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Firaq Gorakhpuri Birthday Special: गोरखपुर में फिराक की निशानी की न कद्र, न किसी को फिक्र

फिराक के अपने गांव में ही उनकी निशानी मिट रही है। न तो सरकार ध्‍यान दे रही है और न ही कोई जन प्रतिनिधि इसके लिए चिंतित है।

By Satish ShuklaEdited By: Updated: Fri, 28 Aug 2020 07:07 PM (IST)
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Firaq Gorakhpuri Birthday Special: गोरखपुर में फिराक की निशानी की न कद्र, न किसी को फिक्र
गोरखपुर, जेएनएन। फिराक ने अपने तखल्लुस के आगे गोरखपुरी लगाकर भले ही उर्दू अदब की दुनिया में गोरखपुर को मशहूर कर दिया हो, लेकिन यहां उनकी निशानी की न कोई कद्र है और न फिक्र। फिराक की शख्सियत के प्रति उदासीनता की बानगी उनके पैतृक गांव बनवारपार में देखी जा सकती है। उनका पुश्तैनी मकान जर्जर होकर धराशायी हो रहा है। कुल मिलाकर फिराक के अपने गांव में ही उनकी निशानी मिट रही है फिराक गोरखपुरी का जन्‍म 28 अगस्‍त 1896 में गोरखपुर में ही हुआ था। इनका पूरा नाम रघुपति सहाय फिराक था।

सरकार की ओर से बनवारपार में उनकी स्मृतियों को सहेजने की घोषणाएं तो कई बार हुईं, लेकिन उस पर अमल एक बार भी नहीं किया गया। बनवारपार में फिराक की स्मृति सहेजने के नाम पर प्रदेश शासन की पहल पर पर्यटन विभाग ने उनकी प्रतिमा जरूर स्थापित कराई है, लेकिन जयंती और पुण्यतिथि पर भी यहां सरकार, शासन और प्रशासन का कोई प्रतिनिधि कभी नहीं आता। गांव को पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करने को लेकर पहल साल भर पहले शुरू जरूर हुई, लेकिन वह क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी के निरीक्षण और प्रस्ताव बनाने तक ही सिमटकर रह गई। बनवारपार में प्रस्तावित कम्युनिटी हाल का निर्माण लंबे समय से अधर में है। उदासीनता का यही आलम रहा तो वह दिन दूर नहीं जब अपने ही गांव से फिराक का नामोनिशान मिट जाएगा।

स्मृतियों को सहेजने का प्रयास कर रहे ग्रामीण

फिराक की स्मृतियों के प्रति उनके गांव के कुछ लोगों की संजीदगी उम्मीद की किरण है। ग्रामीणों ने फिराक सेवा संस्थान बना रखा है। संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. छोटे लाल यादव के प्रयास से गांव में विधायक निधि से एक स्मृति गेट बनाया गया है। संस्थान के लोगों ने गांव में ही एक लाइब्रेरी स्थापित की है, जिसमें फिराक के साथ-साथ कई अन्य साहित्यकारों की कृतियां मौजूद हैं।

मिट रहा प्रेमचंद-फिराक लाइब्रेरी का अस्तित्व

तुर्कमानपुर में मौजूद राउत पाठशाला साहित्य की वह तीर्थस्थली है, जहां प्रेमचंद और फिराक गोरखपुरी दोनों ने शुरुआती अध्ययन किया है। यहां उनकी यादों को ताजा रखने के लिए 90 के दशक में स्कूल की लाइब्रेरी को प्रेमचंद और फिराक गोरखपुरी का नाम दे दिया गया, लेकिन आज इस लाइब्रेरी के अस्तित्व पर संकट है।

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