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#Gorakhpur Railway Station : गोरखपुर से दूर होती गई 'राजधानी', प्रस्‍ताव तक ही सिमटी योजना

गोरखपुर पूर्वोत्‍तर रेलवे का मुख्‍यालय है। यहां से बिहार और पड़ोसी देश नेपाल से भी यात्रियों की आवाजाही रहती है लेकिन यहां अभी तक गोरखपुर को राजधानी एक्‍सप्रेस नहीं मिली।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Tue, 21 May 2019 01:16 PM (IST)
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#Gorakhpur Railway Station : गोरखपुर से दूर होती गई 'राजधानी', प्रस्‍ताव तक ही सिमटी योजना
गोरखपुर, प्रेम नारायण द्विवेदी। पूर्वोत्तर रेलवे यात्री प्रधान रेलवे है। इस रेलवे की कमाई का जरिया सिर्फ यात्री हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के केंद्र गोरखपुर में इसका मुख्यालय होने के चलते यह पड़ोसी मुल्क नेपाल और बिहार से सीधे जुड़ा है। रोजगार के साधनों का टोटा है। युवाओं का पलायन लगातार जारी है। सिर्फ नेपाल से ही रोजाना हजारों लोग ट्रेन पकडऩे के लिए गोरखपुर पहुंचते हैं। पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की यात्रा का एक मात्र साधन भी साधन रेलवे ही है। लेकिन वह भी आज तक उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका। पूर्वोत्तर रेलवे की झोली में ट्रेनें तो आईं लेकिन राजधानी दिल्ली दूर होती गईं। न राजधानी एक्सप्रेस चली और न राजधानी दिल्ली के लिए और ट्रेनें मिलीं। राजधानी दिल्ली की यात्रा पहाड़ चढऩे जैसी हो गई है। ऐसा नहीं है कि राजधानी पर रेलवे की नजर नहीं है।

कई बार प्रस्ताव बनें, लेकिन योजना परवान नहीं चढ़ सकी। तकनीकी कारणों से शताब्दी पर भी मुहर नहीं लग सकी। दुरंतो भी पास नहीं हुई। हालांकि, राजधानी, दूरंतो और दिल्ली के लिए रोजाना एक और एक्सप्रेस, अंत्योदय या जनसाधारण एक्सप्रेस की मांग उठती रही है। जनप्रतिनिधियों ने भी आवाज उठाई। मुद्दा भी बना, लेकिन आज तक राजधानी दिल्ली की राह आसान नहीं हो पाई। हालांकि, हमसफर एक्सप्रेस ने आरक्षित टिकट पर यात्रा करने वाले लोगों की मुश्किलों पर मरहम लगाने की कोशिश की लेकिन वह भी अपेक्षाओं पर अभी भी खरा नहीं उतर सकी। लोग आज भी सुरक्षित ढंग से कम समय में राजधानी की यात्रा करने की इच्छा रखते हैं। यही नहीं जनरल टिकट पर दिल्ली की यात्रा करने वाले आम यात्री आज भी शाम की ट्रेन गोरखधाम पकडऩे के लिए सुबह से ही लाइन में बैठ जाते हैं। एक सीट के लिए उन्हें जगह-जगह धक्के खाने पड़ते हैं। लेकिन सवाल यह है कि आखिर कब तक। पूर्वांचल, बिहार और मित्र राष्ट्र नेपाल के लोग कब तक ठगे जाते रहेंंगे।

राजधानी की राह में स्पीड बनी रोड़ा, एनईआर के हाथ से फिसल गई ट्रेन 

गोरखपुर के रास्ते राजधानी एक्सप्रेस चलाने की योजना कई बार बनीं। कई बार प्रस्ताव तैयार हुए। रेल लाइनों का परीक्षण हुआ। मजबूती जांची गई। ट्रेनों के बीच गैप भी खोजा गया लेकिन बात नहीं बन पाई। स्पीड राजधानी की राह में रोड़ा बन गई। रेलवे बोर्ड ने वर्ष 2017 में पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय गोरखपुर के रास्ते आनंदविहार टर्मिनस (दिल्ली) से त्रिपुरा की राजधानी अगरतला के बीच राजधानी एक्सप्रेस चलाने की योजना तैयार की थी। गोरखपुर में इस ट्रेन का दस मिनट का ठहराव का प्रस्ताव बना। इस ट्रेन को चलाने के लिए दबाव बनाया गया। यह ट्रेन उत्तर रेलवे, पूर्वोत्तर रेलवे और पूर्व मध्य रेलवे से होकर चलाई जानी थी। लेकिन इन रूटों पर ट्रेनों का अधिक दबाव के चलते गैप नहीं मिल पाया। ट्रेन को स्पीड नहीं मिली तो आम सहमति भी नहीं बन पाई। राजधानी के लिए सुपरफास्ट ट्रेन की औसत गति 55 किमी प्रति घंटा से अधिक होनी चाहिए। लेकिन ट्रेनों के दबाव में राजधानी की गति 52 से अधिक नहीं हो पाई। अंतत: पूर्वोत्तर रेलवे मुख्यालय रूट से राजधानी की योजना ठंडे बस्ते में चली गई।

