Railways News: दो करोड़ से अधिक आबादी के लिए दो ट्रेनों में 300 सीट, लोगों की बढ़ी मुश्किलें
पूर्वोत्तर रेलवे की ट्रैक क्षमता बढ़ने के बावजूद यात्रियों की मुश्किलें कम नहीं हुईं। गोरखपुर से दिल्ली के लिए सिर्फ दो नियमित ट्रेनें हैं जिनमें जनरल यात्रियों के लिए महज 300 सीटें हैं। ट्रेनों में कन्फर्म टिकट और जनरल कोचों में बैठने की जगह नहीं है। यात्री धक्के खाने को मजबूर हैं। हालांकि पूजा स्पेशल ट्रेन चलाई जा रही है।
प्रेम नारायण द्विवेदी, जागरण, गोरखपुर। पूर्वोत्तर रेलवे की ट्रैक क्षमता बढ़ गई। प्रमुख रेलमार्गों का दोहरीकरण के बाद विद्युतीकरण भी हो गया। ट्रेनों की गति बढ़कर 90-100 से 110 हो गई, लेकिन यात्रियों की मुश्किलें कम नहीं हुईं। दिल्ली का सफर तो पहाड़ चढ़ने जैसा हो गया है।
राजधानी जाने के लिए भी गोरखपुर और बस्ती मंडल के दो करोड़ से अधिक की आबादी के लिए नियमित सिर्फ दो ट्रेनें हैं। उनमें भी जनरल यात्रियों के लिए महज तीन सौ सीटें। जो ट्रेनें चल रही हैं, उनमें न कन्फर्म टिकट मिल रहा और न जनरल कोचों में बैठने की जगह।
अब तो त्योहार (दीपावली और छठ ही नहीं) वर्ष पर्यंत लोगों को धक्के खाने पड़ रहे। छठ बाद एकबार फिर पूर्वांचल, बिहार और नेपाल के लोगों के लिए दिल्ली की राह कठिन हो गई है। गोरखपुर से दिल्ली के बीच चल रही दो ट्रेनों में एक "हमसफर" पूरी तरह एसी है।
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दूसरी "गोरखधाम" अब बठिंडा तक चलने लगी है। गोरखधाम भी अब कहने के लिए दिल्ली की ट्रेन रह गई है। छठ बाद गोरखधाम में एक सप्ताह तक नो रूम (टिकटों की बुकिंग बंद) है। उसमें भी जनरल के तीन कोच ही लगते हैं। जनरल के यात्रियों को महज 300 सीटें ही मिलती हैं। एसी हमसफर पूरी तरह फुल है।
गोरखपुर से आनंदविहार के बीच एक तीसरी ट्रेन मिली है, वह भी सप्ताह में एक दिन चलती है। हालांकि, गोरखपुर के रास्ते बिहार से दिल्ली के लिए वैशाली, बिहार संपर्क क्रांति, सत्याग्रह, सप्तक्रांति आदि आधा दर्जन ट्रेनें चलती हैं, लेकिन वह गोरखपुर आने से पहले ही पूरी तरह भर जाती है।
यात्री कोचों में चढ़ भी नहीं पाते। यात्री कोचों के गेट, गैलरी में खड़ा होकर यात्रा करने को मजबूर हैं। दिल्ली और दूर होती जा रही है। क्षेत्रीय रेल उपयोगकर्ता परामर्शदात्री समिति (जेडआरयूसीसी) के सदस्य अरविंद कुमार सिंह कहते हैं कि पूर्वांचल और बिहार के जनरल यात्री धक्के खाने को विवश हैं। गोरखपुर से दिल्ली के बीच जनरल कोचों वाली एक ट्रेन की जरूरत है। इसके बाद भी रेलवे बोर्ड उदासीन बना हुआ है।
जानकारों का कहना है कि पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्यालय और पूर्वांचल का प्रमुख शहर सिर्फ गोरखपुर का ही नहीं बल्कि बस्ती मंडल, नेपाल और बिहार के करीब पांच करोड़ लोगों के आवागमन का भी मुख्य केंद्र हैं। कामगार हों या मरीज, छात्र हों या जनप्रतिनिधि। प्रतिदिन हजारों लोग दिल्ली के लिए आवाजाही करते हैं। त्योहारों में तो गोरखपुर जंक्शन से प्रतिदिन आवागमन करने वाले लोगों की संख्या एक लाख पहुंच गई है। गोरखपुर होकर प्रतिदिन लगभग 200 ट्रेनें चलती हैं।
इसे भी पढ़ें-17 दिन बैंड बाजा-बारात से मचेगा धमाल, फिर खरमास बाद गूंजेगी शहनाईट्रेनों में घटती गईं स्लीपर और जनरल बोगियां, बढ़ती गईं लोगों की मुश्किलेंट्रेनों में स्लीपर और जनरल बोगियों के घटने के साथ लोगों की मुश्किलें भी बढ़ गई हैं। जब आरक्षित कन्फर्म टिकट नहीं मिल रहा तो लोग जनरल कोचों की तरफ भाग रहे, लेकिन वहां सीटें भी नहीं मिल रहीं। गोरखधाम ही नहीं बिहार से चलने वाली ट्रेनों में भी जनरल कोच कम हो गए हैं।
रेल मंत्रालय के निर्देश पर ट्रेनों में दो से तीन कोच जनरल और चार से पांच कोच ही स्लीपर के लगाए जा रहे हैं। एसी कोचों की संख्या बढ़ती जा रही है। बिहार से चलने वाली ट्रेनों में तो टायलेट भी फुल हो जाते हैं। कहीं खड़ा होने की जगह नहीं बचती है।
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