Gorakhpur News: गोरखपुर के मोती पोखरे ने 17 दिनों में बदली सूरत, अब साफ दिख रही वर्षों पहले डूबी नाव
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के मोती पोखरे ने 17 दिनों में अपना कायापलट करा लिया है। साउथ अफ्रीका की कंपनी वेलिएंट इंटैक प्राइवेट लिमिटेड ने अपनी पेटेंट तकनीक ‘आरईजीएएल’ से पोखरे की सफाई की है। अब पोखरे में वर्षों पहले डूबी नाव भी साफ दिखाई दे रही है। पोखरे की सफाई के बाद नगर निगम प्रशासन इसका सुंदरीकरण कराएगा।
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। महीने, डेढ़ महीने पहले शहर के बशारतपुर मोहल्ले में स्थित मोती पोखरे को देखने वाले लोग अब उसकी सूरत देखकर यकीन ही नहीं करेंगे कि यह वही पोखरा है। काई की मोटी परत से जिस पोखरे में पानी नहीं दिखता था 17 दिन बाद अब वहां वर्षों पहले डूबी नाव भी साफ दिखाई दे रही है।
नगर निगम ने पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर इस पोखरे की सफाई की जिम्मेदारी साउथ अफ्रीका में तालाब और पोखरों को शोधित कर स्वच्छ बना रही गुजरात की कंपनी वेलिएंट इंटैक प्राइवेट लिमिटेड को दी थी।
तय हुआ था कि पोखरे की सफाई ठीक से हुई तो फर्म की पेटेंट तकनीक ‘आरईजीएएल’ यानी रेडिकल एन्हांसमेंट यूसिंग गैस असिस्टेड लिक्विड डिस्पर्सन’ से ही शहर के दूसरे पोखरे की भी सफाई कराई जाएगी। फिलहाल फर्म अपने खर्च पर 24 सितंबर को इस पोखरे की सफाई शुरू की थी और 25 दिन में इसकी सूरत बदल गई है। यद्यपि, अनुबंध के मुताबिक पोखरे की सफाई 90 दिन चलेगी।
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प्रोजेक्ट की निगरानी कर रहे परम देसाई का दावा है कि जांच में पोखरे में बीओडी (जैव रासायनिक आक्सीजन मांग) 65 से घट कर नौ पीपीएम और सीओडी (रासायनिक आक्सीजन मांग) 170 से घट कर 10.1 पीपीएम और अमोनिया की मात्रा भी खतरनाक स्तर 1.8 पीपीएम से घट कर 0.01 पीपीएम रह गई है।
24 सतंबर को सफाई शुरू करने के समय मोती पोखरे का हाल।- जागरण
उन्होंने बताया कि दशकों पुराने मोती पोखरे को स्वच्छ बनाने के लिए नैनो बबल्स की शक्ति, उत्प्रेरक के रूप में अल्ट्रासाउंड और फ्री रेडिकल्स का उपयोग किया जा रहा। टीम अल्ट्राउंड मशीन से 20 हजार से 30 हजार मेगा हर्त्ज की ध्वनियां पोखरे के जल में उत्पन्न कर ई-कोलाई बैक्टीरिया के सेल को क्षतिग्रस्त कर रही है।निरंतर चलने वाली इस प्रक्रिया से ई-कोलाई मृत हो जाते हैं। दूसरी ओर नैनो बबल तकनीक का ‘एरेटर’ की मदद से इस्तेमाल जारी है। एरेटर कोरोना वायरस से भी छोटे-छोटे बुलबुलों की मदद से आक्सीजन पानी के तल तक पहुंचाता है। इसे भी पढ़ें-पाकिस्तान की लड़की से जौनपुर के लड़के का हुआ ऑनलाइन निकाह, वीडियो कॉल पर बोले- 'कुबूल है'इससे जल में आक्सीजन की मात्रा में वृद्धि के साथ लाभकारी बैक्टीरिया को पनपने और उसे खुद को तेजी से विस्तारित करने में सफलता मिलेगी। लाभकारी बैक्टीरिया पोखरे के तल में जमा गंदगी (सीओडी एवं बीओडी) को भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जिससे पोखरे की सफाई होने के साथ जल का घनत्व भी बढ़ जाता है।
आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।उन्होंने बताया कि दशकों पुराने मोती पोखरे को स्वच्छ बनाने के लिए नैनो बबल्स की शक्ति, उत्प्रेरक के रूप में अल्ट्रासाउंड और फ्री रेडिकल्स का उपयोग किया जा रहा। टीम अल्ट्राउंड मशीन से 20 हजार से 30 हजार मेगा हर्त्ज की ध्वनियां पोखरे के जल में उत्पन्न कर ई-कोलाई बैक्टीरिया के सेल को क्षतिग्रस्त कर रही है।निरंतर चलने वाली इस प्रक्रिया से ई-कोलाई मृत हो जाते हैं। दूसरी ओर नैनो बबल तकनीक का ‘एरेटर’ की मदद से इस्तेमाल जारी है। एरेटर कोरोना वायरस से भी छोटे-छोटे बुलबुलों की मदद से आक्सीजन पानी के तल तक पहुंचाता है। इसे भी पढ़ें-पाकिस्तान की लड़की से जौनपुर के लड़के का हुआ ऑनलाइन निकाह, वीडियो कॉल पर बोले- 'कुबूल है'इससे जल में आक्सीजन की मात्रा में वृद्धि के साथ लाभकारी बैक्टीरिया को पनपने और उसे खुद को तेजी से विस्तारित करने में सफलता मिलेगी। लाभकारी बैक्टीरिया पोखरे के तल में जमा गंदगी (सीओडी एवं बीओडी) को भोजन के रूप में इस्तेमाल करते हैं, जिससे पोखरे की सफाई होने के साथ जल का घनत्व भी बढ़ जाता है।