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संवादी गोरखपुर: हिंदी, सिंधी, भोजपुरी की त्रिवेणी से विचारों का महाकुंभ साकार

संवादी के दूसरे दिन हिंदी और राष्ट्रवाद पर मुख्यमंत्री योगी ने अपने विचार रखे। इसके बाद हाशिए पर सिंधी साहित्य पर चर्चा हुई। सिंधी के बाद भोजपुरी साहित्य का भी संगम हुआ। साहित्यकारों ने विविधता के महत्व पर बल दिया। सांसद मनोज तिवारी ने भोजपुरी के विकास और अधिकार पर बात की। सांसद रविकिशन शुक्ल ने भोजपुरी का सफर आस्कर तक दिखाया। संवादी ने रफी का शताब्दी वर्ष भी मनाया।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Sun, 27 Oct 2024 02:05 PM (IST)
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योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में आयोजित जागरण संवादी कार्यक्रम में उपस्थित लोग। जागरण
 आशुतोष मिश्र, जागरण गोरखपुर। जिस चुंबकीय वाणी का आकर्षण देशभर के बहुसंख्यक हिंदीभाषियों में है, वह संवादी के मंच से मुखरित हुई तो योगिराज बाबा गंभीरनाथ प्रेक्षागृह का सभागार सम्मोहित भाव से सुनने में जुट गया। ‘हिंदी और राष्ट्रवाद’ पर मार्गदर्शक विचार रखते मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहजता से संवाद के कौशल, शब्द चयन और इसकी शक्ति से परिचित कराते हुए सबको उर्जित कर गए।

इस तरह संवादी के दूसरे दिन की भव्य शुरुआत हुई, जो ‘हाशिए पर सिंधी साहित्य’ की चर्चा से आगे बढ़ी। अपनी भाषा हिंदी की समृद्धि को समर्पित दैनिक जागरण के अभियान ‘हिंदी हैं हम’ के तहत इस आयोजन में सिंधी के बाद भोजपुरी का संगम हुआ तो साहित्य सरिता की त्रिवेणी के साथ विचारों का महाकुंभ साकार हो उठा।

विचारों के इस मेले में ‘हिंदी बेस्ट सेलर’ के हस्ताक्षर श्रोताओं के सम्मुख हुए, तो बात आई कि साहित्य सीमा में बांधने का विषय नहीं, इसमें सभी का समावेश जरूरी है। उपन्यासकार नवीन चौधरी, साहित्यकार भगवंत अनमोल और विनीता अस्थाना के विचार मंथन का सार रहा कि विविधता जितना अधिक होगी, पुस्तक उतनी ही पसंद की जाएगी।

जागरण संवादी के अंतिम सत्र के समापन पर उत्साहित श्रोता। जागरण


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राष्ट्रीय सिंधी विकास परिषद के निदेशक प्रो.रविप्रकाश टेकचंदाणी और उत्तर प्रदेश सिंधी अकादमी के निदेशक अभिषेक कुमार ‘अखिल’ के बीच ‘हाशिए पर सिंधी साहित्य’ पर चर्चा में विभाजन की पीड़ा सहेजे सिंधी बोली का सुखद पक्ष भी उभरा। ‘संविधान और जाति व्यवस्था’ पर मंथन में विद्वानों ने माना कि जातियों का बंधन तोड़ने के लिए समता मूलक व समावेशी समाज जरूरी है।

इस सत्र के बाद गंभीर मंथन सांसद मनोज तिवारी के आगमन के साथ चुटीलेपन का पुट पा गया। फहरात रहे भोजपुरी का भाव दीर्घा में उपस्थित श्रोताओं के मन पर छा गया। रिंकिया के पापा..., हटत नइखे भसुरा... जैसे अपने गीत गुनगुनाकर मनोज तिवारी श्रोताओं को गुदगुदाने-हंसाने के साथ भोजपुरी के विकास और उसके अधिकार को लेकर गंभीर बातें कर गए।

जागरण संवादी के अंतिम सत्र के समापन पर उत्साहित श्रोता। जागरण


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सांसद रविकिशन शुक्ल के हवाले से ‘भोजपुरी का सफर आस्कर तक’ देखकर सभागार में उपस्थित हर व्यक्ति अपनी बोली के प्रति गर्व से भर गया। संवादी ने ‘रफी का शताब्दी वर्ष’ भी मनाया, जिसे पंकज कुमार ने उनके तरानों से सजाया। साहित्यकार यतीद्र मिश्र ने किशोर और नौशाद संग उनके संबंधों के रोचक किस्से सुनाए, तो वहीं युनुस खान हृदय को छूने वाली आवाज के साथ रफी के संघर्षों की जानकारी देकर श्रोताओं को भावुक कर देते हैं। साहित्य, कला और समाज के विविध रंगों से सजा संवादी का मंच अब विश्राम पाता है, लेकिन अगले वर्ष फिर ऐसे ही सुखद अनुभूति का माध्यम बनने का भरोसा दे जाता है।

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