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North Eastern Railway: जानवरों की सुरक्षा के लिए स्‍लीपर से बन रही दीवार

प्रथम चरण में स्लीपर की दीवारें उन रेलखंडों पर ही तैयार की जाएंगी जिन क्षेत्रों में पशु और मानव के कटने (सीआरओ-एमआरओ) की दुर्घटनाएं अधिक होती हैं। इंजीनियरिंग और सुरक्षा विभाग इन संवेदनशील क्षेत्रों को पहले से ही चिन्हित कर लिया है।

By Satish chand shuklaEdited By: Published: Sat, 23 Jan 2021 12:37 PM (IST)Updated: Sat, 23 Jan 2021 12:37 PM (IST)
रेल लाइन के किनारे स्लीपर से तैयार हो रहा बाउंड्रीवाल।

गोरखपुर, जेएनएन। रेलवे के अनुपयोगी स्लीपर (पटरियों के नीचे लगने वाले कंकरीट के स्लीपर) अब दीवारों की ईंट बनेंगे। पटरियों से निकले स्लीपरों  का निस्तारण नहीं होगा, बल्कि उनका उपयोग रेल लाइनों के किनारे बाउंड्रीवाल बनाने में किया जाएगा। पूर्वोत्तर रेलवे के इंजीनियरों की इस नायाब पहल से पशु और मानव सुरक्षित तो होंगे ही,  दुर्घटनाओं, अतिक्रमण और ट्रेनों की लेटलतीफी पर भी पूरी तरह अंकुश लगेगा।

पहले चरण में इन स्‍थानों पर तैयारी

प्रथम चरण में स्लीपर की दीवारें उन रेलखंडों पर ही तैयार की जाएंगी, जिन क्षेत्रों में पशु और मानव के कटने (सीआरओ-एमआरओ) की दुर्घटनाएं अधिक होती हैं। इंजीनियरिंग और सुरक्षा विभाग इन संवेदनशील क्षेत्रों को पहले से ही चिन्हित कर लिया है। लखनऊ मंडल में आनंदनगर-कैंपियरगंज, नकहा जंगल- कौडिय़ा, जगतबेला-सहजनवां, सहजनवां- मगहर, मुंडेरवा, पुरानी बस्ती, गोंडा, स्वामीनारायण छपिया आदि रेलखंड शामिल हैं। फिलहाल, इंजीनियरों का नव प्रयोग शुरू हो चुका है।

यहां शुरू हुआ काम

गोंडा से मनकापुर के बीच मोतीगंज-झिलाई खंड की रेल लाइनों के किनारे स्लीपर की दीवारें बननी शुरू हो गई हैं। धीरे-धीरे सभी संवेदनशील क्षेत्रों में दीवारें खड़ी कर दी जाएंगी। दरअसल, पटरियों से निकाले गए स्लीपर नीलाम कर दिए जाते हैं। उससे रेलवे को नाम मात्र की आय होती है। ऐसे में रेलवे के इंजीनियरों ने स्लीपर का उपयोग दीवार बनाने में करने की योजना तैयार की है। ताकि, रेलवे सहित आम जन को भी इसका लाभ मिल सके। यहां जान लें कि रेलवे की भूमि का अतिक्रमण होता रहता है। रेल लाइनों पर छुटटा पशुओं और मानव के दुर्घटना के मामले भी आए दिन प्रकाश में आते रहते हैं। पशुओं के दुर्घटनाग्रस्त होने से ट्रेन के इंजन क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। ट्रेनें लेट होती हैं।

पटरियों को मजबूत करने के लिए बदले जा रहे स्लीपर

पूर्वोत्तर रेलवे की पटरियों को मजबूत बनाने के लिए स्लीपर बदले जा रहे हैं। पुराने 52 किलोग्राम जगह अब  60 किलो वाले नए स्लीपर लग रहे हैं। ऐसे में रेल लाइनों से बड़ी मात्रा में स्लीपर निकल रहे हैं। इन स्लीपरों का उपयोग दीवार बनाने में किया जाएगा। वर्तमान में गोरखपुर कैंट- कप्तानगंज रूट की रेल लाइनों के स्लीपर बदले जा रहे हैं। पूर्वोत्‍तर रेलवे के मुख्‍य जन संपर्क अधिकारी पंकज कुमार सिंह का कहना है कि एक नवीन प्रयोग के तौर पर लखनऊ मंडल द्वारा ट्रैक नवीनीकरण के दौरान निकले पुराने कंक्रीट स्लीपर को ट्रैक के किनारे बाउंड्रीवाल बनाने में किया जा रहा है। इसके पूर्व भी स्क्रैप स्लीपर का उपयोग गुड्स शेड की फ्लोरिंग के लिए किया जा चुका है। इस तरह के अभिनव प्रयोगों से रेल राजस्व की बचत के साथ रेलवे यार्ड की स्व'छता भी सुनिश्चित होती है।


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