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तस्‍वीरों में देखें, गोरखपुर-बस्ती मंडल के छह सबसे प्राचीन शिव मंदिर, यहां सावन पर उमड़ता है आस्‍था का सैलाब, जुड़ी हैं कई धार्मिक मान्‍यताएं

Sawan 2020 भगवान शिव का महीना माना जाने वाला सावन 14 जुलाई से शुरू हो रहा है। शिव पूजा के लिए इस माह के प्रत्येक दिन का बड़ा महत्व है लेकिन सोमवार का विशेष महत्व है क्योंकि सोमवार को भगवान शिव का दिन माना जाता है।

By Pragati ChandEdited By: Updated: Tue, 12 Jul 2022 05:44 PM (IST)
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गोरखपुर-बस्ती मंडल के प्राचीन शिव मंदिर। जागरण-
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। देवाधिदेव महादेव भगवान शिव का गोरखपुर-बस्ती मंडल में व्यापक प्रभाव दिखाई पड़ता है। शायद ही कोई ऐसा गांव या शहर होगा जहां शिव मंदिर न हो। लगभग सभी गांवों में शिवलिंग की स्थापना की गई है और विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना होती है। गांवों व नगरों में बड़े पैमाने पर शिव मंदिरों की स्थापना का कारण जो भी रहा हो, लेकिन इससे एक बात स्पष्ट है कि इस क्षेत्र के लोगों की शिव में गहरी आस्था है। बस्ती और गोरखपुर मंडल में सभी जनपदों में अनेक स्वयंभू अर्थात जमीन फोड़कर निकले शिवलिंग हैं। जहां बाद में मंदिर बनाया गया। उनसे लोक आस्था जुड़ी हुई है। सावन में वहां शिवभक्तों की भीड़ उमड़ती है। आइए हम आपको गोरखपुर-बस्ती मंडल के प्रमुख शिव मंदिरों के बारे में बताते हैं।

सावन के सोमवार

  • 18 जुलाई
  • 25 जुलाई
  • 01 अगस्त
  • 08 अगस्त
बाबा दुग्धेश्वरनाथ मंदिर: देवरिया जनपद मुख्यालय से करीब 22 किमी दूर रुद्रपुर-गौरीबाजार मार्ग पर ऐतिहासिक सहनकोट के समीप बाबा दुग्धेश्वरनाथ का मंदिर सदियों से श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है। ईसा से लगभग 332 वर्ष पूर्व महाराजा दीर्घवाह के पुत्र ब्रजभान जिन्हे वशिष्ठसेन कहा गया, अपने कुछ सैनिकों के साथ अयोध्या से पूर्व की ओर जा रहे थे। रास्ते में रुद्रपुर में डेरा डाल दिए। उस समय यह इलाका जंगलों से आच्छादित था। जानवरों के भय से राजा के सैनिक पहरा देते थे। एक दिन एक सैनिक ने देखा कि ब्रह्म बेला में एक गाय एक स्थान पर चुपचाप खड़ी हो गई, वहां उसके थन से दूध गिरने लगा। वहां पर ज्योति जल रही थी। यह बात सैनिक ने राजा को बताई। राजा ने स्थल की खोदाई कराई। वहां शिवलिंग दिखाई पड़ा। इसी स्थल पर बाबा दुग्धेश्वरनाथ का मंदिर है। मान्यता है कि शिवलिंग के स्पर्श मात्र से लोगों के पाप समाप्त हो जाते हैं। यहां पर सावन और अधिक मास के अलावा महाशिवरात्रि में मेला लगता है। मंदिर का उल्लेख एलेक्जेंडर ने गोरखपुर गजेटियर में और चीनी यात्री ह्वेनसांग अपने यात्रा वृत्तांत में किया है।

प्राचीन शिव मंदिर तामेश्वरनाथ धाम: संत कबीर नगर में पूर्वांचल का प्रसिद्ध तीर्थस्थल प्राचीन शिव मंदिर देवाधिदेव बाबा तामेश्वरनाथ धाम भक्तों की श्रद्धा का प्रमुख केंद्र है। द्वापर युग में पांडवों के अज्ञातवास के दौरान माता कुंती ने यहां शिव की आराधना कर राजपाट के लिए आशीर्वाद मांगा था। राजकुमार सिद्धार्थ यहां वल्कल वस्त्र त्याग कर मुंडन कराने के पश्चात तथागत बने थे। यहां स्वत: शिवलिंग प्रकट होने का प्रमाण मिलता है। इस स्थान को पूर्व में ताम्रगढ़ के नाम से जाना जाता था। यहां स्थापित शिवलिंग को दूसरे स्थान पर ले जाने का भी प्रयास हुआ लेकिन संभव नही हो सका। डेढ़ सौ वर्ष पूर्व तत्कालीन बांसी नरेश रतनसेन सिंह ने यहां मंदिर बनवाया। मुख्य मंदिर के साथ यहां पर छोटे-बड़े कुल 16 मंदिर हैं।

