Move to Jagran APP
5/5शेष फ्री लेख

UP News: गोरखपुर में बोले सीएम योगी, देश-विदेश में हैं नाथपंथ की परंपरा के अमिट चिह्न

Gorakhpur News नाथ संप्रदाय की परंपरा सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी फैली हुई है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तमिलनाडु के संत से मुलाकात का जिक्र करते हुए बताया कि उन्हें सुदूर क्षेत्रों से नाथ संप्रदाय की पांडुलिपियां मिली हैं। कर्नाटक में मंजूनाथ और महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर की परंपरा का भी नाथ संप्रदाय से गहरा संबंध है।

By Jagran NewsEdited By: Vivek Shukla Updated: Sun, 15 Sep 2024 09:30 AM (IST)
Hero Image
गोरखनाथ मंदिर में संबोधित करते सीएम योगी। जागरण

जागरण संवाददाता, गोरखपुर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा कि नाथपंथ की परंपरा के अमिट चिह्न सिर्फ देश के हर कोने में ही नहीं हैं, बल्कि विदेश में भी हैं। उन्होंने अयोध्या में तमिलनाडु के एक प्रमुख संत से हुई मुलाकात का जिक्र करते हुए बताया कि उन संत ने जानकारी दी कि उन्हें तमिलनाडु के सुदूर क्षेत्रों की नाथपंथ की पांडुलिपियां प्राप्त हुई हैं।

वह दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में बोल रहे थे। योगी ने बताया कि कर्नाटक की परंपरा में जिस मंजूनाथ का उल्लेख आता है, वह गोरखनाथ ही हैं। योगी ने महाराष्ट्र में संत ज्ञानेश्वर की परंपरा को मत्स्येंद्रनाथ, गोरखनाथ और निवृत्तिनाथ की कड़ी बताया।

महाराष्ट्र में रामचरितमानस की तर्ज पर नवनाथों के पाठ की परंपरा का जिक्र करते हुए योगी ने कहा कि पंजाब, सिंध, त्रिपुरा, असम, बंगाल आदि राज्यों के साथ ही समूचे वृहत्तर भारत और नेपाल, बांग्लादेश, तिब्बत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान समेत अनेक देशों में नाथपंथ का विस्तार देखने को मिलता है।

इसे भी पढ़ें-गोरखपुर में पति ने पत्नी को हथौड़े से पीटकर की हत्‍या, डायल 112 पर दी सूचना

नाथपंथ की परंपरा से जुड़े चिह्नों के संरक्षण और उसे एक संग्रहालय में संग्रहित करने की आवश्यकता पर जोर देते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि गोरखपुर विश्वविद्यालय का महायोगी गुरु गोरखनाथ शोधपीठ इस दिशा में पहल कर सकता है। उन्होंने शोधपीठ से अपील की कि वह नाथपंथ के विश्वकोष में नाथपंथ से जुड़े सभी पहलुओं, नाथ योगियों के चिह्नों को इकट्ठा करने का प्रयास करे।

देश को जोड़ने की व्यावहारिक भाषा है हिंदी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी लोगों को राजभाषा हिंदी दिवस की बधाई देते हुए कहा कि हिंदी देश को जोड़ने की एक व्यावहारिक भाषा है। इसका मूल देववाणी संस्कृत है। मुख्यमंत्री ने भारतेंदु हरिश्चंद्र के ‘निज भाषा उन्नति’ वाले उद्धरण का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतेंदु का भाषा के प्रति यह भाव आज भी आकर्षित करता है। उन्होंने कहा कि यदि भाव और भाषा खुद की नहीं होगी तो हर स्तर पर प्रगति बाधित करेगी।

इसे भी पढ़ें- नदी में मिला युवक का शव, थाने पहुंची प्रेमिका ने कहा- चचेरे भाई ने ली जान

स्थानीय भाषा के महत्व पर बल देते हुए मुख्यमंत्री ने तुलसीदास का वह प्रसंग सुनाया जब उन्होंने संस्कृत में रामचरितमानस रचने का प्रयास किया, लेकिन सफल नहीं हो सके और उन्हें अयोध्या की स्थानीय भाषा अवधि में इसकी रचना करनी पड़ी।