पूर्वोत्तर रेलवे: समपार फाटकों की हालत खराब, मानकों की अनदेखी उठा रहे संरक्षा पर सवाल
उत्तर पूर्व रेलवे के समपार फाटकों की स्थिति बेहद खराब है खासकर वाराणसी मंडल में। शौचालय बदहाल हैं पीने के पानी की कमी है केबिन की छतें टूटी हुई हैं और रात में अंधेरा रहता है। रेल लाइनों पर बिखरी गिट्टियां दुर्घटनाओं का कारण बन सकती हैं। रेलवे प्रशासन के दावों के बावजूद संरक्षा मानकों की अनदेखी की जा रही है।
प्रेम नारायण द्विवेदी, जागरण, गोरखपुर। पूर्वोत्तर रेलवे के समपार फाटकों की स्थिति दयनीय है। वाराणसी मंडल के फाटकों की हालत तो और खराब है। शौचालय बदहाल हैं। अधिकतर उपयोग के लायक नहीं रह गए हैं। गेटमैनों के लिए पीने के पानी की समुचित व्यवस्था नहीं है।
केबिन की छतें टूटकर गिर रही हैं। शाम होते ही फाटक और उसके आसपास अंधेरा छा जाता है। रेल लाइनों पर गिट्टियां बिखर रही हैं। रात के समय फाटक बंद होने के बाद भी दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। मानकों की अनदेखी और उदासीनता संरक्षा पर सवाल उठा रहे हैं।
यह तब है जब रेलवे प्रशासन दावा करता रहता है कि 'संरक्षा और सुरक्षा' रेलवे की प्राथमिकताओं में है। संरक्षा को लेकर रेलवे बोर्ड नित नई गाइड लाइन जारी कर रहा है। अफसर दफ्तरों से निकल रेल लाइनों, समपार फाटकों, स्टेशन यार्डों और कारखानों को जांच-परख रहे हैं।
गोंडा ट्रेन दुर्घटना के बाद बैकफुट पर आए पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने संरक्षा को लेकर एक माह का सघन निरीक्षण अभियान चलाया है। इसके बाद भी ढाक के वही तीन पात वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। पूर्वोत्तर रेलवे के मुख्य कारखाना इंजीनियर हेमंत कुमार ने जब शनिवार की रात वाराणसी मंडल के कुछ समपार फाटकों और स्टेशनों का औचक निरीक्षण किया तो पुख्ता हो रहे संरक्षा के दावों की पोल खुल गई।
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रात 12 बजे देवरिया स्टेशन के पास स्थित गेट संख्या 129 स्पेशल पहुंचे तो उनके कान खड़े हो गए। फाटक के आसपास अंधेरा था। बूम पर सही से परावर्ती टेप नहीं लगा था। रेल लाइनों पर बिखरी गिट्टियां दुर्घटना को दावत दे रही थीं। न सड़क ठीक थी और न स्पीड ब्रेकर। छत टूटा हुआ था।
गेटमैन घनश्याम बताने लगे, पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है। शौचालय है, लेकिन उपयोग लायक नहीं है। वर्षा के समय छत का पानी केबिन में गिरने लगता है। कमोबेश यही स्थिति गेट संख्या 139 स्पेशल की रही। गेटमैन रामरतन भी अपनी समस्याएं बताने लगे।इस गेट पर भी पानी और प्रसाधन केंद्र की समुचित व्यवस्था नहीं पाई गई। समपार फाटक ही नहीं स्टेशनों की स्थिति भी अच्छी नहीं है। देवरिया जैसे प्रमुख स्टेशन के स्टेशन मास्टर का कक्ष भी बदहाल है। खिड़कियां टूट चुकी हैं।
खिड़कियों पर पान के पीक के धब्बे रेलवे के 'स्वच्छ रेलवे' के दावों की हवा निकाल रहे हैं। एनई रेलवे मजदूर यूनियन (नरमू) के महामंत्री केएल गुप्ता कहते हैं कि मेन लाइन पर आज भी गेटमैन 8 की जगह 12-12 घंटे की ड्यूटी कर रहे हैं। 24 घंटे में 150 से 200 ट्रेनें गुजरती हैं।इसके बाद भी गेटमैनों के लिए न पीने के पानी की व्यवस्था है और न प्रसाधन और बिजली की। कुछ गेटों पर शौचालय बने हैं, लेकिन वह भी बदहाल हैं। गेटों पर अव्यवस्था से संरक्षा प्रभावित हो रही है। दुर्घटना की आशंका बनी रहती है।
रेलवे प्रशासन के साथ आयोजित स्थायी वार्ता तंत्र की बैठक में संरक्षा और गेटमैनों की समस्याओं को प्रमुखता से उठाया गया है। यथाशीघ्र समाधान नहीं हुआ तो मामले को बोर्ड और मंत्रालय तक उठाया जाएगा।इसे भी पढ़ें-पूर्वांचल में स्मार्ट मीटर से बिजली चोरी पर लगेगी लगाम, काशी से होगी निगरानी
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