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National Sports Day: गोरखपुर की गली से निकले 'अली' ने टोक्यो में जीता था गोल्ड

National Sports Day गोरखपुर में हाकी की शुरुआत 1916 से हुई। काजी मोहम्मद उस्मान के निर्देशन में बच्‍चे इस्लामियां कालेज के मैदान में हाकी खेलने आया करते थे। 1945 में अब्दुल मुईद शांता राम और काजी उस्मान के प्रयास से गोरखपुर में पहली बार राष्ट्रीय हाकी चैंपियनशिप आयोजित हुई।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Updated: Sun, 29 Aug 2021 11:40 AM (IST)
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1964 में टोक्यो ओलंपिक में ह‍िस्‍सा लेने वाले सैयद अली सईद। - जागरण

गोरखपुर, जागरण संवाददाता। सैयद अली सईद वो नाम है जो सन 1964 के टोक्यो ओलंपिक में हाकी का ट‍िकट हासिल करने वाली गोल्डन टीम का हिस्सा रहे। पाकिस्तान को फाइनल में रौंदने में इस आउट साइड लेफ्ट खिलाड़ी का अहम योगदान रहा। इनके अलावा यहां के कई किरदारों ने सन 1980 और 2016 के ओलंपिक में स्टिक का मुजाहिरा किया।

यह अलग बात है कि उनकी किस्मत ने साथ नहीं दिया। यह कहना गलत नही होगा कि हाकी के हब गोरखपुर को अगर मजबूत सहारा मिल जाए तो भारत को सोने का टोटा नहीं पड़ेगा। आम तौर पर हाकी में पंजाब की जोरदार धमक रहती है, लेकिन गोरखपुर की सरजमी भी कलाई के जादूगरों से समृद्ध है। यहां की गलियों में अली जैसे खिलाडिय़ों की भरपूर फसल है। बस, उन्हें सुविधा-संसाधन की दरकार है।

हाकी में अंतरर्राष्ट्रीय फलक पर चमके गोरखपुर के कई खिलाड़ी

गोरखपुर में स्कूल स्तर पर हाकी की शुरुआत 1916 से हुई। काजी मोहम्मद उस्मान के निर्देशन में ब'चे इस्लामियां कालेज के मैदान में हाकी खेलने आया करते थे। 1945 में अब्दुल मुईद, शांता राम और काजी उस्मान के प्रयास से गोरखपुर में पहली बार राष्ट्रीय हाकी चैंपियनशिप आयोजित हुई। चैंपियनशिप में कई राज्यों सहित रेलवे और सेना की टीम ने हिस्सा लिया। पचास के दशक में गोरखपुर के खिलाडिय़ों ने राष्ट्रीय टीम में दस्तक देनी शुरू कर दी। पहले अनवार अहमद और फिर नसीरूल्लाह खां एवं अवध नरेश भारतीय टीम का हिस्सा बने। 1964 में सैयद अली सईद को टोकियो ओलंपिक के लिए चुना गया। टीम ने फाइनल में पाकिस्तान को शिकस्त देकर गोल्ड मेडल जीता तो गोरखपुर का नाम भी रोशन हुआ।

इसके बाद गोरखपुर के बहुत से हाकी खिलाड़ी अंतर्राष्ट्रीय फलक पर चमके। सैयद अली बताते हैं कि हाकी में भारतीय टीम का खेल पहले से बेहतर हुआ है, लेकिन खिलाड़ी शारीरिक रूप से पूरी तरह फीट नहीं दिखते। जब मैच अंतिम चरण में होता है तब खिलाड़ी थके नजर आते हैं, इस दौरान विपक्षी टीम हावी हो जाती है। यह समस्या दूर हो जाए तो भारतीय टीम को गोल्ड जीतने से कोई नहीं रोक सकता है।

इन खिलाडिय़ों ने नाम किया रोशन

महिला खिलाड़ी प्रेममाया, रंजना श्रीवास्तव, पुष्पा श्रीवास्तव ने अपने शानदार खेल से धूम मचाई। प्रेम माया को 1986 में अर्जुन अवार्ड मिला। इसके अलावा जिल्लुर्रहमान, सनवर अली, इम्तियाज अहमद, प्रदीप शर्मा, शम्सुज्जोहा, मोहम्मद आरिफ, प्रीति दुबे और दिवाकर राम ने अपनी प्रतिभा से शहर का नाम रोशन किया।

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