डॉ. केके मुहम्मद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के पूर्व निदेशक ने दावा किया है कि मथुरा और काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में मंदिरों को तोड़कर मस्जिदें बनाई गई थीं। उन्होंने कहा कि एएसआइ को इन स्थलों पर मंदिरों के पुख्ता प्रमाण मिले हैं। डॉ. मुहम्मद ने कहा कि दोनों मंदिर परिसर पर पूरी तरह से हिंदुओं का अधिकार है और मुस्लिम समाज को इन पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए।
डा. राकेश राय, गोरखपुर। अयोध्या के विवादित ढांचे के नीचे मंदिर के अवशेष का पुरातात्विक प्रमाण देने वाले भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के पूर्व निदेशक डा. केके मुहम्मद का कहना है कि मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर और काशी विश्वनाथ परिसर में मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं। इन स्थलों पर मंदिर के पुख्ता प्रमाण एएसआइ को मिले हैं। एएसआइ की सर्वे टीम हिस्सा होने के कारण वह पुख्ता तौर पर यह बात कह सकते हैं।
दोनों मंदिर परिसर पर पूरी तरह हिंदुओं का अधिकार है और मुस्लिम समाज को इन पर अपना दावा छोड़ देना चाहिए। हाल में दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय संगोष्ठी में हिस्सा लेने पहुंचे डा. केके मुहम्मद ने दैनिक जागरण के वरिष्ठ संवाददाता डा. राकेश राय से विस्तार से बात की। उन्होंने कहा कि बतौर पुरातत्वशास्त्री मैं साक्ष्यों को प्रमाणित करने के अलावा मुस्लिम शासकों द्वारा मंदिरों के साथ किए गए दुर्व्यवहार का प्रायश्चित भी कर रहा हूं। प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश:
सवाल: आपने अयोध्या में विवादित ढांचे के नीचे मंदिर होने के साक्ष्य दिए, जिसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया और मंदिर को लेकर 500 वर्ष के संघर्ष को विराम मिला। काशी विश्वनाथ मंदिर में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में श्रीकृष्णजन्मभूमि पर बनी मस्जिद को लेकर भी इसी तरह का विवाद वर्षों से चला आ रहा है। इन विवादों को समाप्त करने के लिए आपका पुरातात्विक सर्वेक्षण क्या कहता है?
जवाब: जिस तरह के प्रमाण अयोध्या में विवादित ढांचे के नीचे मिले थे, उसी तरह के प्रमाण ज्ञानवापी और श्रीकृष्णजन्मभूमि पर बनी मस्जिदों में भी मिले हैं। एएसआइ पटना में नियुक्ति के दौरान मुझे ज्ञानवापी और आगरा में नियुक्ति के दौरान मथुरा का पुरातात्विक सर्वे करने का अवसर मिला था।
दोनों स्थानों के सर्वे में वहां न केवल मुझे हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां प्राप्त हुईं, बल्कि बनावट में भी मंदिरों के आर्किटेक्चर की पुष्टि हुई थी। मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूं कि ज्ञानवापी व मथुरा के विवादित स्थलों पर पहले हिंदू मंदिर थे, जिन्हें तोड़कर मस्जिद बनाई गई। इतिहासकार मोहम्मद सकी मुस्ताद खां ने अपनी पुस्तक 'मआसिरे आलमगीरी' में भी इस बात का जिक्र किया है।
सवाल: जब आप इस बात को पुरातात्विक साक्ष्यों के आधार पर पुष्ट कर रहे हैं कि ज्ञानवापी और मथुरा की मस्जिदें पहले मंदिर थीं और वहां मंदिर तोड़कर इनका निर्माण कराया गया तो विवाद के समाधान के लिए एक पुरातत्वशास्त्री के तौर पर क्या सलाह देना चाहेंगे?
