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गोरखपुर के रेलवे अस्पताल में वेंटिलेटर के लिए तड़प रहे मरीज, हालत गंभीर होने पर कर दिए जाते हैं रेफर

गोरखपुर के एलएनएम रेलवे अस्पताल में कोविडकाल में खरीदे गए 20 वेंटिलेटर धूल फांक रहे। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वेंटिलेटर के लिए प्रशिक्षित कर्मी नहीं होने के चलते समस्या हो रही है। यहां आक्सीजन की जरूरत पड़ने पर मरीज प्राइवेट अस्पताल में रेफर कर दिए जाते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Pragati ChandUpdated: Sat, 19 Nov 2022 08:43 AM (IST)
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गोरखपुर रेलवे अस्पताल में वेंटिलेटर को भी ऑक्सीजन का इंतजार। (फाइल)

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। 13 मार्च 2022 को सेवानिवृत्त रेलकर्मी नरेन्द्र देव पांडेय को हृदयाघात हो गया। स्वजन आनन-फानन उन्हें ललित नारायण मिश्र केंद्रीय रेलवे अस्पताल (एलएनएम) की इमरजेंसी लेकर पहुंचे। उन्हें आक्सीजन की सख्त जरूरत थी, लेकिन इमरजेंसी में आक्सीजन की व्यवस्था नहीं होने से चिकित्सकों ने उन्हें सूची में शामिल प्राइवेट अस्पताल में रेफर कर दिया। समय से समुचित इलाज नहीं मिलने पर उनकी स्थिति गंभीर हो गई। नरेन्द्र देव पांडेय तो सिर्फ एक नजीर हैं, रेलवे अस्पताल में आए दिन गंभीर मरीज पहुंचते हैं और चिकित्सक उन्हें रेफर कर देते हैं। इस दौरान उनकी तबीयत और खराब हो जाती है। यह तब है जब अस्पताल में कोविडकाल में ही करीब 20 वेंटिलेटर खरीदे गए थे। उनमें से दो आइसीयू में हाथी दांत बने हैं, शेष 18 खुद बचे रहने के लिए आक्सीजन का इंतजार कर रहे हैं। अस्पताल में प्रतिदिन 150 से 200 लोग इमरजेंसी तथा करीब एक हजार मरीज ओपीडी में इलाज कराने पहुंचते हैं।

रेलकर्मियों और कर्मचारी संगठनों में आक्रोश

इसको लेकर रेलकर्मियों और कर्मचारी संगठनों में आक्रोश है। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वेंटिलेटर के लिए प्रशिक्षित कर्मी और चिकित्सक नहीं हैं। तो सवाल यह है कि आखिर प्रशिक्षित कर्मियों को तैनात करने की जिम्मेदारी किसकी है। एनई रेलवे मजदूर यूनियन (नरमू) के महामंत्री केएल गुप्ता कहते हैं, जब वेंटिलेटर का उपयोग नहीं करना था तो खरीदा ही क्यों गया। वेंटिलेटर ही नहीं कई उपकरण विशेषज्ञों के अभाव में धूल फांक रहे हैं।

स्थाई वार्ता की बैठक में की गई ये मांग

स्थाई वार्ता तंत्र (पीएनएम) की बैठक में महाप्रबंधक के समक्ष वेंटिलेटर की व्यवस्था सुनिश्चित कराने की मांग की गई थी। अगर अस्पताल प्रबंधन ने वेटिंलेटर का उपयोग शुरू नहीं कराया तो मामले को रेलवे बोर्ड तक पहुंचाया जाएगा। यूनियन आंदोलन के लिए बाध्य होगी। उन्होंने बताया कि रेलवे अस्पताल की दशा बदहाल होती जा रही है। ड्रेसिंग करने वाले कर्मचारी नहीं है। जो कर्मचारी तैनात हैं, उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं। चारो तरफ गंदगी का अंबार है। रेलवे अस्पताल न दवाई उपलब्ध करा पा रहा और न समुचित इलाज।

इमरजेंसी में ही लग रहा कुत्ता काटने का इंजेक्शन

रेलवे अस्पताल का बच्चा वार्ड बंद है। बच्चा वार्ड में ही कुत्ता काटने का इंजेक्शन लगता था, लेकिन अब इमरजेंसी में लगने लगा है। इसको लेकर रेलकर्मियों ने नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि इमरजेंसी में भी कर्मचारियों की कमी है। भूलवश कुत्ता काटने का इंजेक्शन सामान्य आदमी को लग गया तो परेशानी और बढ़ जाएगी।

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