भविष्य की राजधानी बनेगी नाहरलागून एसी साप्ताहिक एक्सप्रेस

गोरखपुर के रास्ते नई दिल्ली से नाहरलागून तक साप्ताहिक नाहरलागनु-नई दिल्ली-नाहरलागुन 22411/22212 एसी सुपरफास्ट एक्सप्रेस चल रही है। इस ट्रेन में वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी के चार, तृतीय श्रेणी के दस और प्रथम श्रेणी के एक कोच लगाए जाते हैं। रेलवे के जानकारों का कहना है कि यह एसी ट्रेन ही भविष्य की राजधानी एक्सप्रेस है। दरअसल, नाहरलागून से अरुणाचल प्रदेश की राजधानी ईटानगर के बीच रेल लाइन निर्माण की योजना है। नाहरलागुन से ईटानगर तक रेल लाइन बिछ जाने से नाहरलागुन एसी एक्सप्रेस का मार्ग विस्तार  कर दिया जाएगा। इसके बाद यही ट्रेन राजधानी के रूप में ईटानगर से नई दिल्ली के बीच चलने लगेगी। इसके साथ ही यह ट्रेन अरुणाचल को सीधे राजधानी दिल्ली को जोड़ेगी।


दो मंडल, सात जिले और दिल्ली जाने के लिए रोजाना महज एक ट्रेन

120 दिन पहले भी हाथ में वेटिंग टिकट।  तत्काल की सुविधा भी असुविधा बनती जा रही। जनरल टिकट पर भी यात्रा की कोई गारंटी नहीं। ऊपर से दलालों की सेंधमारी, कोढ़ में खाज का काम करती है। अगर दिल्ली जाना है तो शाम वाली ट्रेन गोरखधाम के लिए सुबह से ही लाइन लगानी पड़ेगी। इसके लिए भी एक बार जनरल टिकट फिर टोकन लेना पड़ेगा। भीड़ में इसके बाद भी सीट का कोई भरोसा नहीं। भीड़ थोड़ी बढ़ गई तो अफरातफरी के बीच ट्रेन छूट भी सकती है।

दरअसल, गोरखपुर से दिल्ली के बीच रोजाना सिर्फ एक ट्रेन गोरखधाम है। वह भी अब हिसार तक जाने लगी है। इस ट्रेन में भी जनरल के सात जनरल कोच लग रहे हैं। इसके लिए भी दैनिक जागरण को मुहिम चलाना पड़ा है। इस ट्रेन के भरोसे गोरखपुर और बस्ती मंडल स्थित सात जिलों के लगभग दो करोड़ से अधिक जनता है। इसके अलावा बिहार और नेपाल के यात्री भी इसी ट्रेन से दिल्ली तक की यात्रा करते हैं। ऐसा नहीं है कि दिल्ली के लिए कोई ट्रेन नहीं है। गोरखपुर से आनंदविहार के बीच एक साप्ताहिक ट्रेन चलती है। बिहार से दिल्ली के लिए बिहार संपर्क क्रांति एक्सप्रेस, सप्तक्रांति, सत्याग्रह और वैशाली एक्सप्रेस सहित कई ट्रेनें हैं लेकिन वह पहले से ही फुल रहती हैं। गोरखपुर में पैर रखने की जगह नहीं मिलती। हालांकि, पूर्वोत्तर रेलवे प्रशासन ने गोरखपुर से नई दिल्ली क्षेत्र के बीच अंत्योदय और जनसाधारण एक्सप्रेस चलाने के लिए प्रस्ताव तैयार कर रेलवे बोर्ड को भेज दिया है। उम्मीद जताई जा रही है कि पूर्वोत्तर रेलवे को चुनाव बाद गोरखपुर से दिल्ली के बीच नई ट्रेन की सौगात मिल जाएगी।

