पूर्वांचल में रूठों को मनाने, खिसके वोटों को वापस लाने की रणनीति; जनाधार मजबूत करने की भाजपा ने की ये तैयारी
पूर्वांचल में दलित और पिछड़ा वोट बैंक में विपक्ष की भारी सेंधमारी से चौकन्ना हुई भाजपा इसे सहेजने में जुट गई। महराजगंज से सातवीं बार सांसद बने कुर्मी नेता पंकज चौधरी और बांसगांव से लगातार चौथी बार लोकसभा पहुंचे कमलेश पासवान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देकर पार्टी ने पिछड़ा और दलित बिरादरी में अपनी पैठ मजबूत करने का संकेत दिया है।
रजनीश त्रिपाठी, गोरखपुर। पूर्वांचल में दलित और पिछड़ा वोट बैंक में विपक्ष की भारी सेंधमारी से चौकन्ना हुई भाजपा इसे सहेजने में जुट गई। महराजगंज से सातवीं बार सांसद बने कुर्मी नेता पंकज चौधरी और बांसगांव से लगातार चौथी बार लोकसभा पहुंचे कमलेश पासवान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह देकर पार्टी ने पिछड़ा और दलित बिरादरी में अपनी पैठ मजबूत करने का संकेत दिया है।
केंद्रीय नेतृत्व का यह कदम रूठों को मनाने और खिसके दलित-पिछड़े वोटों को पार्टी में वापस लाने की रणनीति से जोड़कर देखा जा रहा है। गोरखपुर विश्वविद्यालय के राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक आचार्य और राजनीतिक विश्लेषक महेंद्र सिंह कहते हैं कि लोकसभा चुनाव के दौरान अवध और काशी क्षेत्र में हुए सीटों के भारी नुकसान के मुकाबले गोरक्षप्रांत में विपक्ष की आंधी कमजोर रही।
गोरखपुर मंडल की छह में से पांच सीटें जीतकर भाजपा ने सिद्ध किया कि देश और प्रदेश की सियासत में हवा चाहे किसी की भी हो, लेकिन गोरखपुर के आसपास गोरक्षपीठ का ही प्रभाव रहेगा।
गोरखपुर मंडल के दो सांसदों को मंत्रालय में जगह मिलना उस प्रभाव का पुरस्कार माना जा रहा है। महेंद्र सिंह का मानना है कि पंकज चौधरी और कमलेश पासवान को मंत्री बनाने के पीछे उन जातियों का प्रतिनिधित्व बढ़ाना है, जिन्हें आगे लाने की जरूरत है।
राजनीतिक समीकरण के लिहाज से देखें तो अन्य पिछड़ा और पासी वोटों के ध्रुवीकरण से ही बसपा सरकार में आई थी। इसके बाद जब यह वोट बैंक भाजपा में आया तो भाजपा सत्ता में आ गई। 2024 के लोकसभा चुनाव में इन बिरादरियों का वोट सपा-कांग्रेस में शिफ्ट हुआ है, ऐसा माना जा सकता है कि इसे सहेजने के लिए पार्टी ने यह कदम उठाया है।
गोरखपुर के दो सांसदों को मंत्रिमंडल में शामिल करने के निर्णय को ढाई साल बाद 2027 में होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की तैयारी से भी जोड़कर देखा जा रहा है। लोकसभा चुनाव के दौरान जिस तरह पिछड़ा, अति पिछड़ा और दलित वोट भाजपा से खिसककर इंडी गठबंधन में शामिल सपा और कांग्रेस प्रत्याशियों को मिले, उसे वापस लाने की चुनौती दोनों मंत्रियों के कंधे पर होगी।
लोकसभा चुनाव के विधानसभा और बूथवार नतीजों की समीक्षा पर नजर डालें तो गोरखपुर-बस्ती मंडल की नौ सीटों पर 10 साल से अजेय भाजपा इस बार बस्ती, संतकबीरनगर और सलेमपुर सीट नहीं बचा सकी।सपा ने इन तीनों सीटों पर पिछड़ा वर्ग के प्रत्याशी उतारे और भाजपा से सीट छीन ली। भाजपा ने भी दो सीटों पर पिछड़ा प्रत्याशी उतारे थे, लेकिन संगठन से तालमेल न बैठा पाने की वजह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
गोरखपुर, देवरिया, कुशीनगर, महराजगंज और बांसगांव (सु.) सीट पर भाजपा ने जीत भले हासिल कर ली, लेकिन बड़े पैमाने पर पिछड़ा और दलित वोटों के सपा, कांग्रेस में शिफ्ट होने से भाजपा प्रत्याशियों को संघर्ष करना पड़ा। जिस महराजगंज सीट पर पिछले चुनाव में भाजपा की जीत का अंतर साढ़े तीन लाख वोटों का था, पिछड़ा वोटों में सेंध के चलते वह इस बार घटकर 36 हजार पर आ गया।यही स्थिति बांसगांव और देवरिया में भी रही। अन्य पिछड़ा और दलित वोटों के कांग्रेस में जाने के चलते डेढ़ लाख और ढाई लाख वोटों से जीतने वाली भाजपा का अंतर घटकर पांच हजार और 35 हजार पर आ गया।
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