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बिसात पर साख: गोरखपुर में भाजपा इतिहास दोहराने, विपक्ष उतरेगा बनाने, यहां वही बना सांसद, जिसे मिला गुरु गोरक्षनाथ का आशीर्वाद

बात गोरखपुर के राजनीतिक इतिहास की करें तो आजादी के बाद जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी तब यह सीट भी उसी के प्रभाव में थी। स्वतंत्र भारत के पहले तीन चुनाव में कांग्रेस यहां विजयी हुई। 1967 में कांग्रेस का अंतर्विरोध सतह पर आया तो इसका प्रभाव इस सीट पर भी नजर आया। 1975 की इमरजेंसी से जनता में नाराजगी का परिणाम कांग्रेस को भुगतना पड़ा।

By Jagran News Edited By: Vivek Shukla Updated: Mon, 18 Mar 2024 08:14 AM (IST)
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भाजपा के रवि किशन शुक्ल को पार्टी ने 2024 में भी प्रत्याशी बनाया है।
 जासं, गोरखपुर। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह क्षेत्र वाली गोरखपुर लोकसभा सीट पर नाथ पीठ का जबरदस्त प्रभाव है। 35 साल से इस सीट पर सांसद वही हुआ, जिसे गुरु गोरक्षनाथ का आशीर्वाद मिला। तत्कालीन सांसद योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद रिक्त हुई इस सीट पर 2018 में हुआ उपचुनाव अपवाद रहा, जिसमें सपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद ने भाजपा के उपेंद्र दत्त शुक्ल को हरा दिया।

2019 के लोकसभा चुनाव में पीठ के आशीर्वाद से सांसद चुने गए भाजपा के रवि किशन शुक्ल को पार्टी ने 2024 में भी प्रत्याशी बनाया है। उनके मुकाबले सपा-कांग्रेस गठबंधन से काजल निषाद हैं, जो विधानसभा के दो और महापौर का एक चुनाव हार चुकी हैं। बसपा ने अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं।

बात गोरखपुर के राजनीतिक इतिहास की करें तो आजादी के बाद जब पूरे देश में कांग्रेस की लहर थी, तब यह सीट भी उसी के प्रभाव में थी। स्वतंत्र भारत के पहले तीन चुनाव में कांग्रेस यहां विजयी हुई। 1967 में कांग्रेस का अंतर्विरोध सतह पर आया तो इसका प्रभाव इस सीट पर भी नजर आया।

गोरक्षपीठ के महंत दिग्विजयनाथ ने शिब्बल लाल सक्सेना को रिकार्ड मतों से पराजित कर पहली बार इस सीट पर पीठ की उपस्थिति दर्ज कराई। कांग्रेस ने अंदरुनी कलह पर नियंत्रण की कवायद तेज की तो उसके सकारात्मक परिणाम मिले। अगले चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर नरसिंह नारायण को प्रत्याशी बनाकर सीट कब्जा ली।

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1975 की इमरजेंसी से जनता में नाराजगी का परिणाम कांग्रेस को भुगतना पड़ा। कांग्रेस को हराकर भारतीय लोकदल के प्रत्याशी हरिकेश बहादुर सांसद बन गए। पांच साल में अपना प्रभाव बना लिया और अगले चुनाव में कांग्रेस (आइ) के टिकट पर हरिकेश बहादुर दोबारा लोकसभा पहुंचे। 1984 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की लहर का असर गोरखपुर में भी दिखा, जिससे कांग्रेस प्रत्याशी मदन पांडेय को जीत मिली।

1989 में नौवीं लोकसभा के चुनाव ने यहां राजनीति की दिशा बदल दी। यह वह दौर पर जब राममंदिर आंदोलन जोरों पर था जिसमें गोरक्षपीठ की सक्रियता का असर जनादेश के तौर पर नजर आया। सोशलिस्टों की लहर के बावजूद महंत अवेद्यनाथ अखिल भारतीय हिन्दू महासभा के टिकट पर जनता दल प्रत्याशी रामपाल सिंह को हराकर पहली बार लोकसभा पहुंचे।

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उनकी जीत का यह क्रम 1996 तक जारी रहा। 1998 में महंत अवेद्यनाथ ने राजनीतिक विरासत अपने उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ को सौंपी। योगी ने लगातार पांच बार सांसद बनकर इस सीट पर पीठ के प्रभाव को इतना मजबूत कर दिया कि लोकसभा से लेकर विधानसभा चुनाव तक भाजपा का डंका बजता रहा।

गोरखपुर सीट पर पिछले चुनाव में औसत मतदान- 59.79 प्रतिशत

इस सीट पर अब तक का सर्वाधिक मतदान- 61.28 प्रतिशत

पुरुष मतदाता-1111996

महिला मतदाता- 969635

उपचुनाव में सपा को मिली थी जीत-2018

इस सीट पर अब तक सबसे कम मतदान-37.27 प्रतिशत

कुल मतदाता- 2074803

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