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प्रेमचंद जयंती 2022: सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद संघर्ष भरी थी प्रेमचंद की जिंदगी, गोरखपुर में अखबार निकालने की ख्वाहिश रह गई अधूरी

Munshi Premchand Birth Anniversary 2022 महात्मा गांधी के भाषण से प्रेरित होकर सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद का जीवन मुंशी प्रेमचंद के लिए संघर्षपूर्ण रहा। उन्होंने नौकरी छोड़ने के बाद गोरखपुर में करघे का कारोबार किया लेकिन सफलता नहीं मिली तो उन्हें अपने पैतृक गांव लौटना पड़ा।

By Pragati ChandEdited By: Updated: Sun, 31 Jul 2022 04:50 PM (IST)
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Munshi Premchand Birth Anniversary 2022: मुंशी प्रेमचंद। (फाइल फोटो)

गोरखपुर, जेएनएन। Munshi Premchand Birth Anniversary 2022: उपन्यास और कहानियों के सम्राट मुंशी प्रेमचंद ने गोरखपुर जिले के बेतियाहाता स्थित निकेतन में रहकर कई उपन्यास और कहानियों की रचना की। मुंशी प्रेमचंद ऐसी सख्सियत रहे हैं, जिन्होंने आसपास जो देखा उसे कहानी और उपन्यास के रूप में शब्दों में पिरो दिया। उनके उपन्यास और कहानियां आज भी हमारे इर्दगिर्द नजर आते हैं। आइए आज उनकी जयंती के अवसर पर हम आपकों उनसे जुड़ी खास बात बताते हैं।

आसान नहीं था सरकारी नौकरी छोड़ने के बाद का जीवन

गोरखपुर के बाले मियां के मैदान में महात्मा गांधी के भाषण से प्रभावित होकर मुंशी प्रेमचंद ने नौकरी के बंधन से खुद को आजाद तो कर लिया था पर न तो उस आजादी का निर्णय उनके लिए आसान था और न उसके बाद का जीवन। पत्नी शिवरानी देवी ने अपनी किताब 'प्रेमचंद घर में' में नौकरी छोड़ने को लेकर मुंशी जी की कशमकश और उसके बाद गोरखपुर में उनके संघर्षपूर्ण रिहाइश की खुलकर चर्चा की है।

महात्मा गांधी के भाषण से प्रभावित होकर दिया था त्यागपत्र

शिवरानी देवी ने लिखा है कि आठ फरवरी को जब गांधी जी गोरखपुर आए तो उन दिनों प्रेमचंद गंभीर रूप से बीमार थे। बावजूद इसके उन्हें और बच्चों को लेकर भाषण सुनने गए। भाषण सुनकर मुंशी जी नौकरी के प्रति उदासीनता हो गए। माली हालत तंग थी, बावजूद इसके उन्होंने नौकरी छोड़ने का मन ही मन निर्णय ले लिया। न चाहते हुए शिवरानी देवी को भी उनके निर्णय के साथ होना पड़ा। 16 फरवरी 1921 को प्रेमचंद ने शिक्षा विभाग की नौकरी से न केवल इस्तीफा दे दिया बल्कि सरकारी मकान भी छोड़ दिया।

नौकरी छोड़ने के बाद अखबार निकालने की बनाई थी योजना

नौकरी छोड़ने के बाद प्रेमचंद ने गोरखपुर में ही स्थायी रूप से रहने का ही मन बना लिया था। उन्होंने महावीर प्रसाद पोद्दार की मदद से उर्दू व हिंदी अखबार निकालने की योजना बनाई। इसके लिए वह सरकारी मकान छोड़ने के बाद परिवार सहित पोद्दार जी के मानीराम स्थित आवास पर चले गए। शिवरानी देवी के मुताबिक प्रेमचंद उनके यहां करीब दो महीने रहे। रिहाइश के दौरान यह तय हुआ कि पोद्दार जी के साझे में शहर में एक करघे की दुकान खोली जाए। निर्णय के मुताबिक गोलघर में दुकान ली गई और उसमें 10 चरखे लगाए गए।

गोरखपुर छोड़कर क्यों लौटना पड़ा पैतृक गांव

प्रेमचंद ने अपने एक पत्र में करघे की दुकान के बारे में लिखा भी है- 'मैंने फिलहाल एक कपड़े का कारखाना खोल रखा है। जिसमें करघे चल रहे हैं और कुछ चरखे वगैरह बनवाए भी जा रहे हैं। उससे मुझे माहवार कुछ न कुछ नफा जरूर होगा लेकिन इतना नहीं कि मैं उस पर तकिया (भरोसा) कर सकूं।' पर मुंशी जी का वह कारोबार जम न सका और उन्हें वापस अपने पैतृक गांव लमही लौटना पड़ा।

नहीं पूरी हुई उर्दू अखबार निकालने की ख्वाहिश

गोरखपुर से उर्दू अखबार निकालने की ख्वाहिश भी प्रेमचंद की पूरी नहीं हो सकी। ऐसा इसलिए कि लंबे समय से बंद एक साप्ताहिक उर्दू अखबार उसी दौरान फिर से शुरू हो गया। उन्हें लगा कि एक उर्दू अखबार के निकलने से दूसरे अखबार की खपत नहीं हो सकेगी। हालांकि उन्होंने अपना यह सपना बनारस जाकर पूरा किया।

..तो शिक्षा विभाग के बड़े अफसरों में होती गिनती

फिराक गोरखपुरी ने अपने एक लेख में लिखा है कि उनके प्रदेश सिविल सेवा की नौकरी छोड़ने के कुछ ही हफ्ते बाद प्रेमचंद सरकारी नौकरी से अलग हो गए। यदि मुंशी जी ने नौकरी छोड़ी न होती तो निश्चित रूप से उनकी गिनती सूबे से शिक्षा विभाग के बड़े अफसरों में होती।

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