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ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संन्यासियों ने किया था पहला प्रतिरोध, नाथ संप्रदाय के संतों की रही बड़ी भूमिका

महंत दिग्विजयनाथ व महंत अवेद्यनाथ की स्मृति में आयोजित कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि राष्ट्रीयता की भावना को पोषण देने के लिए गोरखनाथ मंदिर ने स्वाधीनता आंदोलन में क्रांतिकारियों के संरक्षक की भूमिका का निभाई थी।

By Pragati ChandEdited By: Updated: Fri, 26 Aug 2022 04:32 PM (IST)
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महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय में आयोजित व्याख्यानमाला में मौजूद लोग। जागरण-
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के आचार्य प्रो. हिमांशु चतुर्वेदी ने कहा कि ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पहला प्रतिरोध संन्यासियों ने किया था। इस प्रतिरोध में नाथ संप्रदाय के संतो-अनुयायियों, दसनामी तथा नागा साधुओं की बड़ी भूमिका रही। महायोगी गोरखनाथ विश्वविद्यालय, आरोग्यधाम, बालापार के प्रथम स्थापना दिवस (28 अगस्त) के उपलक्ष्य में व महंत दिग्विजयनाथ व महंत अवेद्यनाथ की स्मृति में सप्तदिवसीय व्याख्यानमाला आयोजित की गई है। चौथे दिन गुरुवार को प्रो. चतुर्वेदी ने बतौर मुख्य अतिथि कहा कि 1857 की क्रांति में कमल व रोटी का जो संदेश गांव-गांव पहुंचा, वह भी 1856 के हरिद्वार कुंभ में संतों द्वारा ही प्रतिपादित किया गया था।

'स्वतंत्रता संग्राम में संन्यासी' विषयक व्याख्यान को संबोधित करते हुए प्रो. चतुर्वेदी ने कहा कि राष्ट्रीयता की भावना को पोषण देने के लिए गोरखनाथ मंदिर ने स्वाधीनता आंदोलन में क्रांतिकारियों के संरक्षक व मददगार की भूमिका का निर्वहन किया था। 1857 से लेकर 1880 तक गोरखनाथ मंदिर के संत महंत गोपालनाथ निरंतर क्रांतिकारियों की मदद करते रहे। उनके बाद यह जिम्मेदारी योगिराज गंभीरनाथ और महंत दिग्विजयनाथ ने उठाई। चार फरवरी 1922 को हुए ऐतिहासिक चौरीचौरा जनाक्रोश की अगुवाई जिस चिमटहवा बाबा ने की थी, वह कोई और नहीं बल्कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराज थे।

भारत के बंटवारे का भी उन्होंने विरोध किया था। पूर्व सत्र में वैद्य अभय नारायण तिवारी ने स्वर्णप्राशसन को आयुर्वेद का अनुपम उपहार बताया। उन्होंने कहा कि इससे प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति मेजर जनरल डा. अतुल वाजपेयी ने की। कार्यक्रम की शुरुआत बीएएमएस की छात्राओं साक्षी सिंह, मंपी राय व दीक्षा द्वारा धनवंतरि एवं सरस्वती वंदना से हुई। समापन साक्षी श्रीवास्तव, मधुलिका सिंह, अंशिका जायसवाल, कहकशा, आसमा खातून द्वारा वंदे मातरम गान से हुआ। आभार ज्ञापन साध्वीनंदन पांडेय ने किया। संचालन वैभव दूबे व जाह्नवी राय ने किया।

कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. प्रदीप कुमार राव, गुरु गोरक्षनाथ कालेज आफ नर्सिंग की प्राचार्य डॉ. डीएस अजीथा, आयुर्वेद कालेज के प्रो. गणेश बी पाटिल, डॉ. प्रज्ञा सिंह, डॉ. सुमित कुमार, डॉ. दीपू मनोहर, डॉ. पीयूष वर्षा, डॉ. एसएन सिंह, डॉ. जसोबेन, डॉ. प्रिया नायर की सक्रिय सहभागिता रही।

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