Gorakhpur News: सिस्टम की लापरवाही से हड़प ली संपत्ति, जांच के बाद हुआ पर्दाफाश
उषा के गांव के सचिव ने माना कि वह सभापति की पुत्री है। ऊषा का विवाह हुआ था लेकिन नामांतरण बाद में उसने स्वयं को अविवाहित बताया। नायब तहसीलदार ने नामांतरण करने में जल्दबाजी की। न तो पूरे कागज देखे और न ही बृजबिहारी पांडेय को कोई नोटिस दी गई जबकि 12 वर्षों से जमीन उनके नाम थी। जांच रिपोर्ट आने के बाद ऊषा पांडेय पर एफआइआर दर्ज हुई है।
उमेश पाठक, जागरण गोरखपुर। फर्जीवाड़ा करने वाले सिस्टम को अपने हिसाब से किस तरह घुमाते हैं, बृजबिहारी पांडेय के मामले में यह स्पष्ट नजर आता है। लापरवाही सिस्टम व उसमें काम कर रहे भ्रष्टाचार को लालायित कर्मियों एवं अधिकारियों की अनदेखी के चलते एक महिला ने स्वयं को दूसरे की पुत्री साबित कर दिया और उसकी जमीन का नामांतरण भी अपने नाम करा लिया।
जमीन नाम होते ही उसने बेच भी दिया और करोड़पति बन गई। मामला जब मुख्यमंत्री कार्यालय तक पहुंचा तो दो अपर जिलाधिकारियों से सघन जांच कराई गई। जांच में सिस्टम की लापरवाही व भ्रष्टाचार की परतें खुलती गईं। जालसाजी करने वालों पर एफआइआर दर्ज हो चुकी है और विवेचना जारी है।
सदर तहसील के भस्मा निवासी बृजबिहारी पांडेय ने अपनी पत्नी सत्यवती देवी के नाम से जंगल सालिकराम में लगभग 21 डिसमिल जमीन खरीदी थी। चहारदिवारी बनाने के बाद 10 दुकानें भी बनाईं। 2009 में उनकी पत्नी का निधन हो गया। बृजबिहारी के कोई संतान नहीं थी, इसलिए नौ फरवरी, 2010 को जमीन उनके नाम दर्ज हो गई।
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लगभग 12 वर्षों तक उनका नाम दर्ज रहा लेकिन इसके बाद एक महिला ऊषा पांडेय ने उनकी पुत्री होने का दावा किया। उसने बृजबिहारी के गांव के परिवार रजिस्टर पर फर्जी तरीके से अपना नाम दर्ज करा लिया। महराजगंज जिले के नौतनवां तहसील स्थित उसके गांव के परिवार रजिस्टर पर उसके पिता का नाम सभापति पांडेय दर्ज था।
बृजबिहारी उसके मौसा हैं और उनकी संपत्ति हासिल करने के लिए उसने सरकारी कर्मियों के साथ मिलकर यह कूटरचना कर डाली। मामूली कागजों पर ही 26 मार्च, 2022 को उसने स्वयं को बृजबिहारी की पुत्री बताते हुए नामांतरण के लिए आवेदन दिया और 70 दिनों के भीतर ही दो जून, 2022 को तत्कालीन नायब तहसीलदार पिपराइच ने बृजबिहारी का नाम खारिज कर उसका नाम दर्ज कर दिया। उसने नौ मई, 2024 को यह जमीन एक करोड़ रुपये में बेच दी जबकि उसकी बाजार कीमत लगभग पांच करोड़ रुपये है।
यह बात जब बृजबिहारी को पता चली तो उनके पैरों तले से जमीन खिसक गई। उन्होंने कायमी दाखिल किया। आदेश करने वाले नायब तहसीलदार का स्थानांतरण हो गया था। उनके बाद आए समकक्ष अधिकारी ने आदेश पर स्थगन दे दिया। लेकिन जब उनका भी स्थानांतरण हो गया तो नए अधिकारी ने नामांतरण के आदेश को सही माना।
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सिस्टम से हारकर बृजबिहारी पांडेय ने मुख्यमंत्री के यहां शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद डीएम ने इस मामले की सघन जांच के लिए अपर जिलाधिकारी प्रशासन पुरुषोत्तम दास गुप्ता एवं मुख्य राजस्व अधिकारी सुशील कुमार गोंड को निर्देश दिया।दोनों अधिकारियों की जांच में भ्रष्टाचार व सिस्टम की लारवाही उजागर हुई। यह पाया गया कि भस्मा के परिवार रजिस्टर में फर्जी तरीके से नाम दर्ज हुआ। वहां के सचिव ने बाद में सघन जांच कर पुराने दर्ज नाम को निरस्त कर दिया और माना कि ऊषा, बृजबिहारी की पुत्री नहीं है।
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