गोरखपुर जेल में 17 दिन रहे थे पंडित नेहरू, जन्मदिन पर भी काट रहे थे सजा, कैदी नंबर 3425 रही पहचान
पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने जन्मदिन पर गोरखपुर जेल में सजा काट रहे थे हालांकि जन्मतिथि के दो दिन बाद वे मात्र दो दिन ही इस जेल में रहे। गोरखपुर जेल के जिस कमरे में नेहरू गिरफ्तार करके रखे गए थे उसे आज भी सुरक्षित रखा गया है।
गोरखपुर, डॉ. राकेश राय। स्वाधीनता आंदोलन के दौरान गोरखपुर में हुई जिन ऐतिहासिक घटनाओं की चर्चा होती है, शहर के लालडिग्गी पार्क से पंडित जवाहरलाल नेहरू की गिरफ्तारी उनमें से एक और महत्वपूर्ण घटना थी। आज की तारीख में इस रमणीक पार्क को नेहरू पार्क भी इसीलिए कहा जाता है क्योंकि वह पार्क पंडित नेहरू की गिरफ्तारी का साक्षी है। इतना ही नहीं वर्ष 1988 पहले इस पार्क का नाम इस्माइल पार्क था, इसकी वजह भी वही घटना थी। पार्क में होने वाली पंडित नेहरू की सभा का जब शासन द्वारा विरोध हुआ तो जस्टिस इस्माइल उन्हें अपनी बग्गी पर बैठाकर पार्क तक ले गए थे। इस्माइल की यह पहल इतनी मशहूर हुई कि पार्क को इस्माइल साहब के नाम से जाना जाने लगा। इसी पार्क से गिरफ्तारी के बाद सजा के तौर पंडित नेहरू को 17 दिन गोरखपुर की जेल में रहना पड़ा था। अगर आपको यह लग रहा है कि अचानक पंडित नेहरू से गोरखपुर से रिश्ते की चर्चा क्यों? तो याद दिला दें कि मात्र दो दिन बाद उनका जन्मदिन है। यह अवसर है गोरखपुर से जुड़े उनके प्रसंगों को याद करने का और लोगों को याद दिलाने का।
कई बार गोरखपुर आए पंडित नेहरू
वैसे तो पंडित नेहरू गोरखपुर कई बार आए और गए लेकिन इसका कोई आधिकारिक रिकार्ड नहीं मिलता। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में अलग-अलग प्रसंगों के जरिये चर्चा से ही इसकी पुष्टि जरूर होती है। केवल 1940 में उनके दौरे का आधिकारिक रिकार्ड मिलता है, वह भी तमाम साक्ष्यों के साथ। क्योंकि उस दौरे में उन्होंने न केवल कई सभाएं कीं बल्कि इस गुनाह के लिए अंग्रेजों द्वारा जेल भी भेज गए। गोरखपुर के मंडलीय जेल में आज भी नेहरू बैरक को संजोया जाना, इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डा. मनोज तिवारी बताते हैं कि 1940 में उनके आने की वजह सात नवंबर 1940 से उनके द्वारा शुरू किया जाना सत्याग्रह था। अपने सत्याग्रह को सफल बनाने के लिए वह जन-जागरण के उद्देश्य से देश में अलग-अलग स्थानों का दौरा कर रहे थे।
जनसभा के लिए गोरखपुर आए थे नेहरू
दौरे का सर्वाधिक महत्वपूर्ण लक्ष्य अंग्रेजी साम्राज्य के खिलाफ जनता को जगाने का था। इसी क्रम में वह जनसभा के लिए गोरखपुर भी आए। गोरखपुर के लालडिग्गी पार्क सहित तीन स्थानों पर आयोजित सभा को छह व सात अक्टूबर 1940 को उन्हें संबोधित करना था। बारी-बारी से सभी सभाएं हुई, जिनमें उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत की आजादी के लिए उठ खड़े होने का आह्वान लोगों से किया था। लालडिग्गी पार्क में उनकी अंतिम सभा हुई, जहां से वह गिरफ्तार कर जेल भेजे गए। गोरखपुर में नेहरू की गिरफ्तारी से आजादी का आंदोलन और तेज हो गया। उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ देश भर में प्रदर्शन हुए।
