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गुरु पूर्णिमा पर विशेष: नाथ पंथ के मूल में योग और योग के मूल में गुरु शिष्य परंपरा

गुरु पूर्णिमा के दिन गोरखनाथ मंदिर में गुरु पूजन का सिलसिला तड़के से ही शुरू हो जाता है। गोरक्षपीठाधीश्वर सुबह सबसे पहले गुरु गोरक्षनाथ की पूरे विधि विधान से पूजा करते हैं फिर सभी नाथ योगियों के समाधि स्थल और देवी देवताओं के मंदिर में विशेष पूजा होती है। गुरु की पूजा के बाद पीठाधीश्वर अपने शिष्यों के बीच होते हैं और उन्हें आशीर्वचन देते हैं।

By Rakesh Rai Edited By: Vivek Shukla Updated: Sun, 21 Jul 2024 09:01 AM (IST)
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अपने गुरु महंत अवेद्यनाथ के साथ वर्तमान गोरक्षपीठाधीश्वर व मुख्यमंत्री योगी 
आदित्यनाथ की फाइल फोटो l सौ. गोरखनाथ मंदिर
डॉ. राकेश राय, जागरण, गोरखपुर। गुरु-शिष्य परंपरा नाथ पंथ के मूल में है। इस परंपरा से ही नाथ परंपरा आगे बढ़ी है। गुरु-शिष्य परंपरा और नाथ पीठ के रिश्ते के गहरे होने की पुष्टि गोरखनाथ मंदिर मेंं हर वर्ष गुरु पूर्णिमा पर्व को मिलने वाले महत्व से भी होती नजर आती है।

यह पर्व मंदिर में उत्सव की तरह मनाया जाता है। इस अवसर पर सभी को गुरु का महत्व बताया जाता है। सभी नाथ योगियों ने इस परंपरा को पूरी श्रद्धा और समर्पण के साथ कायम रखा है। मुख्यमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद की तमाम व्यस्तताओं के बावजूद योगी आदित्यनाथ हर गुरु पूर्णिमा पर अपने गुरु का आशीर्वाद लेने और शिष्यों को आशीर्वाद देने के लिए गोरखनाथ मंदिर जरूर पहुंचते हैं। इस बार भी पहुंच चुके हैं।

नाथ योगियों की गुरुपर्व को लेकर प्रतिबद्धता पर मंदिर प्रबंधन से जुड़े डा. प्रदीप कुमार राव से बातचीत की गई तो उन्होंने इस परंपरा के पीछे योग की भूमिका बताई। उन्होंने बताया कि नाथ पंथ की परंपरा के मूल में योग है और योग के मूल में गुरु-शिष्य परंपरा।

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चूंकि योग पूरी तौर पर व्यावहारिक क्रियाओं पर आधारित है और बिना गुरु के इसे साधना मुश्किल ही नहीं असंभव है, ऐसे में योग और गुरु परंपरा को एक दूसरे का पूरक कहना गलत नहीं होगा। इससे नाथपंथ और गुरु पूर्णिमा के रिश्ते का स्वरूप भी साफ हो जाता है।

योग की परंपरा को अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करने के लिए ही नाथ पंथ की स्थापना के समय से ही गुरु-शिष्य परंपरा उससे अनिवार्य रूप से जुड़ी रही। गुरु शिष्य परंपरा से ही नाथ पंथ की परंपरा भी अनवरत आगे बढ़ रही है।

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नाथ पंथ में गुरु ही ईश्वर है

डा. प्रदीप राव बताते हैं कि नाथपंथ में गुरु और ईश्वर में कोई फर्क नहीं माना जाता है। नाथ परंपरा में गुरु ही ईश्वर है और ईश्वर ही गुरु है। यही वजह है कि गोरखनाथ मंदिर के लिए गुरु पूर्णिमा पर्व का खास महत्व है। समय के साथ पर्व के आयोजन का स्वरूप भले ही बदलता रहा हो लेकिन महत्व हमेशा पारंपरिक ही रहा है।

कीर्तिमान रच रही पीठ की तीन पीढ़ी

लोक कल्याणकारी कार्यों के अनुगमन में गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ी गुरु परंपरा का कीर्तिमान रचती नजर आती है। ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने लोक कल्याण के लिए शिक्षा को सबसे सशक्त माध्यम के रूप में अपनाते हुए 1932 में महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद की स्थापना की।

उनके समय में ही चिकित्सा सुविधा के लिए मंदिर परिसर में एक आयुर्वेदिक चिकित्सा केंद्र की भी स्थापना हुई थी। अपने गुरु द्वारा शुरू किए गये इन प्रकल्पों को शिष्य ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ महाराज ने विस्तार दिया। अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने गुरु की इस परंपरा को पूरी प्रतिबद्धता से आगे बढ़ा रहे हैं।

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