Move to Jagran APP

सावधान! अगर आपका बच्‍चा देर तक देखता है टीवी और मोबाइल, उसे हो सकती है Myopia Disease नाम की बीमारी

आजकल ज्यादातर बच्चे स्मार्टफोन की लत का शिकार हैं। जब से आनलाइन क्लासें चलनी शुरू हुई हैं बच्चों को सबसे ज्यादा लत स्मार्टफोन की लगी है। स्मार्टफोन के कारण बच्चों का शारीरिक विकास ठीक से नहीं हो रहा है। एक्सपर्ट के अनुसार स्क्रीन के आगे ज्यादा समय बिताने के चलते न सिर्फ बच्चों की शारीरिक गतिविधियां सीमित हो गई हैं बल्कि बच्चों पर इसका मानसिक प्रभाव भी दिखने लगा है।

By Gajadhar Dwivedi Edited By: Vivek Shukla Updated: Thu, 22 Aug 2024 08:22 AM (IST)
Hero Image
बच्‍चों में मोबाइल के असर से आंखों की रोशनी हो रही कमजोर। जागरण (सांकेतिक)
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। धीरे-धीरे बहुत कुछ डिजिटल होता जा रहा है। स्मार्ट मोबाइल व स्मार्ट टीबी पर अधिक स्क्रीन टाइम बच्चों को दृष्टि दोष का दर्द दे ही रहा था, अब स्कूलों में स्मार्ट बोर्ड ने इसे और बढ़ा दिया है। ये सारे संसाधन प्रगति में चाहे जितनी बच्चों की मदद कर रहे हों लेकिन उनकी आंखों की रोशनी भी छीन रहे हैं। इसलिए वे मायोपिया (कम दिखना) व प्रोग्रेसिव मायोपिया (कुछ समय के बाद चश्मे का नंबर बढ़ जाना) के शिकार हो रहे हैं। ऐसे बच्चों की संख्या पिछले पांच वर्षों में दोगुणा से अधिक हो गई है।

पहले ओपीडी में प्रोग्रेसिव मायोपिया के शिकार बच्चे सप्ताह में एक-दो आते थे। 10-12 बच्चों में सामान्य मायोपिया (जिनके चश्मे के नंबर बढ़ते नहीं हैं) से पीड़ित बच्चों की संख्या एक-दो होती थी। अब 10-12 बच्चों में ऐसे बच्चों की संख्या सात-आठ है। इनमें दो प्रोगेसिव मायोपिया के बच्चे होते हैं।

इसे भी पढ़ें- रोडवेज के बाद रेलवे ने दी पुलिस भर्ती परीक्षा के आवेदकों को बड़ी सौगात

विशेषज्ञों के अनुसार जैसे-जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है और कार्निया का आकार बढ़ता है, वैसे ही यह बीमारी बढ़ती जाती है। इसलिए चश्मे का नंबर बढ़ता जाता है। चश्मे का नंबर लगभग 18 साल की उम्र तक बढ़ता रहता है। इसके बाद स्थिर हो जाता है। उस समय लेसिक सर्जरी कर उनका चश्मा हटा दिया जाता है। डॉक्टरों ने मायोपिया व प्रोगेसिव मायोपिया के बच्चों की संख्या बढ़ने का कारण स्मार्ट मोबाइल, स्मार्ट टीबी, स्मार्ट बोर्ड व अधिक स्क्रीन टाइम को बताया है।

अभिभावक इस पर दें ध्यान

  • बच्चों को ज्यादा देर तक मोबाइल, टीबी न देखने दें।
  • कंप्यूटर पर काम करते समय हर 20 मिनट के बाद 20 सेकेंड का ब्रेक लें।
  • बच्चों को आउटडोर एक्टिविटी (घर के बाहर खेलने-कूदने) के लिए प्रेरित करें।
  • भोजन में हरी सब्जियां, फल का इस्तेमाल ज्यादा करें।
  • मायोपिया हो गई है तो साल में तीन बार जांच अवश्य कराएं।
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. रजत कुमार ने कहा कि मायोपिया व प्रोगेसिव मायोपिया से ग्रसित बच्चों की संख्या पिछले पांच वर्षों में दोगुणा से अधिक हुई है। इसका कारण अधिक स्क्रीन टाइम है। अधिक देर तक मोबाइल या टीबी देखने से बच्चों के आंखों की रोशनी कम हो रही है। 18 साल की उम्र के पहले इसका स्थायी उपचार नहीं है।

इसे भी पढ़ें- यूपी में कानपुर-गोरखपुर सहित आसपास के जिलों में हो सकती है हल्‍की बारिश, उमस कर रही लोगों को परेशान

नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. अमित मित्तल ने कहा कि बच्चों के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदायक मोबाइल है। घंटों मोबाइल पर नजदीक से देखना उनकी आंख के लिए नुकसानदायक साबित हो रहा है। अभी तक जितने बच्चे आए, लगभग सभी की आंख खराब होने का कारण मोबाइल ही रहा। इससे बच्चों को बचाने की जरूरत है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।