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बाढ़ और जल-जमाव से भी हरियाली काे नहीं पहुंचेगा नुकसान, पौध को बचाएगी लिफ्ट नर्सरी

फिलहाल माडल के तौर पर कैंपियरगंज क्षेत्र के धर्मपुर गांव के लौह मिस्त्री और किसान मुन्नीलाल की मदद से दो पोर्टेबल लिफ्ट नर्सरी बनाई गई है। एक नर्सरी को बनाने में करीब साढ़े चार हजार रुपये का खर्च आया है।

By Navneet Prakash TripathiEdited By: Published: Mon, 14 Feb 2022 04:13 PM (IST)Updated: Mon, 14 Feb 2022 05:26 PM (IST)
बाढ़ और जल-जमाव से भी हरियाली काे नहीं पहुंचेगा नुकसान, पौध को बचाएगी लिफ्ट नर्सरी। प्रतीकात्‍मक फोटो

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। बाढ़ प्रभावित या जल जमाव वाले क्षेत्रों के किसानों को अब पौध की सुरक्षा को लेकर चिंता करने की जरूरत नहीं। पानी के बीच भी वह अपनी पौध को सुरक्षित रख सकते हैं और उससे फसल ले सकते हैं। ऐसा उस पोर्टेबल लिफ्ट नर्सरी के जरिए संभव हो सकेगा, जिसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की मदद से गोरखपुर इन्वायरमेंटल एक्शन (जीईएजी) ग्रुप नाम की संस्था ने किसानों की समस्या के समाधान के लिए उन्हीं की मदद से तैयार किया है। किसानों ने तो इसे सराहा ही है, मंत्रालय ने भी मुहर लगा दी है।

तीन माह में तैयार हो जाएगी लिफ्ट नर्सरी

लिफ्ट नर्सरी को तैयार करने में तो महज तीन महीने लगे हैं लेकिन प्रयोग के दौर से गुजरने में तीन साल का वक्त लग गया है। प्रोजेक्ट कोआर्डिनेटर अजय सिंह बताते हैं कि उनकी संस्था देश के उन 27 संस्थाओं में से एक है, जिसे विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने अपनी कोर सपोर्ट योजना के तहत तकनीकी प्रयास से छोटे किसानों की मदद करने की जिम्मेदारी सौंपी है। इसके तहत संस्था वर्ष 2018 से जंगल कौड़िया और कैंपियरगंज क्षेत्र के 13 गांवों में काम कर रही है।

किसानों से बातचीत में सामने आई समस्‍या

संस्था ने किसानों की समस्या जानने के लिए दो दर्जन ऐसे किसानों का चयन किया है, जो छोटी जोत होने के बावजूद नकदी फसल से अपनी आय बढ़ाने की क्षमता और इच्छा रखते हैं। ज्यादातर किसान सब्जी की खेती करते हैं। एक गोष्ठी के दौरान पता चला कि बाढ़ और उसके बाद जल-जमाव की वजह से कई बार उनकी तैयार पौध या तो सड़ जाती है या उसमें कीड़े लग जाते हैं। संस्था के विशेषज्ञों ने किसानों की मदद से पौधों के बचाव के लिए पहले एक पाली बैग बनाया लेकिन बात नहीं बनी।

अंतत: तैयार हुई नर्सरी

उसके बाद स्थायी लिफ्ट नर्सरी बनाई लेकिन पानी में होने से किसानों को उन तक पहुंचने में दिक्कत होती थी। प्रयोग के क्रम में अंतत: पोर्टेबल नर्सरी बनकर तैयार हुई, जिसे बाढ़ के समय न केवल जमीन से उठाया जा सकता है बल्कि एक से दूसरे स्थान पर भी ले जाया जा सकता है। इस नर्सरी में आधा से एक एकड़ खेत में रोपाई के लिए पौध तैयार की जा सकती है।

ऐसी है नर्सरी, ऐसे करेगी काम

नर्सरी लोहे के राड को आधार बनाकर तैयार की गई है। इसमें पांच फीट लंबा, चार फीट चौड़ा और डेढ़ इंच गहरा ट्रे लगाया है, जिसमें पौध तैयार होगी। इस ट्रे को जरूरत के मुताबिक बेयरिंग ओर पुली के इस्तेमाल से पांच फीट तक उठाया जा सकता है। इसमें ऊपरी से जाली और पालीथिन के कवर की व्यवस्था है, जिससे बारिश की स्थिति में अनावश्यक पानी और कीटों से पौध को बचाया जा सके। पालीथिन का इस्तेमाल पौध के लिए जरूरी तापमान बनाए रखने के लिए भी किया जा सकेगा।

माडल के तौर पर तैयार है दो पोर्टेबल नर्सरी

फिलहाल माडल के तौर पर कैंपियरगंज क्षेत्र के धर्मपुर गांव के लौह मिस्त्री और किसान मुन्नीलाल की मदद से दो पोर्टेबल लिफ्ट नर्सरी बनाई गई है। एक नर्सरी को बनाने में करीब साढ़े चार हजार रुपये का खर्च आया है। मांग पर जीईएजी किसी भी किसान के लिए इस नर्सरी का निर्माण कराने को तैयार है।

उत्साहित हैं नर्सरी के बनाने में शामिल किसान

धर्मपुर गांव के किसान परमानंद मौर्य का कहना है कि पोर्टेबल नर्सरी ने हमारी बहुत बड़ी समस्या का समाधान कर दिया है। किसान दिलीप कुमार कहते हैं कि अब बाढ़ में पौध के सड़ने का भय नहीं रहेगा। परशुराम मौर्य और अशोक कुमार का कहना है कि हम जैसे छोटे किसानों को इसका सर्वाधिक फायदा मिलेगा।


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