तकनीकी की पेंच में फंसी गोरखपुर-नई दिल्ली शताब्दी एक्सप्रेस

आम जनता की परेशानियों और जन प्रतिनिधियों की मांग पर रेलवे ने शताब्दी एक्सप्रेस चलाने की भी योजना तैयार की थी। लेकिन योजना तकनीकी पेंच में फंस गईं। जानकारों का कहना है कि राजधानी तो देश की राजधानी से राज्य की राजधानी के बीच संचालित होती है। शताब्दी भी देश या राज्य की राजधानी से संचालित की जाती है लेकिन इसमें समय की पाबंदी होती है। शताब्दी को 24 घंटे के अंदर ओरिजनेटिंग स्टेशन पर पहुंचना अनिवार्य होता है। जो गोरखपुर से दिल्ली के बीच संभव नहीं हो पा रहा है।

अपवाद स्वरूप भी चलती है राजधानी, शताब्दी पर भी विचार संभव

वर्तमान में गोरखपुर से बनकर और इस रास्ते से होकर रोजाना और साप्ताहिक मिलाकर दिल्ली जाने वाली कुल 25 ट्रेनें हैं। फिर भी यात्रियों की संख्या के हिसाब से ट्रेनों की संख्या पर्याप्त नहीं है। आनंदविहार से अरुणाचल के नाहरलागुन के बीच वर्ष 2015 से एसी एक्सप्रेस चल रही है। उस समय इस ट्रेन को राजधानी के रूप में चलाने की मांग उठी थी। सामान्यत: राजधानी एक्सप्रेस देश की राजधानी से किसी राज्य की राजधानी को जोडऩे के लिए ही चलाई जाती है। लेकिन आवश्यकता एवम् महत्व के आधार पर इसका अपवाद भी कर दिया जाता है। जैसे नई दिल्ली-गुवाहाटी के बीच चलने वाली त्रैसाप्ताहिक राजधानी को डिब्रूगढ़ टाउन तक बढ़ा दिया गया, जो असोम राज्य की राजधानी नहीं है। ऐसे में दिल्ली-नाहरलागुन एसी एक्सप्रेस को भी राजधानी के रूप में परिवर्तित किया जा सकता है।  वैसे भी कई मेडिकल कालेज, इंजीनियरिंग कालेज, एम्स और मिलिट्री आफ एयरफोर्स स्थापित हो जाने से पूर्वांचल का गोरखपुर महानगर महत्वपूर्ण हो गया है। गुवाहाटी से अगरतला (त्रिपुरा राज्य की राजधानी) तक रेलवे लाइन का निर्माण हो चुका है और उसका उपयोग भी हो रहा है। भविष्य में प्रस्तावित राजधानी एक्सप्रेस ट्रेन को  त्रिपुरा राज्य की राजधानी अगरतला से भी जोड़ा जा सकता है। गोरखपुर से शताब्दी ट्रेन चलाए जाने की मांग भी समय समय पर उठती रही है। शताब्दी ट्रेन पूरी एसी चेयरकार होती है और दो ऐसे स्टेशनों के बीच चलाई जाती है जिनके बीच दिन में गंतव्य पर पहुंच कर उसी दिन प्रारंभिक स्टेशन पर वापसी यात्रा भी पूरी कर लेती है। वैसे गोरखपुर से शताब्दी एक्सप्रेस चलाने पर विचार किया जा सकता है।

- राकेश त्रिपाठी, पूर्व मुख्य परिचालन प्रबंधक, पूर्वोत्तर रेलवे - गोरखपुर

यह भी जानें

-  पूर्वोत्तर रेलवे रूट पर प्रतिदिन लगभग 200 गाडिय़ां चलती हैं। इनमें से करीब 150 यात्री और शेष मालगाडिय़ां हैं।

- गोरखपुर से रोजाना 28 सवारी गाडिय़ां बनकर चलती हैं। करीब 20 एक्सप्रेस ट्रेनें रवाना होती हैं।

- गोरखपुर स्टेशन स्थित जनरल काउंटर से ही रोजाना 35 हजार लोग टिकट बुक करते हैं।

- गोरखपुर जंक्शन से होकर रोजाना 60 हजार लोग आवागमन करते हैं।

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