UP lok Sabha Chunav 2024: भाजपा का जातियों के गणित में विकास के बोल, सपा के लिए यह चुनौती आसान नहीं
सपा ने देवरिया बांसगांव महराजगंज और बस्ती लोकसभा सीट कांग्रेस को देकर अपने उन समर्पित कार्यकर्ताओं को बगावत का बहाना दे दिया जो पांच साल से पार्टी का झंडा ढोकर टिकट की आस पाले थे। भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशियों की जीत-हार में बसपा प्रत्याशी को मिलने वाले वोट अहम भूमिका निभाएंगे। सियासी रणनीतिकारों का मानना है कि गोरखपुर-बस्ती मंडल में यदि उलटफेर हुआ तो बसपा इसकी सूत्रधार होगी।
पिछले दस सालों में पूर्वांचल ने चोला बदला है और अपने पर से पिछड़ेपन का लेबिल उतार फेंका है। फिर भी यहां चुनाव में जातियां ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। जातियों का गणित अपने पक्ष में करने की कवायद सभी राजनीतिक दल कर रहे हैं और उनकी रणनीति के मुख्य केंद्र में भी यही हैं, लेकिन यहां हुए विकास कार्यों की पूरी तरह अनदेखी भी नहीं की जा सकती और उनका कुछ न कुछ असर तो देखने को मिलेगा ही। वाराणसी से मनीष मिश्र और गोरखपुर से रजनीश त्रिपाठी की रिपोर्ट...
गाजीपुर में ताड़ीघाट-मऊ रेल विस्तारीकरण योजना के तहत गंगा पर बन रहे रेल सह रोड ब्रिज पर ट्रेन दौड़ने वाली है। इससे कोलकाता-दिल्ली में मुख्य रेल मार्ग से वाराणसी-छपरा, गोरखपुर जुड़ जाएगा तो आजमगढ़ में मंदुरी एयरपोर्ट दस मार्च से शुरू हो जाएगा और अभी हाल ही में जौनपुर में केंद्रीय परिवहन व राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने 10 हजार करोड़ रुपये की विभिन्न परियोजनाओं का शिलान्यास किया है।
ऐसी ही जाने कितनी योजनाएं हैं, जो पूर्वांचल के चुनाव में गूंजती दिखाई देंगी तो चंदौली में गंगाकटान और नहरों के टेल तक पानी नहीं पहुंच पाना व भदोही के सरपतहां में बन रहा 100 बेड का अस्पताल दस साल बाद भी पूर्ण नहीं हो पाने जैसे मुद्दे भी उठेंगे। हालांकि बात फिर वहीं जाकर अटक जाती है कि जातियां किधर जा रही हैं?
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पूर्वांचल बदला है, लेकिन अभी उसका राजनीतिक चरित्र नहीं और यही वजह है कि यहां निषाद, राजभर और पटेल जातियों के क्षत्रप भी राजनीतिक रूप से मूल्यवान हो गए हैं। पूर्वांचल में गोरखपुर, वाराणसी से लेकर सोनभद्र तक के 21 संसदीय क्षेत्र आते हैं और गंगा के बहते पानी के साथ हर क्षेत्र के समीकरण बदलते जाते हैं।
केंद्रीय भूमिका में काशी ही रहेगी और पिछले माह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जनसभा कर अगुवाई संभाल भी ली है। काशी के अलावा गोरखपुर मुख्यमंत्री का क्षेत्र है और वहां से भी विकास का संदेश ही लोगों तक पहुंचेगा। ‘पूर्वांचल का विकास माडल’ मोदी की गारंटी के रूप में पेश किया जाने लगा है।
भाजपा के प्रदेश सह मीडिया प्रभारी धर्मेंद्र सिंह का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी की काशी को मिली विकास परियोजनाओं से वाराणसी ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वांचल और समीपवर्ती बिहार, झारखंड और मप्र तक के लोगों को लाभ मिल रहा है। भगवान श्रीराम का मंदिर और रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का भावनात्मक असर बड़ा फैक्टर साबित होने वाला है।इसे भी पढ़ें- आगरा मेट्रो का कल होगा श्री गणेश, सात मार्च की सुबह से आप भी मेट्रो से करिए सफर
संगठन के स्तर पर भाजपा का यहां बड़ा आधार है और यही वजह है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में वह वाराणसी, आजमगढ़ और मीरजापुर मंडल 12 लोकसभा सीटों में सिर्फ आजमगढ़ सीट हारी थी, जहां से सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव जीते थे। इसके विपरीत 2019 के लोकसभा चुनाव में वह गाजीपुर, जौनपुर, आजमगढ़, लालगंज, घोसी संसदीय सीटों पर हार गई।अब सपा-कांग्रेस में सीटों पर समझौता हो तो गया है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि गठबंधन मतदाताओं को कितना लुभा पाएगा? बसपा के सामने अपनी सीटें ही नहीं, प्रत्याशी बचाना भी मुश्किल हो गया है। गाजीपुर के बसपा सांसद अफजाल अंसारी इस बार सपा से मैदान में हैं। आजमगढ़ के मुबारकपुर से दो बार विधायक रह चुके शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ने भी बसपा छोड़ सपा का दामन थामा है।
गोरखपुर, बस्ती मंडल की नौ सीटों पर बदलाव की बयार पर भाजपा को जोर रहेगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की घरेलू पिच पर उतरने वाले भाजपाई लड़ाके कानून व्यवस्था पर सरकार की जीरो टालरेंस नीति, इज आफ डुइंग बिजनेस के साथ कल्याणकारी योजनाओं से अंत्योदय की संकल्पना साकार होने की उपलब्धियां गिना रहे हैं। अयोध्या में श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद आत्मविश्वास से भरी टीम भाजपा ‘जय श्रीराम’ का उद्घोष कर उत्साह में है। सपा ने 2017 के बाद एक बार फिर कांग्रेस का हाथ थामा है।
सपा के लिए चुनौती आसान नहींसपा ने देवरिया, बांसगांव, महराजगंज और बस्ती लोकसभा सीट कांग्रेस को देकर अपने उन समर्पित कार्यकर्ताओं को बगावत का बहाना दे दिया है जो पांच साल से पार्टी का झंडा ढोकर टिकट की आस पाले थे। भाजपा और सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशियों की जीत-हार में बसपा प्रत्याशी को मिलने वाले वोट अहम भूमिका निभाएंगे।
सियासी रणनीतिकारों का मानना है कि गोरखपुर-बस्ती मंडल में यदि उलटफेर हुआ तो बसपा इसकी सूत्रधार होगी। इस बार भाजपा ने आठ सांसदों को दोबारा मैदान में उतारकर यह संदेश स्पष्ट कर दिया है कि पार्टी में न तो असंतोष है, न होने देंगे। सपा, कांग्रेस के लिए बगावत और भितरघात रोकना चुनौती होगी। संतकबीरनगर, बांसगांव, देवरिया, कुशीनगर, डुमरियागंज और बस्ती सीट पर इसकी जबरदस्त आशंका है।
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