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श्रीराम मंदिर के लिए नेपाली नौकर बन गए शिवजी सिंह, कारसेवकों को छिपाया; पहचान छिपाकर मंदिर आंदोलन को नेपथ्य से दी धार

Shri Ram mandir राम मंदिर के लिए शिवजी सिंह नेपाली नौकर बन गए थे। उन्होंने मंदिर आंदोलन को नेपथ्य से धार दी। कारसेवकों को आश्रय दिया और तरह-तरह के प्रयासों से मंजिल तक पहुंचने में उनकी मदद की। शिवजी बताते हैं कि मंदिर आंदोलन के दौरान हरियाणा पंजाब झारखंड बिहार से आए हजारों कारसेवकों की सेवा का अवसर भी उन्हें मिला।

By Rakesh Rai Edited By: Aysha SheikhUpdated: Mon, 08 Jan 2024 12:29 PM (IST)
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श्रीराम मंदिर के लिए नेपाली नौकर बन गए शिवजी सिंह
जागरण संवाददाता, गोरखपुर। वर्षों तक चले श्रीराममंदिर आंदोलन में पूर्वांचल के हजारों कारसेवकों ने अगर सीधे मोर्चा लिया, लाठियां खाईं और जेल गए तो ऐसे लोगों की भी बड़ी संख्या रही, जिन्होंने इस आंदोलन को नेपथ्य से धार दी। कारसेवकों को आश्रय दिया और तरह-तरह के प्रयासों से मंजिल तक पहुंचने में उनकी मदद की।

ऐसे लोगों की सूची में जो अगली पंक्ति के नाम हैं, उनमें शिवजी सिंह पूरी मजबूती से खड़े दिखते हैं। सरस्वती विद्या मंदिर के संस्थान प्रमुख शिवजी सिंह मंदिर आंदोलन के दौरान कारसेवकों को पुलिस की नजर से बचने की जगह देते रहे। उनके खाने-पीने का इंतजाम करते रहे और अयोध्या तक पहुंचने में मदद करते रहे।

इसके लिए उन्होंने कई बार अपनी पहचान छिपाई। नेपाली नौकर तक बन गए। श्रीराममंदिर में श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर उत्साहित शिवजी सिंह उसके लिए अपने संघर्ष को याद कर रोमांचित हो उठते हैं और कई संस्मरण सुनाते हैं।

जब मंदिर आंदोलन चरम पर था...

बताते हैं कि 1990 से 1992 के बीच जब मंदिर आंदोलन चरम पर था तब सरस्वती विद्या मंदिर गोरखपुर ही नहीं बल्कि समूचे पूर्वांचल के कारसेवकों के छिपने का महत्वपूर्ण ठिकाना हुआ करता था। जो कारसेवक वहां आते थे, उनके रहने-खाने के इंतजाम की जिम्मेदारी उनपर ही थी।

पुलिस-प्रशासन के अधिकारी उन्हें कारसेवक के तौर पर जानते थे, इसलिए खुद को छिपाते हुए कारसेवकों की मदद उनके लिए चुनौती थी। ऐसे में उन्हें नेपाली नौकर बनना पड़ता। अंडरवीयर-बनियान और नेपाली टोपी पहनकर परिसर में ऐसे घूमना पड़ता जैसे कोई परिचारक। चूंकि वह नेपाली भाषा जानते थे, इसलिए कभी किसी को उनके बदले स्वरूप पर शक नहीं होता।

नींव के गड्ढे में कूदे पर खरोंच तक नहीं आई

1992 के आंदोलन का एक संस्मरण सुनाने के क्रम में शिवजी बताते हैं कि एक बार सवा सौ की संख्या में झारखंड से आए तीर-कमान वाले आदिवासी कारसेवक उनके यहां छिपे हुए थे और देर रात पुलिस का छापा पड़ गया। ऐसे में उन्हें नींव के लिए तैयार उस गड्ढे में कूदना पड़ा, जिसमें से छड़ें निकली हुई थीं। बावजूद इसके उन्हें खरोंच तक नहीं आई। शिवजी के मुताबिक भगवान के लिए संघर्ष था सो उन्होंने ही बचा लिया।

कारसेवकों के लिए हमेशा रखते थे गुड़, चूड़ा, चना, अचार

शिवजी बताते हैं कि मंदिर आंदोलन के दौरान हरियाणा, पंजाब, झारखंड, बिहार से आए हजारों कारसेवकों की सेवा का अवसर भी उन्हें मिला। कारसेवकों के भोजन के तौर पर वह विद्यालय में उन दिनों गुड़, चूड़ा, चना, अचार, हरी मिर्च जैसे खानपान का सामान हमेशा पर्याप्त मात्रा में रखते थे।

आंदोलन की रणनीति बनाने के लिए छिपकर आए अशोक सिंघल और विनय कटियार जैसे नेताओं की सेवा का अवसर भी उन्हें कई बार मिला। श्रीरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा को लेकर हो रहे भव्य आयोजन की चर्चा पर शिवजी भावुक होकर बोले- हमारी तपस्या आखिरकार सफल हुई।

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