गोरखपुर जेल में नेहरू के 17 दिन
लालडिग्गी पार्क से गिरफ्तारी के बाद उन्हें कुछ दिनों तक अलग-अलग स्थानों पर रखा गया। 31 अक्टूबर 1940 को वह मंडलीय जेल लाए गए, जहां वह 16 नवंबर तक यानी कुल 17 दिन रहे। तीन नवंबर को कलेक्टर ईडी मास ने गोरखपुर जेल में ही पं. नेहरू का ट्रायल किया और चार साल की सश्रम कारावास की सजा सुनाई। उसके बाद उनके लिए बैरक निर्धारित कर दिया गया, जिसमें वह पांच से लेकर 16 नवंबर तक रहे। इसी बैरक को आज नेहरू बैरक के रूप में जाना जाता है। 16 नवंबर को उन्हें देहरादून जेल में स्थानांतरित कर दिया गया था।
कैदी नंबर 3425 रही जेल में नेहरू की पहचान
जिला जेल में पंडित नेहरू को भी अन्य कैदियों की तरह ही नंबर से पहचान दी गई। धारा 38(1) ए/डीआइआर के तहत गिरफ्तारी दिखाकर वह कैदी नंबर 3425 बनाए गए। वहां भी उन्होंने बिना किसी घबराहट के अपनी नियमित दिनचर्या जारी रखी। जब उन्हें देहरादून जेल स्थानांतरित किया जा रहा था, तो जेल में रहने वाले अन्य कैदी काफी दुखी हो गए थे क्योंकि नेहरू जी ने अपने आत्मीय स्वभाव से सबका दिल जीत लिया था।
जेल में मनाया अपना 50वां जन्मदिन
14 नवंबर 1889 को प्रयागराज में जन्मे नेहरू 14 नवंबर 1940 को गोरखपुर जेल में अंग्रेजों द्वारा दी गई सजा काट रहे थे। हालांकि वह अपने जन्मदिन के बाद मात्र दो दिन ही इस जेल में रहे। 16 नवंबर को उन्हें देहरादून जेल स्थानांतरित कर दिया गया।
आज भी जेल में सुरक्षित है नेहरू बैरक
जेल के जिस कमरे में नेहरू गिरफ्तार करके रखे गए थे, जेल प्रशासन ने उसे आज भी सुरक्षित रखा है। उसमें किसी कैदी को नहीं रखा जाता। उसे नेहरू स्मृति भवन की तरह संजाेया जाता है। उनके बैरक में अध्ययन कक्ष, शयन कक्ष और रसोई अलग-अलग है। बैरक की दीवार उनके वहां रहने का समय भी अंकित है।
जब गोरखपुर आते फिराक के घर जरूर जाते
जवाहर लाल नेहरू की फिराक गोरखपुरी से गहरी दोस्ती थी। इस दोस्ती की वजह दोनों के पिता थे। फिराक के पिता भी गोरख प्रसाद इबरत अधिवक्ता थे और पंडित नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू का पेशा भी यही था। दोनों में खासी दोस्त थे। इसके कारण फिराक का आनंद भवन आना-जाना शुरू हुआ और इसी क्रम में उनकी नेहरू से दोस्ती का सिलसिला भी आगे बढ़ गया। फिराक गोरखपुरी की बेटी प्रेमा देवी ने 1997 में अपने पुत्र विश्वरंजन से अपने पिता से जुड़ा जो संस्मरण लिखवाया था, उसमें इस बात का जिक्र किया है कि पंडित नेहरू जब भी गोरखपुर आते थे, वह उनके घर तुर्कमानपुर स्थित लक्ष्मी निवास में ही ठहरते थे।
नेहरू बैरक में चलती है आध्यात्मिक क्लास
जेल के नेहरू बैरक में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की ओर से प्रति दिन सुबह शांति क्लास चलाई जाती है। संस्था की पारुल बहन ने बताया कि इसमें कैदियों को राजयोग ध्यान कराकर आध्यात्मिक ज्ञान दिया जाता है। जीवनचर्या में बदलाव लाने की सीख दी जाती है।