Pandit Ram Prasad Bismil: मौत के 93 साल बाद स्मृतियों को जेल से मिली रिहाई, फांसी से पहले यहां बिताए थे चार माह
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को जहां फांसी दी गई थी जिस चौकी पर वह विश्राम करते थे साधना केंद्र उनकी स्मृतियों से जुड़ीं सभी वस्तुओं का पर्यटन विभाग जीर्णोद्धार कर चुका है। आगंतुकों यहां आने के लिए अब किसी के अनुमति की जरूरत नहीं है।
By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Fri, 11 Jun 2021 07:30 AM (IST)
गोरखपुर, जेएनएन। काकोरी कांड के नायक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की शुक्रवार को 124वीं जयंती है। वह उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर के निवासी थे। उनकी स्मृतियों से जुड़ी वस्तुओं को उनके मौत के 93 साल बाद जेल से रिहाई मिल चुकी है। पंडित जी को जहां फांसी दी गई थी, जिस चौकी पर वह विश्राम करते थे, साधना केंद्र, उनकी स्मृतियों से जुड़ीं सभी वस्तुओं का पर्यटन विभाग जीर्णोद्धार कर चुका है। आगंतुकों यहां आने के लिए अब किसी के अनुमति की जरूरत नहीं है। वह यहां आसानी से आकर एक-एक वस्तुओं, फांसी घर, उनकी बैरक आदि को देख कर आभास कर सकते हैं कि पंडित जी ने यहां चार माह का वक्त यहां कैसा बीता होगा।
बिस्मिल पार्क व हाल भी पर्यटकों को देता सुकून का आभास इसके लिए जेल के बाहर से एक रास्ता बनाकर उसे खोल दिया गया है। फांसी घर, बिस्मिल बैरक आदि को ऊंची बाउंड्री के जरिये जेल से अलग कर दिया गया है। ताकि वहां आगंतुकों के आने जाने पर कोई पाबंदी न रहे। यहां फांसीघर, लकड़ी के फ्रेम, लीवर को आज भी उसी प्रकार सुरक्षित रखा गया है, जिस तरह यह आज के 93 वर्ष पूर्व दिखता था। पर्यटन विभाग ने इसका जीर्णोद्धार किया है, ताकि लोग आने वाले वर्षों में भी इस ऐतिहासिक विरासत को देख सकें। जीर्णोद्धार करते समय उसके मूल स्वरूप से कोई छेड़छाड़ नहीं किया गया है, हां फर्श पर ग्रेनाइट आदि लगाकर उसे भव्यता जरूर प्रदान की गई है। बैरक का खपरैल आदि को भी सुरक्षित किया गया है। आंगन ठीक कराया गया है।
पर्यटन विभाग ने इसके बिस्मिल बैरक के बाहर जेल से सटे बिस्मिल पार्क स्थापित किया है। यात्री हाल बनवाया गया है। इसमें फर्श पर मार्बल लगाए गए हैं। शौचालय ठीक कराया गया है। इसे जेल परिसर से बाहर करने का उद्देश्य यह है कि लोग आसानी से इस स्थली का दर्शन कर सकें।पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर दिखेगी बिस्मिल की जेल
पर्यटन विभाग जल्द ही बिस्मिल जेल को जल्द ही विभाग की वेबसाइट से जोड़ने की तैयारी कर रहा है। क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी रविंद्र कुमार मिश्र का कहना है कि जल्द ही मुख्यालय से इसके लिए कोई फोटोग्राफर हायर किया जाएगा। वह फांसी घर समेत प्रत्येक चीजों को शूट करेंगे। उसके बाद उसे वेबसाइट से जोड़ने का कार्य किया जाएगा।
कमरा नंबर सात में रहते थे पंडित बिस्मिल जंग-ए-आजादी की सबसे अहम घटनाओं में काकोरी कांड शामिल है। 9 अगस्त 1925 को पंडित राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्लाकुल्ला खां, राजेंद्र लाहिड़ी सहित आजादी के दीवानों ने शाहजहांपुर से लखनऊ जा रही ट्रेन को लूटकर ब्रिटिश सरकार के खजाने में सेंध लगाई थी। बाद में अंग्रेजों ने पंडित राम प्रसाद बिस्मिल को पकड़कर लखनऊ की जेल में बंद कर दिया था। 10 अगस्त 1927 को उन्हें गोरखपुर की जेल में लाया गया।
यहां उन्हें कोठरी संख्या सात में रखा गया था। उस समय इसे तन्हाई बैरक कहा जाता था। गोरखपुर में आने के बाद बिस्मिल ने कमरे को साधना केंद्र के रूप में प्रयोग किया था। इस कोठरी को अब बिस्मिल कक्ष और शहीद पंडित राम प्रसाद बिस्मिल बैरक के नाम से संरक्षित किया गया है।पंडित बिस्मिल के नाम से किया जाए राजघाट पुल गुरुकृपा संस्थान के संस्थापक ब्रजेश त्रिपाठी पिछले दो दशक पंडित राम प्रसाद बिस्मिल की जयंती व पुण्यतिथि को लेकर कार्यक्रम कर रहे हैं। वह पंडित बिस्मिल के स्मृति में प्रतिवर्ष एक मेले का भी आयोजन करते हैं। उन्होंने कहा कि पंडित बिस्मिल का अंतिम संस्कार राजघाट में हुआ था, लेकिन वहां अभी तक उनके नाम से कुछ भी नहीं है। ऐसे में यदि राजघाट को उनके नाम से कर दिया जाए और राजघाट में उनकी एक आदमकद प्रतिमा स्थापित करा दी जाए तो यह पंडित बिस्मिल के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
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