जवाब: ज्ञानवापी और मथुरा में भी वही होना चाहिए, जो अयोध्या में हुआ। दोनों पूज्य स्थल पूजा-अर्चना के लिए हिंदुओं को दे देने चाहिए। मुसलमानों को दोनों ही स्थानों को लेकर अपना दावा छोड़ देना चाहिए, क्योंकि इन धर्मस्थलों को किसी अन्य जगह उसी तरह नहीं बसाया जा सकता, जैसे मक्का-मदीना की मस्जिद कहीं और नहीं बनाई जा सकती।
इन दोनों स्थलों पर पूरी तरह हिंदुओं का अधिकार है। यहां एक बात और कहना चाहूंगा कि देश में अमन-चैन कायम रखने के लिए हिंदुओं को भी चाहिए कि वह अब किसी अन्य स्थल को लेकर इस तरह का विवाद न खड़ा करें। हिंदू और मुसलमान दोनों ही जब तक अपना रुख नहीं बदलेंगे, तब तक विवाद का सिलसिला नहीं थमने वाला।
सवाल: ऐसा देखा गया कि एएसआइ के अधिकारी के तौर पर आपका जोर मंदिरों के सर्वे पर ही रहा। इसके पीछे क्या वजह है?
जवाब: मुस्लिम शासकों ने बहुत से मंदिरों को तोड़ा। इसका प्रमाण कुतुब मीनार के बगल में बनी कुतबुल इस्लाम मस्जिद में देखा जा सकता है, जहां आज भी देवी-देवताओं की मूर्तियों के अवशेष मौजूद हैं। आज के मुसलमान इसके लिए जिम्मेदार नहीं है, लेकिन जब वह उन घटनाओं को सही ठहराने की कोशिश करते हैं तो मुझे अच्छा नहीं लगता, क्योंकि ऐसा करके जिम्मेदार न होते हुए भी वह जिम्मेदार बन जाते हैं।
चूंकि मैं एक पुरातत्वशास्त्री हूं और विचारों पर नहीं साक्ष्यों पर विश्वास करता हूं, इसलिए मेरा मानना है कि मंदिरों की विरासत हिंदुओं को मिलनी चाहिए। इसी वजह से पुरातत्व सर्वेक्षण के दौरान मेरे सोच के केंद्र में मंदिर रहे। चूंकि मुझे इस कार्य में सफलता मिली, सो प्रमाण भी दे रहा हूं। इस माध्यम से मैं मुस्लिम शासकों द्वारा मंदिरों के साथ किए गए दुर्व्यवहार का प्रायश्चित भी कर रहा हूं।
सवाल: विवादित स्थलों को लेकर मंदिर के पक्ष में खड़े होने पर आपका काफी विरोध हुआ होगा, इसका सामना आपने किस तरह से किया?
जवाब: विवादित ढांचे पर मंदिर होने की बात साक्ष्य के साथ कहना आसान नहीं था। एक स्थापित पुरातत्वशास्त्री होने के बाद भी मुझे इसके लिए अपने वजूद का साक्ष्य देना पड़ा। पग-पग पर संघर्ष करना पड़ा। अधिकारियों से लेकर कम्युनिस्ट इतिहासकारों तक का विरोध था। अधिकारियों ने निलंबन की धमकी दी इतिहासकारों ने झूठा साबित करने की कोशिश की। पर बात तथ्यपरक थी, इसलिए सुप्रीम कोर्ट तक ने मानी और विवादित स्थल पर भव्य श्रीराम मंदिर तैयार हो गया।
दरअसल विवादित ढांचे के मूल में मंदिर के प्रमाण पाए जाने के दौरान मैं मशहूर इतिहासकार प्रो. बीबी लाल की पुरातात्विक टीम का हिस्सा था। बात 1977 की थी। प्रो. लाल उन दिनों एएसआइ के महानिदेशक थे। जब राम मंदिर का मामला गरमाया और मैंने साक्ष्यों के आधार पर वहां मस्जिद से पहले मंदिर होने की बात लोगों के सामने रखी तो इरफान हबीब जैसे इतिहासकारों ने मुझे झूठा करार दे दिया और यह कह दिया कि राममंदिर को लेकर हुए पुरातात्विक कार्य में डा. मुहम्मद की कोई भूमिका नहीं थी।
उसके बाद मुझे इसकी पुष्टि खुद प्रो. बीबी लाल से करानी पड़ी, जो उन दिनों लंदन में थे। मैं उन दिनों एएसआइ के मद्रास कार्यालय में कार्यरत था। अधिकारियों से पहले मुझे निलंबन की धमकी मिली, जिसे बाद में स्थानांतरण में तब्दील कर दिया गया। इसके अलावा मुझे मुस्लिम समाज की ओर से भी जान से मार डालने की सैकड़ों धमकियां मिलीं। मुझे करीब तीन साल पूरी तरह पुलिस की सुरक्षा में गुजारने पड़े। मेरे लिए आसान नहीं था यह सबकुछ झेलना, पर एक पुरातत्वशास्त्री के तौर अपनी जिम्मेदारी निभानी भी जरूरी थी, इसलिए मैं अपने लक्ष्य से नहीं हटा, डटा रहा।
सवाल: दिल्ली की कुतबुल इस्लाम मस्जिद का क्या प्रकरण था? क्या वहां भी मंदिर होने के साक्ष्य आपको मिले थे?
