Chaurichaura Kand: शहीदों की चिताओं पर सौवें बरस मेला
असहयोग आंदोलन के दौरान हर शनिवार को विदेशी वस्त्रों और सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने के लिए वहां प्रदर्शन होता था। चौरी चौरा में चार फरवरी 1922 (दिन शनिवार) को बहिष्कार के दौरान पुलिस ने फायरिंग कर दी थी।
By Satish chand shuklaEdited By: Updated: Tue, 26 Jan 2021 02:40 PM (IST)
बृजेश दुबे ’ गोरखपुर।
‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेलेवतन पर मरने वालों का बाकी यही निशां होगा’
देश के स्वतंत्रता यज्ञ में जीवन होम करने वाले क्रांतिकारियों ने इन पंक्तियों को गुनगुनाते हुए मातृभूमि की बलिवेदी पर अपना शीश चढ़ा दिया। भाव था कि देश आजाद होगा और आशा थी कि पीढ़ियां याद रखेंगी। उनकी याद में हर बरस मेले लगेंगे। देश आजाद हुआ, लोग खुली हवा में सांस ले रहे हैं, लेकिन शहीदों की चिताओं पर बरस-दर-बरस मेला नहीं लग सका। यह दर्द है चौरी चौरा कांड के लिए फांसी और काले पानी की सजा पाने वाले क्रांतिकारियों की याद में बने चौरी चौरा स्मारक का। यह दर्द चार फरवरी को दूर होगा, जब घटना के 100वें वर्ष यहां पहली बार मेला जुटेगा और योगी सरकार शहीद व सेनानियों के स्वजन को सम्मानित करेगी। अभी तक किसी भी सरकार ने चौरी चौरा कांड के शहीदों के स्वजन को सम्मानित नहीं किया है। चौरी चौरा कांड, भारतीय इतिहास के पन्ने पर दर्ज वह घटना है, जिसने अंग्रेजों को यह अहसास करा दिया था कि दमन होने पर आंदोलन ¨हसक हो सकता है। इस घटना के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया। घटना तो इतिहास बन गई, लेकिन चौरी चौरा उपेक्षित हो गया।
अंग्रेजी हुकूमत को जवाब था चौरी चौरा कांड
असहयोग आंदोलन के दौरान हर शनिवार को विदेशी वस्त्रों और सरकारी कार्यालयों का बहिष्कार करने के लिए वहां प्रदर्शन होता था। चौरी चौरा में चार फरवरी, 1922 (दिन शनिवार) को बहिष्कार के दौरान पुलिस ने फायरिंग कर दी थी। इसमें तीन सत्याग्रही शहीद हो गए। कई घायल हो गए। गुस्साई भीड़ ने चौरी चौरा थाना फूंक दिया। थाने में मौजूद सभी 23 पुलिसकर्मी जलकर मर गए। फिर अंग्रेजी हुकूमत का यातना चक्र चला। 228 क्रांतिकारियों पर मुकदमा चलाया गया। साजिश के तहत मुकदमा चलाकर 172 सत्याग्रहियों को फांसी की सजा सुनाई गई। तब महामना प. मदन मोहन मालवीय ने करीब 16 महीने तक मुकदमा लड़ा और 153 सत्याग्रहियों को फांसी की सजा से बचा लिया।
उपेक्षित रहे शहीदों के स्वजनचौरी चौरा शहीद स्थल स्मारक समिति के संयोजक एडवोकेट रामनारायण त्रिपाठी बताते हैं कि 1970 में शुरू दौड़भाग 1982 में सफल हुई। छह फरवरी, 1982 को तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने स्मारक स्थल का शिलान्यास किया, लेकिन लोकार्पण 19 जुलाई, 1993 को हो पाया।निखरने लगा है चौरी चौराचार फरवरी के होने वाले कार्यक्रम के लिए चौरीचौरा की धरती चमकने लगी है। तेजी से हो रहे काम भी स्मारक को निखार रहे हैं। बिजली के तार भूमिगत किए जा रहे हैं। चौरी चौरा रेलवे स्टेशन से स्मारक स्थल के बीच बदबूदार पानी व जलकुंभी से पटा इलाका पीली मिट्टी पड़ने से सोने जैसा चमक रहा है। गोरखपुर रेलवे स्टेशन से चौरी चौरा रेलवे स्टेशन करीब 25 किमी है।
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