गोरखपुर Railway अस्पताल में बड़ा फर्जीवाड़ा, रेलवे के मेडिकल पास पर बाहरी व्यक्ति ने 34 बार एम्स में करा लिया इलाज
गोरखपुर के रेलवे अस्पातल में चिकित्सक और कर्मचारी भी लगातार छह वर्ष तक धड़ल्ले से रेफर लेटर जारी करते रहे। रेलवे के विजिलेंस टीम की जांच में सिर्फ एक मामले का खुलासा हुआ है लेकिन जानकारों का कहना है कि ललित नारायण मिश्र रेलवे केंद्रीय अस्पताल में वर्षों से अवैध रेफर लेटर का खेल चल रहा है। इससे रेलवे को लाखों रुपये की चपत लग रही है।
प्रेम नारायण द्विवेदी, गोरखपुर। ललित नारायण मिश्र केंद्रीय रेलवे अस्पताल (एलएनएम) में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। रेलवे के चिकित्सकों और कर्मचारियों ने बाहरी व्यक्ति का न सिर्फ मेडिकल पास बनाया, बल्कि रेफर लेटर जारी कर एम्स में 34 बार इलाज भी करा दिया। अशोक कुमार सिंह नाम का बाहरी व्यक्ति (नान रेलवे) वर्ष 2014 से 2019 तक लगातार छह वर्ष अवैध रूप से एलएनएम से जारी मेडिकल पास और रेफर लेटर का दुरुपयोग करता रहा। संदेह पर रेलवे की विजिलेंस टीम ने जांच की तो पर्दाफाश हुआ। जांच में सिर्फ एक मामले का खुलासा हुआ है, लेकिन जानकारों का कहना है कि रेलवे अस्पताल में वर्षों से अवैध रूप से मेडिकल पास और रेफर लेटर जारी करने का खेल चल रहा है। इससे रेलवे को लाखों रुपये की चपत लग रही है।
चिकित्सकों और कर्मचारियों की मिलीभगत से जारी है खेल
इस खेल में चिकित्सकों और कर्मचारियों की मिलीभगत से इनकार नहीं किया जा सकता। विजिलेंस जांच में सामने आया है कि चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जारी मेडिकल कार्ड पर मरीज का नाम व अन्य विवरण दर्ज करता रहा। जबकि, यह कार्य संबंधित चिकित्सक या उनके अधीन कर्मचारी और डीलर ही करते हैं। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पास मरीज के बारे में जानने का कोई चिकित्सकीय उपकरण ही नहीं होता। चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी को मोहरा बनाकर चिकित्सक बाहरी व्यक्ति का रेफर लेटर जारी करते रहे।
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उप मुख्य सतर्कता अधिकारी (सिग्नल एवं दूर संचार) ने प्रमुख मुख्य चिकित्सा निदेशक, गोरखपुर को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में रेफरल सिस्टम को मजबूत विश्वसनीय बनाने का सुझाव देते हुए मेडिकल पास को भी ह्यूमन रिसोर्स मैनेजमेंट सिस्टम (एचआरएमएस) से जोड़ने पर जोर दिया है, ताकि मेडिकल पास और रेफर लेटर का दुरुपयोग न हो सके।
रेलकर्मियों और उनके स्वजन को झेलनी पड़ती है दिक्कत
अधिकृत रेलकर्मियों और उनके स्वजन को मेडिकल पास और रेफर लेटर बनवाने में पसीना छूट जाता है। जानकारों का कहना है कि मरीजों के स्वजन को रेफर लेटर जारी कराने के लिए चिकित्सक के चेंबर में दो से तीन दिन तक चक्कर लगाने के बाद बंगले पर लाइन लगानी पड़ती है। इसके बाद भी सुविधाशुल्क देना पड़ता है। भ्रष्टाचार का यह खेल उच्च अधिकारियों के नाक के नीचे होता है।
विजिलेंस के कुछ अहम सुझाव
- मेडिकल कार्ड जारी करने के साथ सरकारी पहचान पत्र अवश्य लें।
- रेफर लेटर जारी करने के लिए एक सिंगल विंडो सिस्टम जारी किया जाए।
- मरीज की सेलेरी स्लिप और उम्मीद कार्ड की जांच अनिवार्य रूप से हो।
- रेफरल विंडो व ओपीडी रजिस्ट्रेशन विंडो पर मेडिकल कार्ड की प्रति रखी जाए।
- रेफरल के लिए रेलवे बोर्ड के सभी नियमों का अनिवार्य रूप से पालन हो।
- सभी रेलकर्मियों का अनिवार्य रूप से उम्मीद कार्ड बनाना सुनिश्चित हो।