लोककल्याण के लिए राजनीति में आई नाथ पीठ, स्वतंत्रता की लड़ाई से शुरू हुई थी राजनीतिक यात्रा
नाथ पीठ की राजनीतिक यात्री महंत दिग्विजयनाथ से शुरू होकर महंत अवेद्यनाथ से होते हुए वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ तक आई। अब यह यात्रा उस पड़ाव पर पहुंच चुकी है जहां से देश की राजनीति को प्रभावित करने लगी है।
By Pragati ChandEdited By: Updated: Fri, 25 Mar 2022 04:05 PM (IST)
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। आध्यात्मिक पीठ का क्षेत्र धर्म और अध्यात्म तक ही सीमित नहीं होता है, इस मिथक को तोड़ने का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह है नाथ पीठ। इस पीठ ने लोककल्याण के लिए सामाजिक चेतना जगाने का जो राजनीतिक आंदोलन स्वाधीनता आंदोलन में छेड़ा, वह आज भी निरंतर है ही, अन्य आध्यात्मिक पीठों के लिए उदाहरण भी है।
योगी तक ऐसे आई नाथ पीठ की राजनीतिक यात्रा
महंत दिग्विजयनाथ के समय से शुरू हुई नाथ पीठ की राजनीतिक यात्रा महंत अवेद्यनाथ से होते हुए वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ तक आई और अब उस पड़ाव पर पहुंच चुकी है, जब समूचे प्रदेश की राजनीति गोरक्षपीठ को धुरी बनाकर उसके चारो तरफ घूम रही है। देश की राजनीति को प्रभावित करने लगी है। पीठ की राजनीतिक भागीदारी के कारण को जानने की कोशिश करें तो इसे समझने में तनिक भी देर नहीं लगेगी कि पीठ भारत को फिर जगतगुरु बनाने की संकल्पना पूरी करने में धर्माचार्यो की राजनीतिक भागीदारी की महत्ता को भली-भांति जानती है। पीठ की यह तीसरी पीढ़ी है, जो मानती है कि धर्माचार्य राजनीतिक भागीदारी से ही धर्म, जाति और देश की सेवा में अपना योगदान एक साथ सुनिश्चित कर सकते हैं, जो धर्म का वास्तविक उद्देश्य है।
ऐसी रही पीठ की राजनीतिक यात्रापीठ की राजनीतिक यात्रा पर बात करें तो यह क्रम असहयोग आंदोलन से ही शुरू हो गया था, जिसमें महंत दिग्विजयनाथ ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। देश स्वतंत्र हुआ तो पहले लोकसभा चुनाव में ही वह हिंदू महासभा के प्रत्याशी के रूप में लड़े। वह सफल नहीं हुए, लेकिन लोक कल्याण के लिए राजनीतिक सक्रियता जारी रही और 1967 में सांसद बनने में सफल रहे। 1969 में दिग्विजयनाथ के ब्रह्मलीन होने के बाद यह जिम्मेदारी उनके शिष्य महंत अवेद्यनाथ ने संभाल ली और सामाजिक समरसता एवं रामजन्मभूमि आंदोलन से पीठ की राजनीतिक यात्र की निरंतरता बनाए रखी।
दिग्विजयनाथ के मार्ग पर मनोयोग से चले महंत अवेद्यनाथमहंत दिग्विजयनाथ ने अपने रहते ही मानीराम विधानसभा क्षेत्र से अवेद्यनाथ की प्रत्यक्ष राजनीतिक भागीदारी सुनिश्चित कराई थी। वह वर्ष 1962 से 1977 के बीच पांच बार मानीराम से विधायक रहे। 1970, 1989, 1991 और 1996 में गोरखपुर लोकसभा के लिए भी चुने गए। वर्ष 1979 से 1989 तक, 10 वर्ष ऐसे भी रहे जब अवेद्यनाथ ने प्रत्यक्ष राजनीति से दूरी बना ली थी, लेकिन राम जन्मभूमि आंदोलन के चलते संतों के कहने पर वह फिर राजनीति में सक्रिय हुए।
और योगी बन गए सबसे कम उम्र के सांसदमहंत अवेद्यनाथ ने 1998 में पीठ की राजनीतिक भागीदारी बनाए रखने का दायित्व अपने शिष्य और गोरक्षपीठ के उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को सौंप दिया। गुरु के निर्देश पर योगी चुनाव मैदान में उतरे और सबसे कम उम्र के सांसद बन गए। 1998 से 2014 तक वह लगातार पांच बार सांसद चुने गए। क्षमता को देखते हुए 2017 में प्रदेश के मुखिया का दायित्व दिया गया तो उन्होंने लोक कल्याणकारी कर्तव्य निवर्हन का उदाहरण प्रस्तुत कर स्पष्ट कर दिया कि उनके आध्यात्मिक और राजनीतिक उद्देश्य अलग-अलग नहीं हैं। दोनों का लक्ष्य लोककल्याण है, जिसे एक संन्यासी अधिक उचित प्रकार से पूर्ण कर सकता है। यही कारण है कि उन्हें फिर प्रदेश सरकार का नेतृत्व करने का दायित्व मिलने जा रहा है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।