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महंत अवेद्यनाथ: श्रीराम मंदिर के लिए अंतिम सांस तक लड़े CM Yogi के गुरू, राजनीति से लिया संन्यान; फिर एक चुनौती ने करा दी वापसी

मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ के गुरु महंत अवेद्यनाथ ने 1984 में देश के सभी पंथों के शैव-वैष्णव आदि धर्माचार्यों को एक मंच पर खड़ा करके श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया था। गोरखनाथ मंदिर से गहरे जुड़े डा. प्रदीप राव बताते हैं कि राम मंदिर आंदोलन में महंत अवेद्यनाथ की जान बसती थी। वह अपने जीवन काल में राम मंदिर निर्माण देखने की इच्छा अक्सर व्यक्त करते थे।

By Rakesh Rai Edited By: Aysha SheikhUpdated: Sat, 06 Jan 2024 10:55 AM (IST)
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महंत अवेद्यनाथ: श्रीराम मंदिर के लिए अंतिम सांस तक लड़े CM Yogi के गुरू
डॉ. राकेश राय, गोरखपुर।  जन्मभूमि पर रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा की तैयारी में ही अयोध्या का गौरव लौटता दिखने लगा है। गौरव की यह वापसी नामुमकिन सी थी, यदि इसे लेकर नाथ पीठ के पीठाधीश्वरों ने अपना सर्वस्व न्यौछावर न किया होता। महंत दिग्विजयनाथ ने मंदिर आंदोलन को संगठित रूप दिया तो उनके शिष्य महंत अवेद्यनाथ ने आंदोलन के लिए विश्वव्यापी संगठन खड़ा कर दिया।

वह मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ के गुरु महंत अवेद्यनाथ ही थे, जिन्होंने 1984 में देश के सभी पंथों के शैव-वैष्णव आदि धर्माचार्यों को एक मंच पर खड़ा करके श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। वह इस समिति के आजीवन अध्यक्ष रहे। अवेद्यनाथ के नेतृत्व में ही सात अक्टूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ के लिए धर्मयात्रा निकाली गई, जो 14 अक्टूबर को लखनऊ पहुंच और वहां के बेगम हजरत महल पार्क में ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ, जिसमें 10 लाख लोगों ने हिस्सा लिया।

22 सितंबर, 1989 को अवेद्यनाथ की अध्यक्षता में दिल्ली में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ, जिसमें नौ नवंबर 1989 को जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम घोषित किया गया। तय समय पर एक दलित से शिलान्यास कराकर महंत जी ने आंदोलन को सामाजिक समरसता से जोड़ा। हरिद्वार के संत सम्मेलन में तो उन्होंने बाकायदा 30 अक्टूबर, 1990 को मंदिर निर्माण की तिथि घोषित कर दी।

निर्माण शुरू कराने के लिए जब वह 26 अक्टूबर 1990 को दिल्ली से अयोध्या के लिए रवाना हुए तो पनकी में गिरफ्तार कर लिए गए। छूटने के बाद उन्होंने मंदिर निर्माण को लेकर दर्जनों सभाएं कीं। 23 जुलाई, 1992 में मंदिर निर्माण के लिए अवेद्यनाथ की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव से मिला। बात नहीं बनी तो 30 अक्टूबर, 1992 को दिल्ली में हुए पांचवें धर्म संसद में छह दिसंबर, 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा शुरू करने का निर्णय ले लिया गया।

राम मंदिर के लिए हुई अवेद्यनाथ की राजनीति में वापसी

1980 में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में बड़े पैमाने पर कराए गए धर्म परिवर्तन से व्यथित होकर महंत अवेद्यनाथ ने राजनीति से संन्यास ले लिया। इससे पहले वह पांच बार विधायक और एक बार सांसद रह चुके थे। 22 सितंबर, 1989 को आयोजित विराट हिंदू सम्मेलन के दौरान जब मंदिर निर्माण की तिथि घोषित कर दी गई तो तत्काल गृहमंत्री बूटा सिंह ने उसे स्थगित करने के लिए महंत जी से मुलाकात की।

मुलाकात के दौरान महंत जी ने गृहमंत्री से कहा कि यह फैसला चंद व्यक्तियों का नहीं, बल्कि करोड़ों लोगों का है। इस पर बूटा सिंह ने उन्हें लोगों की बात कहने के लिए संसद में आने की चुनौती दी। इसी बीच लोकसभा चुनाव की घोषणा हो गई तो महंत अवेद्यनाथ ने बूटा सिंह की चुनौती को स्वीकार करते हुए संतो-महंतों के आग्रह पर राजनीति में वापसी की और गोरखपुर के सांसद बने।

मंदिर निर्माण की अंतिम इच्छा के साथ ब्रह्मलीन हुए अवेद्यनाथ

गोरखनाथ मंदिर से गहरे जुड़े डा. प्रदीप राव बताते हैं कि राम मंदिर आंदोलन में महंत अवेद्यनाथ की जान बसती थी। मंदिर में आने वाले हर महत्वपूर्ण व्यक्ति से वह अपने जीवन काल में राम मंदिर निर्माण देखने की इच्छा जरूर व्यक्त करते थे। महंत के ब्रह्मलीन होने से कुछ समय पहले जब आरएसएस के वर्तमान मुखिया केसी सुदर्शन उनसे मिलने आए तो वह बार-बार इस बात का जिक्र कर रहे कि जीते-जी राम मंदिर बनते देखना चाहते हैं।

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