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जागरण संवादी के ओपन माइक में नवांकुरों ने बिखेरे विविध रंग, 'माना कि सफर मुश्किल है, मगर भागो मत...'

जागरण संवादी के ओपन माइक में गोरखपुर के युवा साहित्यकारों ने अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। कविताओं मुक्तकों और शेर-ओ-शायरी के जरिए उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार किया और लोगों को जगाने का प्रयास किया। ओपन माइक सत्र में युवाओं की ऊर्जा का प्रमाण इसी से लगाया जा सकता है कि दर्शक दीर्घा में बैठे कुछ प्रबुद्ध श्रोताओं के संकोच की गांठें स्वतस्फूर्त ढंग से खुल गईं।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Sat, 26 Oct 2024 08:55 AM (IST)
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जागरण संवादी के ओपेन माइक में कविता पाठ करते युवा रचनाकार मृत्युंजय नवल। साथ में अन्य रचनाकार
 सुधांशु त्रिपाठी, जागरण गोरखपुर। शहर-ए-फिराक में रचनाधर्मिता की स्वस्थ, सचेत और समर्थ परंपरा रही है। रघुपति सहाय उर्फ फिराक गोरखपुरी और जफर गोरखपुरी से लगायत प्रो.परमानंद श्रीवास्तव और देवेंद्र आर्य तक एक लंबी श्रृंखला है। अब रचनाकारों की नई पीढ़ी भी अपनी कविताओं, मुक्तकों और शेर-ओ-शायरी के जरिये सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रही है।

दैनिक जागरण ने हमेशा से ही रचनाधर्मिता और रचनाकारों का सम्मान किया है। शुक्रवार की शाम नौका बिहार के किनारे बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में गोरखपुर के साहित्यिक नवांकुरों ने अपनी प्रतिभा का उम्दा प्रदर्शन किया। सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती लोगों को जगाने वाली रचनाएं सुनाकर श्रोताओं की वाहवाही लूटी।

ओपेन माइक सत्र में युवाओं की ऊर्जा का प्रमाण इसी से लगाया जा सकता है कि दर्शक दीर्घा में बैठे कुछ प्रबुद्ध श्रोताओं के संकोच की गांठें स्वत:स्फूर्त ढंग से खुल गईं। कुछ श्रोताओं ने मंच पर आकर पहली बार कविता का पाठ किया। इस तरह की स्वराजंलियों से उर्जित वातावरण तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा।

कविता सुनाती आकृति विज्ञा। जागरण


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सत्र का शुभारंभ करते हुए युवा कवियत्री आकृति विज्ञा ‘अर्पण’ ने बेटियों के प्रति हो रहे अपराध पर चिंता जताते हुए सुनाया कि-’सुनो बसंती हील उतारो, अपने मन की कील उतारो। नंगे-पांव चलो धरती पर, बंजर पथ पर झील उतारो’ आकृति ने अपनी कविता के माध्यम से महिलाओं के सम्मान की अपील की।

संभावनाशील कवियत्री सौम्या द्विवेदी ने युवाओं के संघर्ष को उल्लिखित करते हुए सुनाया कि ‘तुम शांत रहते हो, पर शांत रहना नहीं चाहते, भीड़ में रहते हो, पर रहना नहीं चाहते।’ इसके साथ ही सफर पर अपनी रचना ‘माना कि सफर मुश्किल है, मगर भागो मत।’ सुनाकर सभी का ध्यान आकृष्ट किया। शहर के चर्चित कवियों में शुमार हो चुके मृत्युंजय उपाध्याय ‘नवल’ ने अपने कालेज के दिनों के सौंदर्यबोध को याद करते हुए ‘तुम्हारा मिलना’ कविता पाठ किया।

जागरण संवादी में इतिहासविद् प्रो.हिमांशु चतुर्वेदी को सम्मानित करते सहायक महाप्रबंधक प्रवीण कुमार। जागरण


उन्होंने सुनाया कि तुम जब मिलती थी, तो अनायास ही बिछ जाती थीं राहें। फिर छा जाता था पलकों पर ख्वाबों का नेटवर्क...। इस रचना को सुनकर शहर के विभिन्न कालेजों से आए छात्रों ने उनका उत्साहवर्धन किया।

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बस्ती जिले से आए भाजपा के जिलाध्यक्ष विवेकानंद मिश्र श्रोताओं की मांग पर मंच पर आए और अपनी रचना का ओजस्वी ढंग से पाठ किया। उन्होंने सुनाया कि ‘फूल-कलियों से महका चमन चाहिए, हमको मन से मन का मिलन चाहिए।’ श्री मिश्र की रचना को सुनने के बाद दर्शक दीर्घा में बैठे एक रचनाधर्मी आशीष शुक्ल ने ‘ओ होठों की लाली, ओ कानों की बाली’ सुनाकर सबका झूमने पर विवश कर दिया।

जागरण संवादी में युवाओं की साहित्यिक पसंद पर सवाल करती डा.गुंजन पाण्डेय। जागरण


भोजपुरी की नवोदित गायिका पूजा निषाद ने लैंगिक असमानता को लक्षित करते हुए एक ग्रामीण पिता और बेटी के संवाद को मधुर कंठ से मार्मिक गीत के रूप प्रस्तुत किया। उन्होंने ‘काहे बाबू जी तू कइला तू दुरंगी नीतियां। सुनाकर श्रोताओं की सराहना बटोरी। नवोदित कवि अजय यादव, युवा अधिवक्ता मनु शंकर त्रिपाठी ने अपनी रचनाधर्मिता को स्वर दिया। सत्र का ओजस्वी और भावपूर्ण ढंग से संचालन युवा कवि निखिल पांडेय ने सुनाया कि ‘हर कोई अपना ठिकाना चाहता है, कौन अपने घर से जाना चाहता है।

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