जा रहा है। यह द्वार हमारी आध्यात्मिक-सांस्कृतिक संपदा की सुगंध बिखेर रहा है। अनगढ़ हाथों से रंगाई कराने पर इस सुगंध के खो जाने और किसी प्रतीक के छिप जाने का खतरा है। इसलिए जयपुर के कलाकारों की इसमें मदद ली जाएगी।
शताब्दी समारोह के लिए तैयार हो रहा गीताप्रेस: शताब्दी वर्ष समारोह के लिए गीताप्रेस तैयार हो रहा है। भवनों की रंगाई हो चुकी है। केवल मुख्य द्वार ही बचा है। तीन खंडों में बने 13.10 मीटर ऊंचे इस द्वार का उद्घाटन 29 अप्रैल 1955 को प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। दक्षिण और नागर शैली में बने इस द्वार के प्रथम खंड का निर्माण अजंता, एलोरा के खंभों के आधार पर किया गया है। दूसरे खंड में रथारूढ़ भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कौरव सेना दिखा रहे हैं। तीसरे खंड में जनकपुर धाम के श्रीराम जानकी मंदिर की छतरियों की तरह छोटी छतरी बनाई गई है।
गीताद्वार की रंगाई के लिए स्थानीय कलाकारों ने खड़ कर दिए हाथ: मुख्य द्वार में जैन, बौद्ध व सिख धर्मस्थलों की कलाओं को शामिल करने के साथ ही दक्षिणेश्वर, काशी, मथुरा, जगन्नाथपुरी, भुवनेश्वर, जनकपुर, सूर्य मंदिर कोणार्क, मीनाक्षी मंदिर मदुरै, स्वर्ण मंदिर अमृतसर, खजुराहो, सांची, महाकाल मंदिर उज्जैन, केदारनाथ, बोधगया के प्रतीक भी समाहित हैं। अति बारीक नक्काशी की रंगाई के लिए स्थानीय कलाकारों ने हाथ खड़े कर दिए तो अब जयपुर से विशेष कलाकारों को बुलाने की तैयारी की जा रही है।
प्रथम खंड : प्रथम खंड भूमि तल पर है। इसकी ऊंचाई 4.25 मीटर और चौड़ाई 12 मीटर है। इसके दोनों खंभे दक्षिण भारत के गुफा मंदिर एलोरा के खंभों की तरह बनाए गए हैं। इस पर प्रेस का नाम तथा स्थापना काल हिंदी व अंग्रेजी में लिखा हुआ है।द्वितीय खंड : इसके ऊपर दूसरा खंड है। इसी खंड में संगरमर का बना वह चार घोड़ों वाला रथ है, जिस पर भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को कौरव सेना दिखा रहे हैं। रथ की लंबाई 1.82 मीटर और चौड़ाई 67.5 सेमी व ऊंचाई 42.5 सेमी है। कृष्ण की प्रतिमा 67 सेमी व अर्जुन की प्रतिमा की ऊंचाई 82.5 सेमी है। रथ लगभग 14 क्विंटल 40 किलोग्राम का है। रथ के सामने प्रसिद्ध गुहा मंदिर अजंता के मुख्य भाग को दर्शाया गया है। साथ ही बंगाल के सुप्रसिद्ध दक्षिणेश्वर के काली मंदिर की कला को स्थान दिया गया है। इसके अलावा अनेक प्रसिद्ध मंदिरों की कलाओं को इस खंड में शामिल किया गया है।
तृतीय खंड : तीसरा खंड जनकपुर धाम के श्रीजानकी मंदिर की याद दिलाता है। जानकी मंदिर की छतरियों की तरह छतरी बनाई गई है। उसके दोनों तरफ 'सत्यं वद' व 'धर्मं चर' लिखा हुआ है। शिखर भाग कोणार्क के सूर्य मंदिर का नमूना है। इसी खंड में मध्य भाग में शीशे का बना शक्ति का चित्र है। चित्र के बायीं तरफ भगवान राम के आयुष धनुष एवं बाणयुक्त तूणीर तथा बालकृष्ण का मोर मुकुट, बांसुरी व बजाने का सींग है। दायीं ओर भगवान विष्णु के आयुध चक्र, शंख, गदा एवं कमल तथा भगवान शंकर के आयुध त्रिशूल व डमरू बने हुए हैं। इसके ऊपर भगवान नारायण की मूर्ति है। शिखर भाग दक्षिण भारत के मदुरै के मीनाक्षी मंदिर की याद दिलाता है। शिखर पर चारो ओर चार सिंह-मुख निर्मित हैं।
गीताप्रेस के प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि शताब्दी वर्ष समारोह के लिए गीताप्रेस के भवनों की रंगाई हो चुकी है। लेकिन मुख्य द्वार में विभिन्न कलाओं की इतनी बारीक नक्काशी है कि उनकी रंगाई सामान्य कलाकार नहीं कर सकते। इसके लिए जयपुर से कलाकारों को बुलाने पर विचार किया जा रहा है।
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