UP News: कोरोना काल से भी खराब हाल में गोरखपुर का वस्त्रोद्योग, उत्पादन में 50 प्रतिशत की कमी
गोरखपुर में रेडीमेड गारमेंट को ओडीओपी योजना में शामिल किया गया है लेकिन कपड़ा उद्योग की हालत खराब है। पिछले तीन दशक में ऐसी स्थिति नहीं देखी गई। स्कूल ड्रेस की मांग कम होने और बिजली बिल छूट में कमी जैसे कारणों से उद्योग प्रभावित हुआ है। बड़ी इकाइयों को उत्पादन बंद करना पड़ा है और कुल उत्पादन में 40-50% की कटौती हुई है।
उमेश पाठक, जागरण गोरखपुर। एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में गोरखपुर से रेडीमेड गारमेंट को भी शामिल किया गया है। एक ओर इस उत्पाद को बढ़ावा देने के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं, लेकिन दूसरी ओर इससे जुड़े कपड़ा उद्योग की हालत खराब चल रही है।
उद्यमी बताते हैं कि पिछले तीन दशक में ऐसी स्थिति नहीं देखी। कारोना काल में जब उद्योगों को चलाने की अनुमति मिली थी तो विपरीत स्थितियों में भी इतने खराब हालात नहीं थे, जितने अब हैं। बड़ी इकाइयों को अपने विस्तारित इकाइयों में उत्पादन बंद करना पड़ा है। कुल उत्पादन में 40 से 50 प्रतिशत की कटौती करनी पड़ी है।
मांग में यह भारी गिरावट क्यों आई है? स्पष्ट तौर पर यह बात उद्यमियों के समझ में भी नहीं आ रही। वे कुछ कारण गिनाते हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश से लेकर अन्य राज्यों में स्कूल ड्रेस को लेकर मांग कम होने एवं पावरलूमों को मिलने वाली बिजली बिल की छूट कम होना शामिल है।
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गोरखपुर में इस समय कपड़ा बनाने के दो बड़े प्रोसेसिंग हाउस हैं। इनमें से एक बरगदवा स्थित वीएन डायर्स एवं दूसरी गीडा स्थिति अंबे प्रासेसिंग हाउस है। दोंनों ही कंपनियों ने अपना विस्तार भी किया था। वीएन डायर्स की ओर से कुछ कपड़ा निर्यात भी किया जाता है।
कंपनी के एमडी विष्णु अजीतसरिया बताते हैं कि देश से बाहर जाने वाला कपड़ा तो जा रहा है लेकिन घरेलू बाजार में काफी मंदी है। बंगाल जाने वाले कपड़े में भी काफी कमी आयी है। कई राज्यों से स्कूल ड्रेस के लिए मांग नहीं आ रही है। तीन दशक में ऐसी खराब स्थिति नहीं देखी थी। कोरोना काल भी इससे बेहतर था।
गीडा में पावरलूम संचालित करने वाले लघु उद्योग भारती के मंडल अध्यक्ष दीपक कारीवाल बताते हैं कि उनकी इकाई पिछले 15 दिनों से बंद है। स्टाक इतना अधिक हो गया है कि पहले उसकी खपत पर ध्यान है।उन्होंने बताया कि अभिभावकों के खाते में ड्रेस का पैसा सीधे भेजने से कपड़े की मांग ही कम हो गई है। अभिभावक ड्रेस नहीं खरीद रहे हैं। बंगाल में पहले खुले बाजार से स्कूल ड्रेस का कपड़ा लिया जाता था। उस समय हर फैक्ट्री के उत्पाद की मांग थी लेकिन वहां की सरकार ने पूरे प्रदेश में ड्रेस आपूर्ति का ठीका राजस्थान के भीलवाड़ा की एक कंपनी को दे दिया है, जिससे यहां के कपड़ों की मांग नहीं रही।
बांग्लादेश से सस्ता कपड़ा आने के कारण भी मांग में कमी आयी है। कारीवाल बिजली बिल में मिलने वाली छूट में परिवर्तन को भी इसके लिए जिम्मेदार बताते हैं।उनका कहना है कि 31 मार्च, 2023 तक 143 रुपये प्रति मशीन बिल देना था, लेकिन एक अप्रैल, 2023 से 880 रुपये प्रति मशीन कर दिया गया। हालांकि इसको लेकर कोई सख्ती नहीं है।
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