जवाब: कुतबुल इस्लाम मस्जिद भी दरअसल पहले मंदिर ही थी, जिसे बाद में मुस्लिम शासक कुतबुद्दीन ऐबक ने मस्जिद में बदल दिया। आज भी वहां हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां पाई जा सकती हैं। जब मैंने अपने पुरातात्विक अध्ययन के आधार पर कुतबुल इस्लाम मस्जिद की पृष्ठभूमि में मंदिर होने के साक्ष्य दिए तो इसका भारी विरोध हुआ। कुछ मुसलमान भाई तो यह सुनकर वहां नमाज पढ़ने भी आ गए थे। बात यहां तक बढ़ गई कि मुझे उस समय पुलिस की मदद से उन्हें ऐसा करने से रोकना पड़ा। इसे लेकर भी मुस्लिम समाज ने मेरी बहुत निंदा की। धमकियां मिलीं, लेकिन मैंने एक पुरात्वशास्त्री के धर्म का पालन किया।
सवाल: मंदिरों पर सर्वे की श्रृंखला में और किन-किन मंदिरों पर आपने कार्य किया और उसमें कितनी सफलता मिली?
जवाब: एएसआइ में नौकरी के दौरान मुझे छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा और मध्य प्रदेश के मुरैना जिले के बटेश्वर में भी मंदिरों पर कार्य करने का अवसर मिला। बटेश्वर में भूकंप की वजह से करीब 200 मंदिर जमींदोज हो गए थे, उनमें 80 का जीर्णोद्धार भी कराया। इस कार्य में मुझे उस दौरान डकैत निर्भय सिंह गुर्जर का सहयोग मिला था। इस स्थल से तो इतना लगाव हो गया था कि सेवानिवृत्ति के बाद भी मंदिर जीर्णोद्धार में लगा रहा और आज भी लगा हुआ हूं। इसमें मुझे इन्फोसिस के अध्यक्ष नारायण मूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति का भी साथ मिला है। उन्होंने चार करोड़ रुपये की मदद की है। दंतेवाड़ा मंदिर पर काम के दौरान पहले तो नक्सलियों का विरोध झेलना पड़ा, लेकिन बाद में उनके एक धड़े का साथ मिल गया तो आसानी हो गई।
सवाल: मध्य प्रदेश के धार में भोजशाला को लेकर भी विवाद है। राजा भोज द्वारा बनवाए गए इस स्थल से मां सरस्वती की पुरानी प्रतिमा प्राप्त होने के बाद से हिंदू इसे अपना पूज्य स्थल मानते हैं, जबकि उसी स्थल पर अलाउद्दीन खिलजी के समय में बनी मस्जिद की वजह से मुसलमान वहां जुमे की नमाज भी पढ़ते हैं। आपने कभी इसकी तह में जाने की कोशिश नहीं की?
जवाब: देश में ऐसे एक-दो नहीं, बल्कि कई स्थल हैं। सभी स्थलों पर यदि विवाद को तूल दिया जाएगा तो उसका प्रभाव सांप्रदायिक सौहार्द पर पड़ेगा। श्रीरामजन्मभूमि, श्रीकृष्णजन्मभूमि और श्री काशी विश्वनाथ मंदिर में ज्ञानवापी मस्जिद की बात कुछ और है। इनसे हिंदू समाज की गहरी आस्था जुड़ी है। यह स्थल हिंदुओं के लिए उसी तरह से हैं, जैसे मुसलमानों के लिए मक्का-मदीना। इसलिए पुरातात्विक सर्वेक्षण को लेकर मेरा फोकस केवल इन्हीं विवादित स्थलों पर रहा।
सवाल: लोगों का कहना है कि मंदिरों पर काम करने के चलते ही आपको केंद्र सरकार ने 2019 में पद्मश्री से सम्मानित करने का निर्णय लिया और आप उन चंद इतिहासकारों की सूची में शामिल हो गए, जिन्हें पद्म पुरस्कार मिला है। इस बात से आप कहां तक सहमत हैं?
