Move to Jagran APP

इस ताल में छुपा है मल्लाहों का खजाना, खाद्य पदार्थों से जुड़ा है रोजगार Gorakhpur News

सिद्धार्थनगर जिले के बांसी तहसील के पथरा बाजार स्थित विशाल तालाब में व्रत और उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किए जाने वाले सिंघाड़ा सेरकी बेर्रा कमल गट्टा व तिन्नी का चावल स्वत हर वर्ष उपज जाता है।

By Rahul SrivastavaEdited By: Updated: Sun, 27 Dec 2020 03:30 PM (IST)
Hero Image
विशालकाय ताल से सेरकी निकालकर ले जाती महिलाएं। जागरण
पतितपावन त्रिपाठी, गोरखपुर : सिद्धार्थनगर जिले के बांसी तहसील के पथरा बाजार स्थित विशाल तालाब में मल्लाहों का खजाना भी छुपा है। बघिनी नान कार, सेहरी बुजुर्ग ,बिशुन पुरवा, पथरा बाजार, फुलवापुर व नउआ आदि एक दर्जन गांव के गरीबों की आजीविका प्रकृति के उपहार स्वरूप इसमें अपने आप पैदा होने वाले खाद्य पदार्थों से चल रही है। हिमालय की गोद से निकली राप्ती नदी के दक्षिणी छोर पर स्थित इस ताल में व्रत और उपवास के समय फलाहार के रूप में प्रयोग किए जाने वाले सिंघाड़ा, सेरकी, बेर्रा, कमल गट्टा व तिन्नी का चावल स्वत: हर वर्ष उपज जाता है। पवित्र समझे जाने वाले इस आहार को नदी के तट पर सदियों से बसे मल्लाह जाति के महिला व पुरुष ही निकालते हैं। कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन भगवान श्री हरि की आराधना लोग इन्हीं फलाहार को ग्रहण करते हैं । इस दिन दाम भी आसमान छूने लगते हैं। गांव में जहां महिलाएं टोकरियों में भरकर, वहीं पुरुष वर्ग चौराहों पर इन फलाहार को बेचते नजर आते हैं।

एकादशी के दिन बिक जाता है सारा सामान

संजय निषाद ने बताया कि हमारा सारा सामान एकादशी के दिन बिक जाता है। सेरकी 90 से 100 रुपये किलो, बेर्रा 40 से 50 व सिंघाड़ा 30 से 40 रुपये किलोग्राम बिक जाता है । 500 से 1000 की दिहाड़ी बन जाती है।

तीन-चार महीने के रोजगार से निकल आता है पूरे साल का खर्च

सुनील निषाद ने कहा कि हम गरीब लोग हैं, हमारा अधिक खर्चा तो है नहीं। तीन चार महीने के रोजगार से हमारा पूरे साल का खर्च निकल आता है। बाकी काम बच्‍चे करते हैं।

व्रत में लोग करते हैं उपयोग

गोलू निषाद ने बताया कि ताल में पैदा होने वाला तिन्नी का चावल नवरात्र, एकादशी आदि उपवास के व्रतों में लोग उपयोग करते हैं । अब तो इसकी कीमत डेढ़ सौ से 200 रुपये किलोग्राम तक हो गई है।

इस ताल ने कर रखा है जिंदा

शक्‍तिमान निषाद ने बताया कि गर्मी के दिनों में कमल गट्टा, विभिन्न प्रकार के साग व मछली आदि के आखेट से हमारे पुरखों की रोजी-रोटी चलती आई है। हम भी इसी से जुड़े हैं। सही कहें तो यही ताल हमें जिंदा कर रखा है।

आपके शहर की हर बड़ी खबर, अब आपके फोन पर। डाउनलोड करें लोकल न्यूज़ का सबसे भरोसेमंद साथी- जागरण लोकल ऐप।