यूं ही नहीं मिला राधेश्याम खेमका पद्म विभूषण, गीता प्रेस को चलाने में था अहम रोल
Radheshyam Khemka राधेश्याम खेमका को पद्म विभूषण मिलने से गीता प्रेस ही नहीं पूरे गोरखपुर में हर्ष और उल्लास का माहौल है। गीताप्रेस की मासिक पत्रिका कल्याण के संपादक रहे राधेश्याम खेमका ने गीताप्रेस के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था।
By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Thu, 27 Jan 2022 09:05 AM (IST)
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। गीताप्रेस से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका 'कल्याण' के संपादक रहे राधेश्याम खेमका अंतिम सांस तक शताब्दी वर्ष की तैयारियों में मशगूल रहे। उन्होंने गीताप्रेस के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया था। उन्होंने प्रबंधक से यहां तक कहा था कि अब काशी में ही रहने की इच्छा है। तीर्थयात्रा या गीताप्रेस के काम से ही अब काशी के बाहर जा सकता हूं। मंगलवार को भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण सम्मान से नवाजा तो गीताप्रेस खुशियों में डूब गया। ट्रस्टी व कर्मचारियों ने फोन, वाट्सएप व मैसेज कर एक-दूसरे को बधाई दी।
अंतिम सांस तक शताब्दी वर्ष की तैयारियों में रहे मशगूल गीताप्रेस के ट्रस्टी देवीदयाल अग्रवाल व प्रबंधक लालमणि तिवारी ने बताया कि राधेश्याम खेमका ने गीताप्रेस के शताब्दी वर्ष की तैयारियों के क्रम में पिछले सात मार्च को वाराणसी में गीताप्रेस प्रबंधन के साथ बैठक की थी। उन्होंने वृंदावन के मलूकपीठाधीश्वर राजेंद्र दास महाराज की श्रीराम कथा से शताब्दी वर्ष की शुरुआत की बात कही थी। उन्होंने यह भी सुझाव दिया था कि समापन समारोह के मुख्य अतिथि के रूप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आमंत्रण जरूर भेजा जाए। दिल्ली जाकर उनसे मिलकर समारोह में आने के लिए अनुरोध किया जाए। इसके साथ ही उन्होंने पूरे वर्ष के कार्यक्रमों की योजना पर विचार-विमर्श किया था। कल्याण के सभी 95 विशेषांकों से 100 महत्वपूर्ण लेख लेकर एक स्वतंत्र ग्रंथ प्रकाशित करने की भी उन्होंने सहमति प्रदान की थी।
खेमका के प्रयासों से प्रकाशित हुई कर्मकांड व संस्कारों की अनेक पुस्तकें राधेश्याम खेमका भले ही केवल कल्याण के संपादक थे लेकिन गीताप्रेस से प्रकाशित होने वाली अनेक पुस्तकों का विचार उन्होंने ही दिया था। खासकर कर्मकांड व संस्कारों से संबंधित पुस्तकों का प्रकाशन उन्हीं के सुझाव पर किया गया। इसमें नित्य कर्म पूजा प्रकाश, अंत्यकर्म श्राद्ध प्रकाश, गया श्राद्ध पद्धति, त्रिपिंडी श्राद्ध पद्धति, संस्कार प्रकाश, गरुण पुराण सारोद्धार व जीवच्छ्राद्ध पद्धति आदि पुस्तकें हैं।
पत्तल में खाते थे और कुल्हड़ में पीते थे पानी राधेश्याम खेमका पूरी तरह धार्मिक व सात्विक प्रवृत्ति के थे। वह स्टील या लोहे के बर्तन में कभी भोजन नहीं करते थे। गीताप्रेस आते थे तो यहां पत्तल में खाना खाते थे और कुल्हड़ में पानी पीते थे। इतना ही नहीं उन्होंने कभी चर्म वस्तुओं का उपयोग नहीं किया। जूता भी कपड़े या रबर का पहनते थे।राधेश्याम खेमका- एक परिचय
पिता का नाम- सीताराम खेमकाजन्म- 12 दिसंबर 1935जन्म स्थान- मुंगेर, बिहारस्थायी निवास- वाराणसीशिक्षा- काशी हिंदू विश्वविद्यालय से एमए व साहित्य रत्न1982 में गीताप्रेस की पत्रिका 'कल्याण' के संपादक बनेतिरोधान- तीन अप्रैल 2021, काशी में।
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