जवाब: एक पुरातत्वशास्त्री के तौर पर मैंने अपना कार्य पूरी ईमानदारी से किया है। रही बात पुरस्कार की तो इसे मंदिरों के लिए किए गए कार्य से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। इसे ईमानदारी से किए कार्य के परिणाम के तौर पर देखा जाना चाहिए। इसी क्रम में यह बात जरूर कहना चाहूंगा कि मौजूदा सरकार देश के गौरवशाली इतिहास को लोगों के सामने लाने की बात करती है और इसके लिए कार्य भी कर रही है, लेकिन उसका ध्यान एएसआइ की निरंतर खराब होती स्थिति पर नहीं है। मेरा आग्रह है कि एएसआइ को दुर्दशा से बाहर निकालने के लिए भी सरकार को काम करना चाहिए, जिससे वह उसके मकसद को पूरा करने लायक बन सके।
सवाल: पर्यटन और पुरातत्व विभाग का दावा है कि महात्मा बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में पुरातात्विक साक्ष्यों को पूरी तरह से सुरक्षित कर दिया गया है। आपने बीते दिनों वहां का दौरा किया। एक पुरातत्वशास्त्री की दृष्टि से इन दावों की क्या सार्थकता लगी आपको?
जवाब: कुशीनगर का सुंदरीकरण जरूर कर दिया गया है, लेकिन वहां मौजूद बुद्धकालीन पुरातात्विक साक्ष्य सुरक्षित नहीं हैं। इस साक्ष्यों को बाढ़ व जलभराव से खतरा है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो साक्ष्य ज्यादा दिन सुरक्षित नहीं रखे जा सकेंगे। इसके लिए केंद्र और प्रदेश सरकार को मिलकर कार्य करना होगा। इसका जिक्र मैंने अपनी पुस्तक 'एन इंडियन आइ एम' में खुलकर किया है, जिसका प्रकाशन 2022 में हुआ है। यह मेरी आत्मकथा है।
सवाल: गोरखपुर यात्रा के दौरान आपने गीता प्रेस का भ्रमण किया। वहां की खूबियों को जाना। इसे लेकर आपकी क्या दृष्टि बनी और इसके आध्यात्मिक अभियान को आप किस रूप में देखते हैं?
जवाब: गीता प्रेस भ्रमण की मेरी इच्छा उन दिनों से है, जब मैं एएसआइ के पटना कार्यालय में तैनात था। वह इच्छा अब जाकर पूरी हुई है। जो संस्था बिना किसी वित्तीय सहयोग के चलती हो और बिना किसी रुकावट के अपने आध्यात्मिक अभियान को बीते 100 वर्ष से आगे बढ़ा रही हो, वह निश्चित रूप से न केवल प्रशंसा की पात्र है, बल्कि बहुत-सी संस्थाओं के लिए प्रेरणास्रोत भी हैं।
सवाल: पुरातत्व के क्षेत्र में आगे की आपकी क्या योजना है। किस अधूरे कार्य को आप पूरा करना चाहेंगे या कौन-सा नया कार्य करना चाहेंगे?
जवाब: कोई नया काम करने की योजना तो नहीं है, लेकिन मुरैना के बटेश्वर में भूकंप की वजह से ध्वस्त हुए मंदिरों के जीर्णोद्धार का कार्य अभी अधूरा है। उसे पूरा करने की मेरी योजना है। इस कार्य में लगा भी हुआ हूं। इस नेक कार्य में मुझे लोगों का सहयोग भी मिल रहा है। इसके लिए वहां आने-जाने का सिलसिला बना रहता है। इसके अलावा मंदिर-मस्जिद को लेकर होने वाले विवाद को शांत होते देखने की भी इच्छा है। इसके चलते ही मैं ज्ञानवापी व श्रीकृष्ण जन्मभूमि से दावा छोड़ने की मुसलमानों से अपील करता हूं।
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