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Subrata Roy: एक कुर्सी व मेज के साथ सुब्रत राय ने रखी थी सहारा इंडिया की नींव, सपने बेचने में महारथी की यादगार कहानी

Subrata Roy बिहार के अररिया में जन्मे सुब्रत राय कोलकाता में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद परिवार के साथ गोरखपुर आ गए थे। राजकीय पालीटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। सुब्रत का परिवार गोरखपुर के तुर्कमानपुर में गांधी आश्रम के पास किराए के मकान में रहता था। पिता के गोरखपुर से लौटने के बाद भी सुब्रत ने शहर नहीं छोड़ा और बेतियाहाता में किराए पर कमरा लेकर रहने लगे।

By Jagran NewsEdited By: Narender SanwariyaUpdated: Wed, 15 Nov 2023 02:22 AM (IST)
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Subrata Roy: एक कुर्सी व मेज के साथ सुब्रत राय ने रखी थी सहारा इंडिया की नींव

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। सपने बेचने में महारथी या यूं कहें सपनों के सौदागार सुब्रत राय रिश्ते निभाने में भी करिश्माई थे। गोरखपुर के राजकीय पालिटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा करने के दौरान ही खास अंदाज के चलते युवाओं में वह खासे लोकप्रिय हो गए थे। महज 2000 रुपये एक कुर्सी व मेज के साथ सहारा इंडिया की नींव रखने वाले सहाराश्री सुब्रत राय फर्श से अर्श पर पहुंचने के बाद भी पुराने साथियों को नहीं भूले।

बिहार के अररिया में जन्मे सुब्रत राय कोलकाता में शुरुआती पढ़ाई करने के बाद परिवार के साथ गोरखपुर आ गए थे। राजकीय पालीटेक्निक से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा किया। सुब्रत का परिवार गोरखपुर के तुर्कमानपुर में गांधी आश्रम के पास किराए के मकान में रहता था।

पिता के गोरखपुर से लौटने के बाद भी सुब्रत ने शहर नहीं छोड़ा और बेतियाहाता में किराए पर कमरा लेकर रहने लगे। पढ़ाई के दौरान ही एचडी मोटरसाइकिल से चलने वाले सुब्रत उस दौर में भी युवाओं की अगुवाई करते थे।

बेतियाहाता में रहने के दौरान ही सुब्रत राय ने चिट फंड का कारोबार शुरू किया था। 100 में 20 रुपये जमा कराया कालेज और विश्वविद्यालय में छात्रों को पहले एक रुपये बचत की आदत डलवाई। यह स्कीम सफल हुई तो दिहाड़ी कमाने वाले लोगों में पैठ बनाई।

सपने बेचने के महारथी सुब्रत का अंदाज इतना जरदस्त था कि रोजाना 100 रुपये कमाने वालों को भी उन्होंने 20 रुपये बचत करने को प्रेरित किया। ऐसा करने वालों का उन्होंने खाता खुलवाया और रुपये जमा कराकर सहारा के लिए पूंजी तैयार की। इसके बाद उन्होंने सिनेमा रोड पर यूनाइटेड टाकीज के पास छोटी सी दुकान में कार्यालय खोला।

सहारा का वह कार्यालय आज भी पंजीकृत है। हर किसी से निभाई दोस्ती सुब्रत राय के सहपाठी रहे राजेन्द्र दुबे को रात में जैसे ही निधन की खबर मिली वह भावुक हो गए। बताया कि सुब्रत ने कभी भी सरकारी नौकरी की कोशिश नहीं की। वह कहा करते थे कि उन्हें इम्पलाई नहीं, इम्पलायर बनना है। शुरू में वह बाम्बे की एक फाइनेंस कंपनी के एजेंट बने। उसके बाद कुछ मित्रों के साथ सहारा इंडिया की नींव डाली। उन्होंने नौकरी देने के अपने सपने को साकार किया।