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गोरक्षपीठ ने 1932 में किराए के मकान में खोला था स्कूल, अब पचास हजार लोगों को म‍िल रही श‍िक्षा

अतीत में झांके तो इसके पीछे ब्रिटिश काल से जुड़ता नाथ पीठ के संघर्षों का लंबा इतिहास नजर आएगा। महंत दिग्विजयनाथ ने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की जिसका उद्देश्य वाक्य था जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Thu, 26 Aug 2021 01:10 PM (IST)
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गोरक्षपीठाधीश्‍वर ब्रह्मलीन महंत द‍िग्‍वि‍जय नाथद्य - फाइल फोटो

गोरखपुर, डा. राकेश राय। पूर्वांचल की शैक्षिक विकास यात्रा अब आयुष विश्वविद्यालय और महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के पड़ाव तक पहुंच गई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भगीरथ प्रयास से 28 अगस्त को राष्ट्रपति रामनाथ कोव‍िंद के हाथों आयुष विश्वविद्यालय के शिलान्यास और महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय के लोकार्पण के साथ गोरखपुर सहित समूचे पूर्वांचल का न केवल शैक्षिक इतिहास समृद्ध् हो जाएगा बल्कि युवाओं को उच्‍च शिक्षा के लिए दो बेहतरीन संस्थान मिल जाएंगे। यह इतना आसान नहीं था। अतीत में झांके तो इसके पीछे ब्रिटिश काल से जुड़ता नाथ पीठ के संघर्षों का लंबा इतिहास नजर आएगा।

89 वर्ष पहले ही नाथ पीठ ने पूर्वांचल में जला दी थी शिक्षा की लौ

आजादी के संघर्ष के दौरान जब भारतीय संस्कृति के अनुरूप आधुनिक शिक्षा को स्थापित करने के लिए मदन मोहन मालवीय वाराणसी में काशी हिंदू विश्वविद्यालय की नींव रख रहे थे, उसी समय गोरखपुर के शैक्षिक उन्नयन का अभियान नाथ पीठ के तत्कालीन महंत दिग्विजयनाथ ने छेड़ दिया था। अपने इस अभियान की नींव उन्होंने बक्शीपुर में किराए के मकान में गुडलक स्कूल खोलकर रखी थी। बाद में इसी स्कूल ने महाराणा प्रताप इंटर कालेज का रूप ले लिया। अभियान के पीछे महंत का मकसद ऐसे राष्ट्रभक्त तैयार करना था, जो भारत की प्राचीन गौरव को पुनप्र्रतिष्ठित कर सकें। अपने कार्य को संगठित रूप देने के लिए महंत दिग्विजयनाथ ने 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की, जिसका उद्देश्य वाक्य था जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।

ब्रिटिश काल से जुड़ता है शिक्षा के लिए नाथ पीठ के संघर्षों का इतिहास

इसकी छत्रछाया में महाराणा प्रताप शिशु शिक्षा विहार रामदत्तपुर और महाराणा प्रताप डिग्री कालेज और महाराणा प्रताप महिला महाविद्यालय खोलकर महंत ने पूर्वांचल में विपरीत परिस्थितियों के बावजूद शैक्षिक क्रांति ला दी। आजादी मिलने तक परिषद भारत केंद्रित शिक्षा प्रणाली का तंत्र विकसित कर चुका था। इसी क्रम में दिग्वजयनाथ ने गोरखपुर में विश्वविद्यालय की स्थापना का न केवल सपना देखा बल्कि उसे अपने नियोजित प्रयास से पूरा भी किया। इसके लिए उन्होंने अपने दो महाविद्यालय सरकार को दे दिए। दिवंगत होने से पहले उन्होंने गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ और दिग्विजयनाथ डिग्री कालेज की नींव भी रख दी। उसके बाद पहले महंत अवेद्यनाथ और फिर योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में परिषद की ओर से अनवरत शैक्षणिक संस्थानों की नींव पड़ती गई, जिनकी संख्या अब 47 तक पहुंच गई है। इनमें तकनीकी (पालीटेक्निक) से लेकर चिकित्सीय संस्थान (नर्सिंग स्कूल व कालेज) भी शामिल हैं। महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय की स्थापना परिषद की 89 वर्ष की शैक्षिक यात्रा का एक महत्वपूर्ण पड़ाव है।

50 हजार विद्यार्थियों को मिल रही दिशा, पांच हजार को रोजगार

महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद द्वारा संचालित शिक्षण संस्थान आज की तारीख में 50 हजार से अधिक विद्यार्थियों का शैक्षिक उन्नयन कर जीवन को नई दिशा दे रहे हैं। तकनीकी और चिकित्सीय संस्थान युवाओं के लिए रोजगार भी सुनिश्चित कर रहे हैं। इन संस्थानों के माध्यम से करीब पांच हजार लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है।

शिक्षा से किसानों की उन्नति की भी पीठ ने च‍िंता

नाथ पीठ ने युवाओं के अलावा किसानों के उन्नति की भी च‍िंता की है। पीठ की ओर से पीपीगंज के चौकमाफी में 50 एकड़ भूमि में महायोगी गोरखनाथ कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना किया जाना इसकी पुष्टि है। केंद्र किसानों को कृषि शिक्षा देकर उन्हें बेहतर फसल लेने और आय को दोगुना करने का रास्ता बता रहा है।

महिला शिक्षा पर रहा है नाथ पीठ का जोर

महिलाओं की शिक्षा को लेकर नाथ पीठ शुरू से कितनी गंभीर रही है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि महंत दिग्विजयनाथ ने महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना के तत्काल बाद उनकी उच्‍च शिक्षा के लिए अलग से महाराणा प्रताप महिला डिग्री कालेज की स्थापना कर दी थी। यह सिलसिला अब आधा दर्जन से अधिक शिक्षण संस्थानों तक पहुंच गया है। इनमें तकनीकी और चिकित्सीय संस्थान भी शामिल हैं।

संस्कृत शिक्षा की संजो रहे विरासत

भारतीय मनीषियों द्वारा गढ़ी गई अध्यात्म और ज्ञान परंपरा को समझने की लिए भारत की प्राचीनतम भाषा संस्कृत को जानना और समझना बेहद जरूरी है। यही वजह है आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ-साथ नाथ पीठ ने संस्कृत भाषा को संजोने का काम भी किया। इस क्रम में महंत दिग्विजय नाथ ने 1949 में ही गोरखनाथ मंदिर परिसर में गुरु श्रीगोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ की स्थापना कर दी थी, जो अब स्नातकोत्तर महाविद्यालय का रूप ले चुका है। इसके अलावा एक संस्कृत उ'चतर माध्यमिक विद्यालय भी मंदिर परिसर में संचालित हो रहा है। परिषद द्वारा एक संस्कृत विद्यापीठ वाराणसी में भी संचालित है।

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