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गोरखपुर शहर में जानवरों के लिए तैयार हो रहा जंगल, लगाए जा रहे पौधे Gorakhpur News

चिडिय़ाघर प्रशासन जानवरों के मुताबिक माहौल बनाने में लगा है। परिसर में ग्रीन बेल्ट विकसित करने के उद्देश्य से पौधारोपण किया जा रहा है।

By Satish ShuklaEdited By: Updated: Wed, 17 Jun 2020 10:48 AM (IST)
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गोरखपुर शहर में जानवरों के लिए तैयार हो रहा जंगल, लगाए जा रहे पौधे Gorakhpur News
गोरखपुर, जेएनएन। लॉकडाउन से राहत के बाद शहीद अशफाक उल्लाह खां प्राणि उद्यान यानी चिडिय़ाघर के निर्माण कार्य में तेजी आ गई है। कार्यदायी संस्था निर्माण कार्य पूरा करने में जुटी है, तो चिडिय़ाघर प्रशासन जानवरों के मुताबिक माहौल बनाने में लगा है। परिसर में ग्रीन बेल्ट विकसित करने के उद्देश्य से पौधारोपण किया जा रहा है। इसके पीछे मंशा यह है कि जानवर एक-दूसरे को देख प्रतिक्रिया न कर सकें और उन्हें जंगल में होने का अहसास हो। इसके लिए चिडिय़ाघर के 41 फीसद हिस्से को वन क्षेत्र के रूप में विकसित किया जाना है।

121.3 एकड़ में बन रहे चिडिय़ाघर का 24.5 फीसद हिस्सा ही वन क्षेत्र है। शेष 16.5 फीसद क्षेत्र में कुल 49 हजार पौधे रोपे जाने की योजना है। जानवरों को एक-दूसरे की उपस्थिति से दिक्कत न होने पाए, इसके लिए दो बाड़ों के बीच आठ से 10 मीटर का ग्रीन बेल्ट विकसित किया जा रहा है। चिडिय़ाघर की ढाई किलोमीटर दीवार के अंदर पांच मीटर चौड़ी ग्रीन वाल बनाई जा रही है, जो बाड़ों से सटी है। इससे जानवरों को अहसास नहीं होने पाएगा कि वह किसी निश्चित दायरे या शहरी क्षेत्र में हैं।

दीवारों के किनारे पांच स्तर पर लगाए जा रहे पौधे

चिडिय़ाघर की दीवारें जानवरों को किसी भी सूरत में न दिखें, इसके लिए पांच मीटर दायरे में पांच स्तर पर पौधे लगाए जा रहे हैं। पहले स्तर पर एक मीटर तक जमीन कवर करने वाले पौधे होंगे। इनमें सतावरी, कैनेठिया, डाइनिलिया, लैंटाना आदि शामिल हैं। दूसरे स्तर पर झाडिय़ों वाले यानी टिकोमा, चांदनी, कठोड़ जैसे पौधे होंगे। तीसरा स्तर बेल, नीम, पाकड़, आम, महुआ, कुसुम, पापड़ी आदि के पेड़ों का रहेगा। चौथा स्तर लता वाले पौधों का होगा, जिनकी लताएं दीवारों तक फैली होंगी। इसके लिए बोगन वोवाइन, मॉर्निंग ग्लोरी, पैशन फ्लावर के पौधे लगाए जा रहे। अंतिम स्तर मेें बंबू और पॉम के पौधे लगेंगे।

दो बाड़ों के बीच बंबू और टिकोमा

चिडिय़ाघर में कुल 33 बाड़े बनाए जा रहे हैं। जानवर एक-दूसरे से नजर न मिला सकें, इसके लिए बाड़ों के बीच आठ से 10 मीटर की दूरी में बंबू और टिकोमा के पौधे लगाए जा रहे हैं। जहां बड़ी संख्या में जानवर रहते हैं और मनुष्यों का आना-जाना रहता है, ऐसे स्थान पर पनपने वाली बीमारी जूनोटिक कही जाती है। इस बीमारी में बैक्टीरिया, वायरस और परजीवी एक से दूसरे जानवर और उनसे मनुष्यों तक पहुंचते हैं। लंबे दायरे में वन क्षेत्र इस संक्रमण को भी रोकेगा। डीएफओ अविनाश कुमार का कहना है कि प्राणि उद्यान को वन जैसा स्वरूप देने के लिए पौधारोपण प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। कोशिश है कि जब तक चिडिय़ाघर का निर्माण कार्य पूरा हो, वन क्षेत्र का मानक भी पूरा कर लिया जाए।

रामगढ़ ताल में बनेगा पक्षियों का मचान

वन विभाग रामगढ़ताल में परिंदों के लिए बांस के छह अस्थाई मचान बनवाएगा। इस पर रंग-बिरंगे पक्षियों की मौजूदगी से ताल की खूबसूरती तो बढ़ेगी ही पक्षी घोसला बनाकर अंडे भी दे सकेंगे। कृत्रिम स्ट्रक्चर बनाने का प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। वन विभाग को इस कवायद की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि रामगढ़ ताल से जलकुंभी हटा दी गई है। ये जलकुंभी ही विदेशी पक्षियों का ठिकाना थी, जिस पर बैठकर वह पानी में अठखेलियां करते थे। करीब 770 हेक्टेयर में फैले रामगढ़ ताल में कामन वुड सैंडपाइपर, कामन ग्रीन शैंक, लेसेर व्हीस्टिंग डक, ब्लैक विंग्ड स्टिल्ट, ग्रेट स्पाइन, रफ, ब्लैक टेल्ड गॉडविट, कामन टील जैसे विदेशी पङ्क्षरदों के साथ देसी पक्षी भी आते हैं। इस संबंध में डीएफओ अविनाश कुमार ने बताया पक्षी विज्ञानी चंदन प्रतीक के साथ ताल का निरीक्षण किया जा चुका है। स्ट्रक्चर का स्वरूप, संख्या व स्थान तय कर लिया गया है। स्ट्रक्चर के ऊपरी हिस्से को प्लेटफार्म की तरह बनाया जाएगा, जिस पर पक्षी घोसला बनाकर अंडे दे सकेंगे। इससे पक्षियों को आश्रय तो मिलेगा ही ताल की सुंदरता भी बढ़ेगी। 

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