बाबा भद्रेश्वर नाथ मंदिर: पौराणिक मान्यता के अनुसार बस्ती में बाबा भद्रेश्वर नाथ मंदिर में शिवलिंग की स्थापना रावण ने की थी। अज्ञातवास के समय युधिष्ठिर ने यहां पूजा की थी। चर्चा यह भी है कि जब देश गोरों की गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था, तब ब्रिटिश सेना, मंदिर व उसके आसपास के क्षेत्रफल पर कब्जा करना चाहती थी। लेकिन दैवीय प्रकोप के चलते अंग्रेजों को पीछे हटना पड़ा। यह कहानी बस्ती के अधिकांश शिवभक्तों से सुनी जा सकती है। जनपद मुख्यालय से सात किलोमीटर दूर कुआनों नदी के तट पर बाबा भद्रेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर स्थित है। यहां पूरे साल शिवभक्तों के जल चढ़ाने का क्रम चलता रहता है, लेकिन सोमवार और सावन के महीने में यहां लाखों की संख्या में दूर-दूर से शिवभक्त आते हैं। यहां सच्ची श्रद्धा से मांगी गई हर मुराद पूरी होती है। इस मंदिर से कई रोचक तथ्य जुड़े हैं। कहा जाता है कि मंदिर में एक ऐसा शिवलिंग है जिसे कोई भी भक्त अपनी दोनों बांहों से घेर कर नहीं पकड़ सकता।

महादेव झारखंडी मंदिर: झारखंडी महादेव मंदिर की कहानी भी बड़ी रोचक है। यहां जंगल हुआ करता था। जमींदार गब्बू दास को रात में भगवान भोलेनाथ का सपना आया। भगवान शिव ने बताया कि तुम्हारी जमीन में अमुक स्थान पर शिवलिंग है। उसकी खोदाई करवाकर वहां मंदिर का निर्माण कराओ। इसके बाद जमींदार और स्थानीय लोगों ने वहां पहुंचकर खोदाई कराई तो शिवलिंग निकला। तभी से वहां अनवतर पूजा-अर्चना हो रही है। मान्यता है कि यहां जलाभिषेक करने से सभी तरह के कष्ट दूर हो जाते हैं। शहर के प्राचीन मंदिरों में एक महादेव झारखंडी मंदिर भी है। शिवरात्रि पर यहां बड़ा मेला लगता है।

मुक्तेश्वरनाथ मंदिर: गोरखपुर शहर में राप्ती नदी के तट पर स्थित मुक्तेश्वरनाथ मंदिर शिव भक्तों की आस्था का केंद्र है। मंदिर का इतिहास लगभग चार सौ साल पुराना है। इस मंदिर का मुक्तेश्वर नाम, बगल में मुक्तिधाम होने के कारण पड़ा। सावन व शिवरात्रि में यहां शिव भक्तों की भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि चार सौ वर्ष पूर्व बांसी के राजा यहां शिकार करने आए और जंगल में शेरों ने उन्हें घेर लिया। जान संकट में फंसी देखकर राजा ने अपने इष्टदेव भगवान शिवशंकर को याद किया तो शेर वापस लौट गए। इसी स्थान पर राजा ने भगवान का मंदिर बनवाने का संकल्प लिया। उनके आदेश पर महाराष्ट्र निवासी बाबा काशीनाथ ने यहां मंदिर की स्थापना कराई।

मानसरोवर मंदिर: मानसरोवर मंदिर का इतिहास काफी पुराना है। कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राजा मानसिंह ने कराया था। मानसिंह के स्वप्न में आकर भगवान भोलेनाथ ने जंगल के बीच मंदिर निर्माण का निर्देश दिया था। राजा ने इस स्थान पर मंदिर के साथ ही पोखरे का भी निर्माण कराया। गोरक्षपीठ से इस मंदिर का गहरा जुड़ाव है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया है। अब मंदिर काफी आकर्षक बन गया है। विजयादशमी के दिन गोरक्षपीठाधीश्वर का विजय जुलूस निकलता है। गोरक्षपीठाधीश्वर प्रतिवर्ष इस दिन मानसरोवर रामलीला मैदान में भगवान राम का तिलक करते हैं। इसके पूर्व वह मानसरोवर मंदिर में भगवान शिव की पूजा करते हैं।

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